महात्मा गांधी को तो सब जानते हैं पर क्या कभी आपने झाबुआ के गांधी के बारे में सुना है? नहीं, तो चलिए आज आपको झाबुआ के गांधी यानी कि महेश शर्मा के बारे में बताते हैं। बताते हैं कि कैसे महेश शर्मा अपने कामों की वजह से झाबुआ के गांधी के नाम से पूरे देश में जाने जाते हैं। 64 वर्षीय महेश शर्मा ( Mahesh sharma)दतिया जिले के एक गांव के रहने वाले हैं। महेश शर्मा बताते हैं कि बचपन से ही इनके मन पर स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले सेनानियों के विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा। इनके विद्यालय में एक शिक्षक हुआ करते थे जो स्वतंत्रता सेनानी थे और इनके शिक्षक के विचारों ने भी इन्हें प्रभावित किया।
झाबुआ के गांधी बनने का सफर
महेश बताते हैं कि उनका यह सफर 1998 में शुरू हुआ जब वह झाबुआ आए थे। उस समय झाबुआ और अलीराजपुर एक ही जिला हुआ करता था और यह काफी बड़ा इलाका था ।यहां पर भील जनजाति के लोगों की जनसंख्या अधिक हुआ करती थी और इस जनजाति के बारे में लोगों के मन में बहुत सारी गलतफहमियां थी। लोगों को लगता था कि यह जनजाति अपने बच्चों को पढ़ाना नहीं चाहती, उनका रहन-सहन का ढंग अलग है, यह सरकार को उसके कार्यों में सहयोग नहीं करती। पर जब महेश इन लोगों के साथ रहने लगे तब उन्हें यह पता चला कि लोगों की सोच इनके प्रति काफी गलत है। यह लोग काफी मिलनसार, परोपकारी और मेहनतकशी है।
महेश शर्मा उन लोगों से जुड़कर उनकी समस्याओं को सुनते और समझते थे। उन्होंने सोचा कि इन समस्याओं को एक साथ हल नहीं किया जा सकता इसलिए उन्होंने एक-एक कर हर परेशानी पर काम करना शुरू किया। यहाँ के लोगो को किसी भी तरह की कोई सुविधा नहीं थी। सरकार की योजनाएं बहुत थी और जमीनी स्तर पर वह लागू नहीं हो पाई थी। यहां पर लोगों को ना शिक्षा की सुविधा थी, ना स्वास्थ्य सुविधा और ना ही रोजगार का अवसर था। इसलिए यहां पर पलायन भी एक बड़ी समस्या थी।
तालाब बनाने का कार्य
महेश ने देखा कि यहां के लोग काफी मेहनती हैं। महेश शर्मा ने पहले पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं का समाधान करने का सोचा और जल संरक्षण की दिशा में काम करने की शुरुआत की। यहां पर उन्होंने लोगों को तालाब की तकनीक समझाने के लिए तकनीक समझाने वाले शिक्षकों से जोड़ा और फिर लोगों के साथ मिलकर तालाब बनाने का काम प्रारंभ किया। शुरुआती साल में इन लोगों ने सात से आठ छोटे तालाब का निर्माण किया पर यह छोटे तालाब इन के खेत में पानी पहुंचाने के लिए काफी नहीं थे। तब महेश ने इन लोगों से कहा कि यह तालाब पर्याप्त नहीं है तब इन लोगों ने कहा कि कोई बात नहीं। इन तालाबो से उनके गांव के पेड़ पौधों को और पशु पक्षियों को पानी मिल सकेगा। उनके लिए यही बहुत बड़ी बात है कि इनकी मेहनत बर्बाद नहीं गई। गांव के लोगों की इस बात में महेश शर्मा को काफी प्रभावित किया महेश को यह एहसास हुआ कि यहां के लोग काफी परोपकारी हैं और यह बात शहर के लोगों में नहीं मिलेगी। इसके बाद महेश शर्मा ने झाबुआ में रहकर हैं इनकी समस्याओं का समाधान करने का निश्चय किया और हमेशा के लिए यहीं के होकर रह गए।
ग्राम सशक्तिकरण की पहल
