हमारे देश में महिलाएं शुरू से ही हर फील्ड में अपनी अलग पहचान बनाते आई हैं। चाहे वह देश की सेवा, डॉक्टर, वकील, शिक्षिका या अन्य भी सभी फील्ड में अपना वर्चस्व बनाए रखी हैं। आज के समय में महिलाएं पुरुषों की बराबरी करते हुए कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है लेकिन पुराने जमाने में ऐसा नहीं था, शायद ही किसी महिला को पढ़ने की और कुछ करने की आजादी दी जाती थी। ऐसे हालात में भी वह मौक़ा मिलते ही पीछे नहीं रही, हर समय एक नई पहचान बनकर दुनिया के सामने उभर कर आई।
पुराने ज़माने की बातें सुनकर ही इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि उस समय महिलाओं के लिए कुछ करना और घर से बाहर कदम बढ़ाना कितना मुश्किल रहा होगा। लेकिन ऐसे हालात में भी वे पीछे नहीं रही और अपनी पहचान बना ही ली। आज हम भारत की पहली महिला वकील के बारे में और उनकी संघर्ष की कहानी जानेंगे।
भारतीय महिला वकील के बारे में बात किया जाए तो इंदिरा जयसिंह, कामिनी जयसवाल, आभा सिंह, रेबेका जॉन और सीमा समृद्धि, यह सभी महिलाएं अत्यधिक तेज तर्रार वकील रह चुकी हैं। कोर्ट में जब यह अपनी दलील रखती तो अच्छे-अच्छे वकील के पसीने छूट जाते। ये सभी महिलाएं अपने इस प्रोफेशन को कभी व्यवसाय नहीं बनने दिया और इमानदारी की लड़ाई लड़ी।
भारत की पहली महिला वकील (First Indian woman Lawyer)
भारतीय महिला वकीलों में सबसे पहली वकील का नाम कार्नेलिया सोराबजी (Cornelia Sorabaji) हैं। वह देश हीं बल्कि विदेशों तक भी संघर्ष करने में पीछे नहीं रही। उनकी यह संघर्ष ही और महिलाओं की हिम्मत बनी और उनके बाद आज लाखों महिलाएं इस फ़ील्ड में अपनी एक अलग पहचान बनाई। उनका जन्म 1866 में नासिक में हुआ था। उनके पिता का नाम पारसी रेवरेंड सोराबजी करसेदजी (Reverend Sorbaji Karsedji) और माता फ्रांसिना फोर्ड (Francina Ford) थी। कार्नेलिया सोराबजी की मां भी महिलाओं के हक़ के लिए आवाज उठाने का काम करती थी। उन्होंने पुणे में महिलाओं के लिए स्कूल भी खोला था, यहीं से कार्नेलिया का भविष्य उजाले की तरफ बढ़ने लगा।
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कार्नेलिया सोराबजी की शिक्षा
कार्नेलिया सोराबजी (Cornelia Sorabaji) बचपन से ही पढ़ाई में बहुत तेज-तर्रार थी। उनकी प्राथमिक शिक्षा घर से ही पूरी हुई, आगे की पढ़ाई के लिए उनका पुणे के Decean College में दाखिला हुआ। स्कूल के साथ-साथ कॉलेज में भी कार्नेलिया हमेशा अव्वल हीं आया करती थी। इनके पढ़ाई के लिए इनके पिता भी हमेशा ही प्रेरित किया करते थे, जब महिलाओं को यूनिवर्सिटी में पढ़ने की इजाज़त नहीं थी, तब भी कार्नेलिया मुंबई यूनिवर्सिटी में नामांकन लेने के लिए कई बार प्रयास की। हर बार इनकी अर्जी नकार दी जाती थी, लेकिन वह कोशिश करना नहीं छोड़ी।
