2020 हम सभी के लिए मन मुताबिक नहीं रहा। कोरोना के कहर ने हर किसी के प्लान्स पर पानी फेरा कुछ नया तो दूर आम चीजें भी लॉकडाउन के कारण ठप हो गई। इस तरह कोरोना के साथ – साथ साल 2020 को भी लोगों ने खूब कोसा। लेकिन अब जब साल का आखरी महीना चल रहा है तो लोगों के अंदर एक अलग ही उमंग है। इंतजार है कि नया साल अपने साथ कुछ बेहतर लाएगा।
कुछ ऐसी चल रही क्रिसमस की तैयारी
दिसंबर का शुरुआती सप्ताह इसा मसीह के आगमन की तैयारियों का होता है। यीशु के जन्म को लेकर न केवल ईसाई धर्म नहीं बल्कि अन्य धर्म के लोग भी उत्साहित होते हैं। इस पावन पर्व पर सेलिब्रेशन, गिफ्ट, खानपान और कपड़ों के साथ खुद को आध्यात्मिक तौर पर भी तैयार किया जाता है। जिसके लिए कई दिनों पहले से ही चर्चों में विशेष मिस्सा बलिदान (प्रार्थना) का आयोजन होता है। हालांकि इस बार कई चर्चों में कोविड संकट को देखते हुए तय नियमों को पालन करते हुए सीमित श्रद्धालुओं के साथ प्रार्थना हो रही है। बाकी लोगों को वेबिनार के जरिए प्रार्थना से जोड़ा जा रहा है।
अध्यात्म और खुशियों के संगम से जुड़ी आशा की किरण
दिसंबर के शुरुआती दिनों को आगमन की तैयारी का सप्ताह इसलिए कहा जाता है ताकि हम खुद के जीवन और खुद का आकलन कर सकें। हम किसी भी खास से मिलने जाते हैं तो सज-धजकर अच्छे कपड़े पहनते हैं। ठीक उसी तरह यीशु के आगमन की तैयारी में भी हमें खुद को तैयार करना पड़ता है। लेकिन इसमें हमें शरीर से ज्यादा अपने ह्दय को संवारना होता है। हमें देखना होता है कि हमारा ह्दय कितना पवित्र हैं। क्या हम यीशु के स्वागत के योग्य है? अगर नहीं है तो खुद को उसके लिए कैसे तैयार करें।
यीशु का धरती पर आगमन अंधेरे से मुक्ति का प्रतीक है। यानी पाप के अंधेरे से निकलकर पुण्य की रौशनी की ओर बढ़ने का प्रतीक। वैश्विक तौर पर महामारी झेल रहे मानव जाति के लिए यह पर्व आशा की किरण है।