Wednesday, December 13, 2023

इस फल बेचने वाले को भारत सरकार ने दिया पद्मश्री सम्मान, इनके कार्य जानकर अचम्भित हो जाएंगे आप

कहते हैं जो व्यक्ति दूसरों की सहायता के लिए हमेशा तैयार रहता है, भगवान भी उसकी सहायता करते हैं। सबकी सहायता करने का सीधा मतलब है अपनी सहायता क्योंकि जब हम जरूरतमंदों की सहायता सच्चे मन से करते हैं तो हमें दिली ख़ुशी मिलती है। सहायता का अर्थ ये नहीं है कि हम रुपये पैसे या कपडे लत्ते लुटा दें , बल्कि सहायता में वो मदद भी शामिल है जो शरीर से की जा सकती हो। (Harekala Hajabba Padma shree)

इस बात को चरितार्थ करते हैं दक्षिण कन्नड़ के रहने वाले हरेकला हजब्बा। जो पेशे से एक फल विक्रेता हैं लेकिन आज वो बच्चों के लिए स्कूल खोल एक मिसाल कायम कर चुके हैं। उन्होंने अपनी बचत के पैसों का इस्तेमाल विद्यालय खोलने के लिए किया। उनके इस समाज सेवा के कार्य को देखते हुए सरकार ने उन्हें पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया था। आइये जानते हैं उनके बारे में।

कमाई का हिस्सा बच्चों के लिए
(Harekala Hajabba)

कर्नाटक (Karnataka) के दक्षिण कन्नड़ के रहने वाले हरेकला हजब्बा के गांव नयापड़ापु में कोई स्कूल नहीं था। जिसके कारण वो कभी औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाए। वो सड़कों पर फल बेचा करते थे जिससे उन्हें तकरीबन 150 रूपये की कमाई हो जाती थी। उन्होंने इस कमाई का प्रयोग बच्चों के लिए स्कूल खोलने में किया ताकि गांव के दूसरे बच्चों को सही शिक्षा मिल सके।

जीवन में आया बदलाव, बच्चों के लिए सोचा (Harekala Hajabba)

हजब्बा फल बेचकर खुश थे। उनके जीवन में बदलाव तब आया जब वो एक विदेशी पर्यटक से मिले। एक बार एक विदेश युगल उनसे संतरे की कीमत पूछ रहा था लेकिन उन्हें अंग्रेजी नहीं आती थी जिसके कारण वो उनकी बात का जवाब नहीं दे सके। जिसके बाद युगल चला गया। उन्हें बहुत बुरा लगा। हरेकला ने महसूस किया कि कम से कम उनके अपने गाँव के बच्चों को इस स्थिति में नहीं होना चाहिए। इस घटना से आहत, हजाबा ने अंग्रेजी सीखने और अपने स्कूल के बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने के अवसर मुहैया कराने का फैसला किया। जिसके बाद उन्होंने स्कूल खोलने पर अपना ध्यान लगा दिया।

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स्कूल खोलने के लिए पैसों की बचत (Harekala Hajabba)

हरेकला हजज्बा के गांव में साल 2000 तक कोई स्कूल नहीं था, उन्होंने अपनी मामूली कमाई से पैसे बचाकर वहां स्कूल खोला। जैसे-जैसे छात्रों की संख्या बढ़ती गई, उन्होंने ऋण भी लिया और अपनी बचत का इस्तेमाल स्कूल के लिए जमीन खरीदने में किया। महज 150 रुपये प्रति दिन कमाने वाले हजज्बा को स्थानीय लोगों और अधिकारियों से बहुत कम सहयोग मिला, लेकिन उनके दृढ़ संकल्प से 28 छात्रों के साथ एक प्राथमिक विद्यालय खोला। स्कूल खुलने के बाद हर साल छात्रों की संख्या बढ़ती गई। हर दिन 150 रुपये कमाने वाले इस व्यक्त‍ि के जज्बे ने ऐसा जादू किया कि मस्ज‍िद में चलने वाला स्कूल आज प्री यूनिवर्सिटी कॉलेज के तौर पर अपग्रेड होने की तैयारी कर रहा है।

सम्मानित किए गए हजब्बा
(Harekala Hajabba)

बच्चों को शिक्षित कर महान कार्य करने वाले हरेकला अपने जीवन में एक आम आदमी है। सरकार ने जब उन्हें पद्मश्री सम्मान देने की घोषणा की तो वो एक राशन की लाईन में लगे थे। उन्हें इस बात का बिल्कुल भी आभास नहीं था कि उन्हें सरकार द्वारा पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। इस सम्मान को पाने के बाद हजब्बा के खुशी की ठिकाना नहीं रहा। भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान में से एक पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया है।

आज उनकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है। उनके सादगी की भी जितनी प्रशंसा की जाए कम है। हरेकला हजब्बा ने आज यह साबित कर दिया है कि समाज में परिवर्तन लाने के लिए पैसों की जरूरत नही होती। बदलाव लाने की भावना अगर आप में हो तो बदलाव अवश्य आएगा।

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