कई बार प्रयास करने के बाद उन्हें दाखिला तो मिला गया। 16 वर्ष की उम्र में वह अपनी दसवीं की पढ़ाई पूरी की। स्कूल में उन्हें अन्य छात्र बहुत परेशान करते थे। अनेकों मुश्किलों का सामना करते हुए भी वह अपना ध्यान पढ़ाई पर ही केंद्रित रखती थी। अंग्रेजी साहित्य में टॉप करने के बाद भी कार्नेलिया सोराबजी (Cornelia Sorabaji) को उम्मीद था कि उन्हें स्कॉलरशिप मिलेगा, जिससे उनको पढ़ाई में मदद मिलेगी। उम्मीद होना लाजमी था क्योंकि उन्हें अपने मेहनत पर पूरा भरोसा था, लेकिन उन्हें कोई स्कॉलरशिप नहीं मिला।
Oxford University से की लॉ की पढ़ाई
जैसे-तैसे पैसे का इंतजाम करके 1889 में उनका Oxford के Simerville Collage में दाखिला हो पाया। इसके बावजूद भी उनकी मुश्किलें आसान नहीं हुई, यूनिवर्सिटी ने उन्हें लॉ के बजाए साहित्य की पढ़ाई करने का अधिकार दिया। उन्हें अपना पसंदीदा विषय से पढ़ाई करने के लिए खुद के काबिलियत को साबित भी करना पड़ा लेकिन वह हार नहीं मानी, अपने जोश और जुनून के बदौलत अंग्रेजी सरकार को झुका कर लॉ में एडमिशन करवा ही ली।
लॉ की पढ़ाई करने वाली बनी पहली छात्रा
1892 में कार्नेलिया सोराबजी (Cornelia Sorabaji) बैचलर ऑफ सिविल लॉ (Bachelor of Civil Law), BCL की परीक्षा पास की और ब्रिटेन की पहली महिला वकील बनी। यूनिवर्सिटी लॉ की डिग्री देने से इनकार कर दिया क्योंकि उस समय महिलाओं को यह अधिकार देने का कोई रूल नहीं था। कार्नेलिया का एक ही सपना था वकील बनना, जिसके लिए वह ब्रिटेन से भारत लौट आई और प्रैक्टिस करने लगी। यहां भी उन्हें अनेकों समस्याओं का सामना करना पड़ा, इसके बावजूद भी उन्हें वकील बनने का अधिकार नहीं दिया गया।
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कार्नेलिया 1924 में भारत की पहली महिला वकील बनी
पहले भारत में पर्दा प्रथा लागू था, जिसमें राजा महाराजा अपने घर की औरतों के अधिकारों को दफन कर देते थे। कार्नेलिया सोराबजी (Cornelia Sorabaji) महिलाओं के हक के लिए लड़ाइयां लड़ने लगी और पुरुषों के हर षड्यंत्र को विफल करने लगे। महिलाओं को उनका अधिकार दिलाने के लिए कार्नेलिया अनेकों वाद-विवाद में उनका साथ देती थी। वह मुंबई यूनिवर्सिटी से एलएलबी (LLB) की डिग्री हासिल की और 1924 में उन्हें महिलाओं के लिए वकालत (Woman Lawyer) करने का अधिकार मिला।
6000 से अधिक महिलाओं के हक के लिए लड़ी लड़ाइयां
कार्नेलिया के लिए दूसरी महिलाओं का दर्द उनका अपना दर्द था, वह 6000 से अधिक महिलाओं को न्याय दिलाने में मदद कर चुकी हैं। वह 1929 में रिटायर हो गई और इस समय तक वह कोलकाता की कोर्ट में भी वकालत कर चुकी थी। इसके बाद वह इंग्लैंड चली गई और 1954 में इस दुनिया को अलविदा कह दी।
कार्नेलिया सोराबजी (Cornelia Sorabaji) के संघर्ष के बदौलत ही भारत और ब्रिटेन में भी महिलाओं को वकालत करने का रास्ता खुल गया। उन्होंने हर तरह से महिलाओं के मुश्किलें आसान कर दी और आज महिलाएं अपने हर छोटे-बड़े हक के लिए लड़ाइयां लड़ती हैं और उन्हें न्याय भी मिलता है। यहां तक कि महिलाओं के लिए विशेष कानून भी बनाए गए हैं। कार्नेलिया सिर्फ देश ही नहीं बल्कि विदेशों के लिए भी प्रेरणा स्रोत बन गई। आज उन्हीं के बदौलत हमारे देश की महिलाएं अपने वकालत के सपने को जी पा रही हैं।