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Manipur: यह बहनें चट्टानी मिट्टी से बनाती हैं बर्तन, इनकी मजबूती और फायदे जानकर आप दंग रह जाएंगे

भारत विविधताओं का देश है, यहाँ तरह-तरह की प्राचीन कलाएं आज भी विधमान हैं जो पुरखों दर पुरखों से आगे बढ़ती आ रही है। पुराने जमाने मे हर जगह की अपनी एक अनोखी और विशेष कला होती थी, जो शायद आज धूमिल होती जा रही है। मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल हम पहले खाना पकाने के लिए भी करते थे, जो धीरे धीरे लुप्त होती चली गई। लेकिन आज फिर से कुछ ऐसे कलाकार हैं जो इस कला को जीवंत बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं। मणिपुर (Manipur) में एक विशेष तरह की मिट्टी से बर्तन (Mitti ka Bartan) बनाया जाता है, जो पूरे भारत मे प्रसिद्ध है।

अपनी अद्भूत सुन्दरता के लिए विश्व प्रसिद्ध मणिपुर को उसके स्वादिष्ट खान-पान के लिए भी जाना जाता है, जिसका नाम कांगशोई है। इस जायकेदार व्यंजन को भिन्न-भिन्न सामग्रियों को मिलाकर तैयार किया जाता है। जैसे प्याज, लहसुन, अदरक, हरी सब्जियां और अन्य मसालों को एक साथ मिलाकर उबाला जाता है और शोरबा के रूप में बनाया जाता है। वैसे तो इसे आप अपने पसंद के व्यंजन के साथ खा सकते हैं लेकिन इसे रोटी और चावल के साथ खाना अधिक आनंददायक होता है।

अपने जायकेदार खान-पान और अनुपम सुन्दरता के लिए जाना जानेवाला मणिपुर (Manipur) का आजकल चर्चा में होने का कारण कुछ और ही है। जी हां, इस बार यह राज्य अपने मिट्टी के बर्तनों (Mitti Ka Bartan) के लिए चर्चा का विषय बना हुआ है। चूंकि मणिपुर का क्षेत्र पत्थरों से घिरा हुआ है इसलिए वहाँ सभी तरफ से पथरीली मिट्टी देखने को मिलती है। हालांकि, वहां सिर्फ पथरीली मिट्टी ही नहीं बल्कि काली और लाल रंग की मिट्टी भी मौजूद हैं।

जैसा कि आप जानते हैं पहले के जमाने में मिट्टी के बर्तनों से होनेवाले फायदें के कारण इसका इस्तेमाल अधिक संख्या में किया जाता था। लेकिन बिना चाक के यहां की मिट्टी से निर्मित बर्तने देखने में तो खुबसूरत होते ही हैं साथ ही वह बाकियों की तुलना में अधिक मजबूत भी होते हैं। अधिक मजबूती प्रदान करने की वजह से ही वहाँ की बर्तनों की मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इसकी मांग अधिक बढ़ने का कारण यह है कि मणिपुर की दो बहनें जिनका नाम प्रेस्ली नैगसेनाओ और पामशांगफी नैगसेनाओ है, ने इस बर्तन को बनाने में सिर्फ हाथ की कलाकारी का इस्तेमाल किया है, जो इन्हें और भी अधिक अनमोल बनाते हैं।

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जी हाँ, हम सभी जानते हैं कि मिट्टी के बर्तनों को चाक की सहायता से बनाया जाता है। चाक की मदद से बर्तन बनाने के लिए गुथी हुई गीली मिट्टी को उसपर डालकर तेजी से घुमाया जाता है। वहीं उसे कुम्हार जिस आकार में ढालना चाहता है, उसके अनुसार उस पर सरसों का तेल लगाकर ढाला जाता है। इसी तरीके के वजह से हमें भिन्न-भिन्न प्रकार के मिट्टी के बर्तनों को देखते हैं।

