“कीचड़ में हीं कमल के पुष्प खिलते हैं”, यह कथन हमारे आम जिंदगी में भी कई बार सिद्ध हुआ है। ऐसे कई बच्चे हैं जो दलदल भरे माहौल में गुजारा तो करते हैं लेकिन वह आगे चलकर अपने मार्ग में आई बाधा के बंदिशों को तोड़ते हुए अपने लक्ष्य की तरफ अग्रसर होते हैं और अपना लक्ष्य हासिल करते हैं।
आज हम आपके समक्ष एक ऐसी कहानी प्रस्तुत कर रहे हैं जो ऐसे लड़के की है जिसने अपनी मंजिल को प्राप्त करने के लिए बहुत सारी विषम परिस्थितियों का सामना किया है। उनके पिता कोयला के खदानों में कार्य कर अपना आजीविका चलाते लेकिन अपने बच्चे को पढ़ा-लिखाकर इस काबिल बनाया कि यह अपने पिता से बेहतर बन सके। आईए जानते हैं उनके बारे में इस कैसे उन्होंने संघर्ष के कठिन पथ पर चलते हुए सफलता प्राप्त की…
किशोर कुमार रजक
यह कहानी है झारखंड (Jharkhand) के निवासी किशोर कुमार रजक (Kishor Kumar Rajak) की। वह जहां रहते हैं वहां कई वर्षों से बिजली की कोई सुविधा नहीं है फिर भी वह बिना रूके अपने परिश्रम से अपने मंजिल को पा लिए। भले हीं वह दलदल में जिंदगी बिताए लेकिन कमल के तरह खिलकर DSP का पद प्राप्त किया।
गरीब परिवार में हुआ जन्म
किशोर एक गरीब परिवार से संबंध रखते हैं जिस कारण उन्हें अपनी पढ़ाई-लिखाई और आजीविका के लिए संघर्ष करना पड़ा। उनके पिता जीविकोपार्जन के लिए धनबाद के कोयला खदान में मजदूरी करते थे। पैसे अधिक तो नहीं थे लेकिन उसी मजदूरी से उन्होंने अपने बेटे को पढ़ाया ताकि उनका भविष्य बेहतर हो सके। उनके पास ना हीं अधिक जमीन थी जिस पर वह खेती कर कुछ कमाई कर पाते।
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सरकारी स्कूल से हीं किया पढ़ाई
किशोर के घर की आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं थी जिस कारण उन्हें अपनी शिक्षा सरकारी स्कूल से हीं ग्रहण करनी पड़ी। बात अगर गांव के सरकारी स्कूल की हो तो उसमें तनिक भी संशय नहीं कि वहां कितने शिक्षक आते हैं और कितने शिक्षक पढ़ाते हैं। किशोर के परिवार की एक विशेषता यह थी कि उन्हें अपनी पढ़ाई के लिए हमेशा वहां से प्रेरणा मिलती।
पिता कहा करते ‘मेरा बेटा बड़ा होकर कलेक्टर बनेगा’
परिवार से मिली प्रेरणा को वह हमेशा ध्यान में रखते। किशोर के पिता जी हमेशा यह बात कहते कि “मेरा बेटा कलेक्टर बनेगा”। अपने पिता के सपनों को पूरा करने के लिए किशोर को अपनी पढ़ाई सभी कार्यों को सम्भालने के साथ करनी पड़ती थी। वह खेती तो करतें हीं साथ ही वक़्त निकालकर पशुओं को चराने के लिए भी ले जाते।और गांव के अन्य बच्चों के साथ पढ़ते भी।
शिक्षक के डाँट से हुए प्रेरित
अक्सर किशोर जब स्कूल में पढ़ाई के लिए जाते तो अपना थैला स्कूल में हीं छोड़कर बाहर चले जाते। पुनः छुट्टी के वक्त वह अपना थैला उठाते और अपने घर आ जाते। एक वक्त उनके शिक्षक की नजर किशोर के इस करतूत पर पङी, तब उन्होंने किशोर को डांटा और एक बात कही जो किशोर के दिल से लग गई। शिक्षक ने बच्चों को डांटते हुए कहा कि “अगर तुम में से कोई भी बच्चा अगर सफल होकर बड़े मुकाम को हासिल कर लेगा तो यह मेरे लिए फक्र की बात होगी”। तब से किशोर ने इस बात को ध्यान में रखते हुए पढ़ाई करने में जुट गए और कुछ बेहतर करने की ठानी।
शुरू किए UPSC की तैयारी
किशोर ने मन लगाकर पढ़ाई किया और वे 10वीं के साथ 12वीं में भी अच्छे नम्बर से पास हुए। आगे वह ग्रेजुएशन भी किए हालांकि वह तीसरे साल में असफल हुए लेकिन बिना डरे आगे बढ़ते रहे। उन्होंने UPSC की तैयारी प्रारम्भ की जिसके लिए उन्हें दिल्ली जाने की जरूरत थी जिसके लिए पैसे भी चाहिए थे। किशोर ने रिश्तेदारों से पैसे लेकर इकट्ठे किए और तैयारी के लिए दिल्ली चले गए।
बच्चों को पढ़ाया ट्यूशन
वह दिल्ली में किराए पर मकान लेकर रहने लगे और अपनी तैयारी में लग गए। पैसे की कमी थी इसलिए अब वे पैसे कमाने के लिए भी थोङा ध्यान देने लगे। उन्होनें मकान मालिक के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना प्रारम्भ किया जिससे थोड़े पैसों का इंतेजाम होने लगा। ट्यूशन में बच्चों की संख्या बढ़ने लगी जिससे उनके आर्थिक हालात भी ठीक होने लगे।
प्रथम प्रयास में किया UPSC पास
उनकी मेहनत रंग लाई और वह प्रथम प्रयास में सफल हुए। उनका चयन असिस्टेंट कमांडेंट के तौर पर हुआ और आगे वह DSP बने। किशोर ने अपनी सफलता से उन सभी युवाओं के दिल मे अपनी जगह बनाई जो छोटे गांव में रहकर ये सोंचते कि सफलता बड़े शहर वालों को मिलती है हमें नहीं।
अपनी जिंदगी में आए विषम परिस्थितियों का सामना करते हुए जिस तरह किशोर ने UPSC पास कर DSP के कार्यभार को संभाला उसके लिए The Logically किशोर की सराहना करता है और उनकी उपलब्धि के लिए उन्हें बधाईयां देता है।