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इस डॉक्टर के पहल से 3.2 करोड़ गरीब लोग नेत्रहीन होने से बच गए, पद्मश्री सम्मान से इन्हें नवाज़ा जा चुका है

डॉक्टर अर्थात जो लोगों को मौत के मुँह से रोगी को बचा सकते हैं। इस पूरे विश्व में भगवान के बाद यदि कोई भगवान हैं तो वह हैं डॉक्टर, एक डॉक्टर ही हैं जो पूरी जी जान लगाकर रोगी का इलाज करता है और मृत्यु से बचाता है और नव जीवन प्रदान करता है। इसलिए उसे धरती पर ईश्वर का दूसरा रूप कहा जाता है। जैसे सैनिक देश की सुरक्षा करतें हैं, एक शिक्षक भविष्य बनाते हैं, ठीक उसी प्रकार डॉक्टर भी हमारे स्वास्थ्य की सुरक्षा करते हैं। एक चिकित्सक का पूरा जीवन दूसरों के सेवा में निकलता है।

आज हम आपको एक ऐसे डॉ. से रुबरू करवायेंगे जिसे शायद सभी कोई नहीं जानते हैं। आपको उस पद्मश्री डॉ की कहानी जानने का मौका मिलेगा जिसका एकमात्र लक्ष्य नेत्रहीनों को दृष्टि प्रदान करना और जीवन में प्रकाश लाना है। उस डॉ ने अपनी एक पहल से 3.2 करोड़ गरीब लोगों को नेत्रहीन होने से बचा लिया

हम बात कर रहें हैं डॉ. गोविंदप्पा वेंकटस्वामी (Dr. Govindappa Venkataswamy) की। यह एक ऐसे अनुभवी नेत्र सर्जन का नाम है, जो वर्तमान में हमारे साथ इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनके द्वारा किया गया कार्य पूरे विश्व के सामने एक सेवा का बेहद प्रेरणात्मक उदाहरण के रूप में हमेशा जीवित रहेगा।

डॉ. गोविंदप्पा वेंकटस्वामी का जन्म 1918 में तमिलनाडु (TamilNadu) के वेदमलमपुरम में एक निम्न मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। डॉ. गोविन्दप्पा ने मेडिकल की पढ़ाई चेन्नई स्टैनले मेडिकल कॉलेज से पूरी की। उन्हें “डॉ वी” नाम से बहुत लोकप्रियता हासिल हुई। अपनी मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने के बाद डॉ वी ने 1945-48 तक भरतीय सेना के मेडिकल टीम में चिकित्सक के रूप में सेवा दिया। उसके बाद बिमारी हो जाने के कारण मेडिकल दल में चिकित्सक की नौकरी को छोड़ना पड़ा। रह्युमेटाइड आर्थराइटिस नाम की बिमारी के वजह से डॉ वी बहुत कमजोर हो गए। यहां तक कि उनसे एक कलम भी नहीं उठाया जा रहा था। समय के साथ उनकी स्थिति में सुधार हुआ। उसके बाद उन्होंने मदुरई मेडिकल कॉलेज के ऑपथैल्मोलॉजी विभाग में हेड ऑफ़ द डिपार्टमेंट के पद पर कार्यरत हुए। मदुरई कॉलेज में 1 वर्ष तक पद सम्भालने के बाद उन्होंने मदुरई के सरकारी अस्पताल में नेत्र सर्जन के पद पर कार्यरत हुए और 20 वर्षों तक अपनी सेवा दिए।

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डॉ. वी. एक बार हैम्बर्ग के ओक ब्रूक यूनिवर्सिटी गए तो वे वहां के मैक्डोनाल्ड असेंबली लाइन ऑपरेशन स्टाइल से बेहद प्रभावित हुए। उस प्रभाव से उन्होंने तय किया कि वे भी भारत में गरीबों के लिये अस्पताल की श्रृंखला खोलेँगे जहां गरीब बहुत ही कम मूल्य में अपने आंखो का इलाज करा सकेंगे। यहां से जन्म हुआ अरविंद नेत्र हॉस्पिटल (Aravind Eye Hospital) का।

1976 में 11 बेड की हॉस्पिटल की शुरुआत हुई। इसमें 6 बिस्तर वैसे लोगों के लिये आरक्षित थे जो पैसों का भुगतान नहीं कर सकते थे और 5 बिस्तर वैसे लोगों के लिये था जो मामूली राशि का भुगतान कर सकते थे। अरविंद हॉस्पिटल के काम करने के तरीके बिल्कुल अलग थे। यहां डॉ. की सहायता से कुशल इंटर्न का चयन होता था। जब एक डॉक्टर मरीज का ऑपरेशन कर रहे होते थे उस समय इंटर्न डॉक्टर उनसे सर्जरी की बारिकियां को सीखते और समझते थे। इस हॉस्पिटल में एक दिन में लगभग 100 सर्जरी होता था। बाद में यह मॉडल हावर्ड बिजनेस स्कूल की केस स्टडी का विषय बन गया और विश्व भर के बड़े-बड़े अस्पतालों ने इस हॉस्पिटल की पद्धति को अपनाया।

अभी तक इस ग्रुप ने करीब 3.2 करोड़ मरीजों का इलाज किया है और इसके साथ ही 40 लाख सफल सर्जरी भी की है। इन सब के अलावा उन्होनें कम कीमत की ऐसी उच्च गुणवत्ता वाले प्रत्यारोपण लेन्सेंस का निर्माण किया जिसे विश्व के 80 देशों में निर्यात किया गया है। डॉ वी. को भारत सरकार द्वारा 1973 में पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया। पद्मश्री पुरस्कार भारत का चौथा सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान है।

वर्तमान में अधिकतर लोग इस महान हस्ती का नाम तक नहीं जानता है। लेकिन भारत जहां 2 करोड़ नेत्रहीन लोग हैं जिनमें से 80% लोग कुशल, प्रभावी किफायती चिकित्सा सेवा की कमी की वजह से नेत्रहीनता के शिकार हो गये।

The Logically डॉ. गोविंदप्पा वेंकटस्वामी को गरीबों की मदद जैसी अच्छी पहल के लिए शत-शत नमन करता है। डॉ वी. की यह पहल किसी वरदान से कम नहीं है।

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