हर युवा डिग्रीयां प्राप्त करते ही एक अच्छी नौकरी के तलाश में जुट जाते हैं ताकि उनकी पूरी जिंदगी खुशी से कट सके। आज के दौर में एक युवा ऐसा भी है, जिसने नौकरी के साथ-साथ खुद को साइकिलिंग (Cycling) के लिए तैयार किया। साथ ही वह लोगों को पर्यावरण (Environment) की अहमियत समझाने के लिए खुद हज़ारों किलोमीटर की यात्रा पर निकला पड़ा।
श्रवण पैडल फॉर ग्रीन मिशन के तहत सफर पर निकले हैं
यह युवा श्रवण कुमार (Shravan Kumar) कर्नाटक (Karnataka) के मंगलौर के रहने वाले हैं। श्रवण दिल्ली से कश्मीर तक अपने पहले साइकिलिंग एक्सपीडिशन के बाद ‘पैडल फॉर ग्रीन’ (Paddle for Green) मिशन के तहत 6000 किलोमीटर के नए सफर पर निकले हैं। श्रवण सिविल इंजीनियर हैं। 28 जुलाई, 1995 को जन्मे श्रवण की पढ़ाई मंगलौर से पूरी हुई। उनके पिता कपड़ा व्यापारी हैं, जिसे उनके पढ़ाई-लिखाई में कभी कोई दिक्कत नहीं आई। 12वीं पास करने के बाद उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग में डिग्री प्राप्त की और साल 2014 में अपने पिता की मदद के लिए दिल्ली आ गए, ताकि नौकरी कर सकें।
नौकरी के दौरान निकाले साइकिलिंग के लिए समय
बहुत ही जल्द श्रवण को अच्छी नौकरी मिल गई, परंतु वह इसे संतुष्ट नहीं थे। श्रवण को बचपन से ही साइकिलिंग (Cycling) का बहुत शौक था। पढ़ाई और नौकरी के दौरान वह साइकिलिंग (Cycling) को समय ही नहीं दे पाए। श्रवण बताते हैं कि एक दिन दफ्तर से आने के बाद वह बाजार गए और बिना गियर वाली साइकिल खरीद लिए। उसके बाद उन्होंने सोचा कि अगर उन्हें अपने साइकिलिंग (Cycling) के शौक के लिए कोई उद्देश्य मिल जाए तो वह उस दिशा में आसानी से आगे बढ़ सकते हैं।
डस्टबिन के लिए किए लोगों को जागरुक
कुछ समय बाद श्रवण कुमार (Shravan Kumar) ने तय किया कि वह ‘स्वच्छ भारत मिशन’ के तहत लोगों को साफ-सफाई के लिए जागरूक करेंगे। इसकी शुरुआत उन्होंने दिल्ली (Delhi) के आसपास के होटल, रेस्टोरेंट व ढाबों को कूड़ा निस्तारण के लिए अधिक से अधिक डस्टबिन रखने के लिए जागरुक करके की। जब यहाँ से उन्हें पॉजिटिव रिस्पांस मिलने लगा तो उन्होंने तय किया कि अब वह दिल्ली से कश्मीर तक साइकिलिंग एक्सपीडिशन (Cycling expedition) पर निकलेंगे और इस बीच लोगों को डस्टबिन के उपयोग के लिए बढ़ावा देंगे।
10 हज़ार किमी का सफर तय किए
श्रवण 5 मई को जब दिल्ली से अपने पहले साइकिलिंग (Cycling) एक्सपीडिशन के लिए निकले थे, तो उनके पास कुछ कपड़े, तम्बू और जेब में केवल 2,000 रु थे। श्रवण को इस सफर में बहुत तरह के मुश्किलो का सामना करना पड़ा। पंजाब पहुंचते-पहुंचते उनके पैसे लगभग खत्म हो गए थे। ऐसे में आगे बढ़ने के लिए उन्होंने रास्ते में छोटे-मोटे होटलो में काम भी किया। श्रवण ने 4 नवंबर साल 2018 को करीब 10 हजार किमी की अपनी यह यात्रा खत्म की। इस यात्रा के दौरान उन्होंने हिमाचल, जम्मू-कश्मीर , उत्तराखंड, यूपी, बिहार, सिक्किम, पश्चिम बंगाल, अरुणाचल, असम, ओडिशा, मेघालय, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु समेत 18 राज्य, 2200 शहर और 3.2 लाख गांवों को कवर किया।
सफर के दौरान बहुत सी मुश्किलों का करना पड़ा सामना
श्रवण कुमार (Shravan Kumar) इस सफर में नेपाल और भूटान के इलाकों में भी गए। श्रवण बताते हैं कि उनके लिए नेपाल में पोखरा से मुक्तिनाथ तक साइकिल (Cycling) चलाना बेहद ही सुखद रहा। इस सफर के बाड़े में बताते हुए श्रणव कहते हैं कि उनकी साइकिल यात्रा के दौरान लखनऊ में एक जगह उनकी साइकिल खराब हो गई थी। उन्हें लग रहा था कि अब वह अपनी यात्रा पूरी नहीं कर पाएंगे। इसका पता जब मंगलुरु उत्तर से तात्कालिक विधायक डॉ. वाई भरत शेट्टी (Dr. Y. Bharat Shetty) को चला तो उन्होंने श्रवण को नई साइकिल मौके पर दिलाई। जिसके बाद वह अपने सफर को जारी रख पाए।
श्रवण के इस सफ़र का उद्देश्य लोगों को पेड़-पौधों की अहमियत समझाने का था
2018 में पहली साइकिलिंग (Cycling) एक्सपीडिशन पूरी करने के बाद श्रवण अब 6000 किमी की यात्रा पर निकले हैं। इस बार उनके सफ़र का उद्देश्य लोगों को पेड़-पौधों की अहमियत समझाने का था साथ ही वह लोगों को ‘मियावाकी तकनीक’ के तहत वृक्षारोपण के लिए शिक्षित भी कर रहे हैं। श्रवण कहते हैं कि अगर कोई उनसे शिक्षित होकर पेड़ लगाना चाहता है, तो वह वापस लौटकर उसकी मदद करेंगे। गोवा स्टेट बायोडायवर्सिटी बोर्ड ने मदद के लिए उनसे संपर्क किया है। मियावाकी एक ख़ास तरह की तकनीक है, जिसकी मदद से तीन तरह के पौधे (झाड़ीनुमा, मध्यम आकार के पेड़ और छांव देने वाले बड़े पेड़) उगाए जा सकते हैं।
अब लोग कर रहे हैं श्रवण के कार्य की तारीफ
मियावाकी को जापान (Japan) के बॉटेनिस्ट अकीरा ने विकसित किया था। श्रवण बताते हैं कि शुरुआत में नौकरी की जगह साइकिलिंग (Cycling) पर ध्यान देने के लिए लोग उन्हें खूब ताने देते थे परंतु अब लोग उनके कार्य को समझ रहे हैं और उनके मदद भी कर रहे हैं। जब श्रवण 15 मार्च 2021 को मंगलौर से इम्फाल-मणिपुर तक की 6000 किमी की साइकिल यात्रा के लिए निकले तो जेसीआई, जोन-15, मंगलौर और रोटरी क्लब मंगलौर हिल साइट उनके मदद के लिए सामने आए। इस दौरान शहर के कई अफसरों ने भी उनका हौसला बढ़ाया। इस यात्रा की सफलता (Cycling) के बाद श्रवण ऐसे ही किसी दूसरे मिशन पर निकलने की योजना बना रहे हैं।