Duo sisters of manipur making Mitti ka bartan

लेकिन इन दोनों बहनों ने अपनी कला के अद्भूत प्रदर्शन से सभी को हैरत में डाल दिया है। इन बहनों ने मिट्टी की बर्तन को बिना चाक की सहायता से इतना बेहतरीन बनाया है कि देखकर कोई भी धोखा खा जाएं। उनके द्वारा बनाए गए मिट्टी के बर्तन बेहद ही खुबसूरत होते हैं।

आप सोच रहे होंगे कि अचानक से ये बर्तन सुर्खियों में कैसे आ गए। ऐसे में बता दें कि तमिलनाडु के कोयंबटूर शहर में एक प्रदर्शनी (भारतीय शिल्प परिषद) लगी थी। उस प्रदर्शनी में अनेकों लोगों ने भाग लिया था, जिसमें ये दोनों बहनें भी शामिल थीं। उन्होंने वहाँ अपने हाथ की कलाकारी से निखारे गए बर्तनों को दिखाया और वहीं से मिट्टी से बने ये बर्तन काफी सुर्खियों में आ गए हैं।

प्रेस्ली और पामशांकफी नामक निर्मित इन बर्तनों की काफी सराहना की गई। उनके द्वारा बनाए गए इन मजबूत बर्तनों का इस्तेमाल रोज की दिनचर्या में भी किया जा सकता है।

मीडिया से बातचीत के दौरान दोनों बहनें बताती हैं कि, मिट्टी का इस्तेमाल करके हाथ से बर्तन बनाने वाली ये चौथी पीढ़ी है। वह आगे कहती है कि वह जिस गांव में वह रहती हैं उसके पास पहाड़ियां और जंगल मौजूद है। वहाँ एक चट्टान पाई जाती है जिसका नाम सर्पेटाइन है, इसी चट्टान की मिट्टी का इस्तेमाल बर्तन बनाने में किया जाता है, जो बाकी मिट्टी के बर्तनों की तुलना में उसे काफी मजबूती प्रदान करते हैं।

हालांकि, कोविड-19 ने सभी की हालत एकदम खस्ता कर दिया था, ऐसे में इस खास तरह की मिट्टी से बर्तन (Mitti ka Bartan) बनाना काफी चुनौतीपूर्ण था। लेकिन कोरोना के मामले कम आने के बाद से अब इस काम में थोड़ी सहुलियत हुई है, और बर्तन बनाने वाले लोगों के चेहरे पर मुस्कान भी आई है। बता दें कि, बाकी मिट्टी से बने बर्तनों को बनाने में चाक की जरुरत होती है लेकिन काली मिट्टी से बने इन बर्तनों के साथ ऐसा नहीं है।

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यह काम इतना सरल नहीं है, ऐसे बर्तन बनाने के लिए आदिवासी महिलाओं को काफी मेहनत करनी पड़ती है तब जाकर काली मिट्टी से इन बर्तनों को बनाया जाता है। इसके लिए चट्टान को तोड़कर मिट्टी को कुछ दिनों के लिए सुखाया जाता है और फिर उसके छोटे-छोटे टुकड़े कर लिए जाते हैं। इतना ही नहीं, उसके बाद उन टुकड़ो से बुरादा बनाया जाता है।

प्रेस्ली के अनुसार, बर्तन बनाने के लिए तैयार बुरादे को एक ऐसे नर्म पत्थर के साथ मिलाया जाता है, जिससे मिश्रण चिपचिपा और मुलायम हो जाता है। उस नरम प्त्थर को लिशोन कहा जाता है। अब इस तैयार सनी हुई मिट्टी को बांस के साचे में ढालकर अपने अनुसार बर्तन को आकृति दी जाती है। वहीँ जब जैसा मौसम रहता है उसके अनुसार बर्तनों को लगभग 2 हफ़्ते तक सुखाने के बाद अन्ततः बर्तन तैयार हो जाते हैं।

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