महेश शर्मा ने आसपास के सभी गांव से जुड़ना शुरु किया और तरह 2007 में शिवगंगा (Shivganga) नामक संगठन की नीव रखी। इस संगठन का उद्देश्य था विकास का जतन। शिवगंगा संगठन से महेश ने युवाओं को जोड़ना शुरु किया और इस तरह युवाओं को जागरूक कर उनमें उनके पूर्वजों की परंपरा हलमा को पुनर्जीवित किया । हलमा का मतलब होता है कि सभी का मिलजुलकर गांव के विकास के लिए काम करना।
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संवर्धन से समृद्धि की शुरुआत
महेश शर्मा ने सभी गांवों को एक साथ जोड़ने के लिए संवर्धन से समृद्धि की शुरुआत की। इसके तहत उन्होंने जंगल, जल ,जमीन, जानवर और जन सबके परोपकार के लिए काम करना शुरू किया।
- जल संरक्षण की दिशा में कार्य करने के लिए उन्होंने सबसे पहले ग्राम इंजीनियर वर्ग बनाएं। इसमें ग्रामीणों को जल संरक्षित करने की तकनीक बताई जाती थी। पहले प्रशिक्षण दिया जाता था उसके बाद उन्हें गांव में नदी और कुआं तालाब की खुदाई में लगाया जाता था। ग्रामीण कुआं और हैंडपंप भी रिचार्ज किया करते थे। नालो का निर्माण करते थे जिससे कि भूजल के स्तर में वृद्धि हो।गांव में 70 से अधिक तालाब और एक लाख से अधिक नाले बनाए जा चुके हैं। जिससे चार सौ करोड़ लीटर पानी को बचाया गया है
- जंगल संवर्धन की दिशा में काम करने के लिए महेश ने मातवन की परंपरा पुनर्जीवित की। उन्होंने हर गांव को अपने गांव में जंगल विकसित करने के लिए प्रेरित किया। आज 600 गांव में 70000 पौधारोपण किया जा चुका है।
- जमीन संवर्धन के लिए उन्होंने गांव वालों को जैविक खेती करने के लिए प्रेरित किया । गांव में ही जैविक खेती के अलग-अलग तरीकों का ग्रामीणों को प्रशिक्षण देते हैं। गांव वाले बताते हैं कि पिछले 10- 12 सालों में जैविक खेती करने वालों की संख्या बढ़ी है।
- जानवर संवर्धन के लिए उन्होंने पशु पालन पर जोर दिया। गांव वालों मुर्गी पालन, बकरी पालन भी कर रही हैं।
- जन संवर्धन के लिए महेश शर्मा ने 600 गांव में ग्राम समृद्धि टोली बनाई। जिसमें गांव के युवाओं को शामिल किया। इस टोली में शामिल युवा गांव के विकास की योजना बनाते हैं।
प्रोजेक्ट के लिए आईआईटी से छात्र झाबुआ आते हैं
आज आईआईटी जैसे संस्थानों से छात्र अपनी प्रोजेक्ट्स और शोध के लिए झाबुआ आते हैं और यहीं के होकर रह जाते हैं यहां की परोपकार भावना छात्रों को आकर्षित करती हैं और वह बड़ी-बड़ी तनख्वाह की नौकरी छोड़कर यहीं पर बस जाते हैं।
ग्राम वाचनालय और इनक्यूबेशन सेंटर का निर्माण
शिवगंगा संगठन ने झाबुआ में ग900 ग्राम वाचनालय का निर्माण करवाया है ।जहां पर तरह-तरह की बहुत सारी ज्ञानवर्धक किताबें हैं। इसके अलावा झाबुआ के सामाजिक उद्यमिता और कौशल को बढ़ावा देने के लिए इनक्यूबेशन सेंटर की भी शुरुआत की गई है। जहां महिलाओं को भी कौशल विकास योजना से जोड़ा गया है और उन्हें भी आत्मनिर्भर बनने में सहायता की जा रही है।
झाबुआ के गांधी महेश शर्मा को अपने कार्यों के लिए 2019 में पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया। महेश शर्मा बताते हैं कि उनकी इच्छा है कि यहां के जो वनवासी लोग हैं उनकी अपनी एक अलग पहचान बनी और वह लगातार इस दिशा में कार्य कर रहे हैं।
अगर आप भी महेश शर्मा (Maheah sharma) से बात करना चाहते हैं तो 9907700500 पर सम्पर्क करें।