खेती से अच्छी कमाई ना होने और अच्छे लाभ ना मिलने के कारण जहां एक तरफ किसान खेती से मुख मोड़ रहे हैं तो दूसरी तरफ किसान इसका नेतृत्व कर रहे हैं। ऐसे में देवरिया जिले के निवासी रामानुज तिवारी जो कि इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर की डिग्री हासिल कर नौकरी के लिए दर-दर की ठोकरें खाने के बजाय खेती करने का निश्चय किया और आज वह लोगों के लिए उदाहरण बने हैं।
इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर रामानुज तिवारी
इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर रामानुज तिवारी (Engineer Ramanuj Tiwari) खेती के विषय में कुछ नहीं जानते थे। उन्होंने डिग्री हासिल करने के बाद नौकरी ढूंढ और आगे अपने गांव के चौराहे पर एक शॉप खोली जहां वह इलेक्ट्रॉनिक सामानों की रिपेयरिंग तथा बिजली उपकरणों को ठीक करने का काम करने लगे। अब वह खेतिहर लोगों के साथ जाते और खेती करते। तब उन्होंने ये देखा कि किसानों को परम्परागत फसलों से कोई अच्छा लाभ नहीं मिल रही। इसलिए उन्होंने ये तय किया कि वह इसमें कुछ अलग करेंगे।
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हुई विद्यार्थियों से मुलाकात बदली किस्मत
जब वह पन्तनगर गए थे तब वह यहां एग्रीकल्चर के विद्यार्थियों से मिले जो इस विषय में वार्तालाप कर रहे थे कि पपीते की हाईटेक खेती कैसे होती है?? अब उन्होंने इसके विषय में सारी जानकारी प्राप्त कर उसके बीज तथा किताबों को लेकर अपने घर आए। उन्होंने इसके विषय में अन्य लोगों को भी बताया परंतु लोगों ने उनकी खिल्ली उड़ाई हालांकि उन्होंने लोगों की बातों को अनदेखा करते हुए पपीते की हाइटेक खेती शुरू की।
मिली सफलता बढ़ा मनोबल
किताब की मदद से उन्होंने आधा एकड़ जमीन में खेती शुरू की हालांकि वह इसके विषय में अधिक जानकारी प्राप्त नहीं कर पाए थे तो इसका लाभ नहीं मिला। अब उन्होंने इसके विषय में और जानकारियां एकत्रित करनी शुरू कर दी और सारी जानकारी एकत्रित करने के बाद उन्होंने एक बार पुनः खेती की जिससे उन्हें अधिक से अधिक लाभ हुआ और मनोबल बढ़ा।
पौधों का रखा जाता है ध्यान
उन्होंने यह जानकारी दिया कि 1 एकड़ जमीन में लगभग 1500 पपीते के पौधे लगे होते हैं जिसकी लागत लगभग 30 हजार के करीब आती है। पौधों की बुआई से पूर्व यहां खेतों की जुताई कर जो भी पराली या खरपतवार होते हैं उन्हें निकाल कर फेंक दिया जाता है फिर ऑर्गेनिक कंपोस्ट को डाला जाता है। फिर इनकी सिंचाई होती है आगे पौधों की बुआई करने के उपरांत यहां पुआल बिछा दिया जाता है जिससे पौधों को नमी मिलती है। फसल को अच्छी तरह तैयार होने में लगभग 6 माह का समय लगता है। इस दौरान इनका अच्छी तरह देखभाल किया जाता है।
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किसानों के लिए बने मिसाल
आज वह अपने क्षेत्र के किसानों के लिए मिसाल बने हुए हैं और उन्हें जागरूक कर रहे हैं कि वे किस तरह खेती में नई तकनीक को अपनाकर सफलता हासिल कर सकते हैं। आज उनके क्षेत्र के किसान भी चाहते हैं कि पपीते की खेती कर अपने भविष्य को रामानुज की तरह उज्जवल बना सकें।