Monday, December 11, 2023

अंधविश्वास ने जल संकट को बुलावा दिया था, महिला के प्रयास से 1 वर्ष में झील पानी से लबालब हुआ

हम 21 वीं सदी में जी रहे हैं लेकिन आज भी हमारे बीच अंधविश्वास का अस्तित्व जीवित है। कई सुदूर इलाकों में लोग इस पर विश्वास करने के साथ निजी जिंदगी में ढालते भी हैं। अंधविश्वास दकियानूसी सोच और अशिक्षा का परिचायक है। लेकिन गंगा राजपूत (Ganga Rajput) जैसे लोग भी है जिनकी वजह से समाज इस समस्या को खुद पर हावी होने से बचा पा रहा है।

अंधविश्वास के कारण झील को संरक्षण नहीं मिला

मध्यप्रदेश में बुंदेलखंड के चौधरी खेरा (Chaudhary Khera village) गांव में कई वर्षों से स्थानीय लोग और पशु – पक्षी पानी के एकमात्र स्रोत बाबा का तालाब (झील) पर निर्भर थे। संरक्षण के अभाव में ये झील सूख चुकी थी। आलम यह था कि गांवों के लिए टैंकर से पानी आने लगा। कुछ मौकापरस्त लोगों ने झील की जमीन पर कब्ज़ा भी शुरू कर दिया था। लेकिन इस बीच एक महिला के कदम ने गांव की दिशा ही बदल दी।

 receive village ponds for water security

गंगा राजपूत ने बदलाव की नींव रखी

गंगा राजपूत की शादी इसी गांव में हुई। जब वह यहां आई तो देखा कि कई अंधविश्वास के कारण लोग झील के संरक्षण के लिए तैयार नहीं थे। लोगों को जल संकट दूर करने के लिए न तो कोई कदम उठाना था न ही कोई मदद करनी थी। गंगा ने स्थानीय महिलाओं से इस समस्या के समाधान के बारे में बातचीत की। कुछ ही दिनों में एक संगठन जल संरक्षण के लिए जागरूक करने गांव आया। गंगा ने उन्हें झील की बदहाली से अवगत कराया। संगठन ने उन्हें तकनीकी मदद देने का वादा किया। इस तरह गंगा ने अन्य दो महिलाओं के साथ मिलकर झील को पुनर्जीवित करने का काम शुरू कर दिया।

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एक वर्ष के भीतर लबालब ही हुई झील

धीरे धीरे झील दोबारा देखने लायक हो गई। यह सबकुछ देखकर गांव के लोग भी हाथ बढ़ाने आगे आए। इस पूरी यात्रा में गंगा को पति और जल संरक्षण संगठन का खूब सहयोग मिला। गंगा ने मीडिया से बताया की जब वो शादी के बाद इस गांव में आई तो उन्होंने देखा कि महिलाएं पानी भरने के लिए बोरवेल पर लंबी कतार लगती थी। पानी के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता था। झील के संरक्षण का काम शुरू हुआ तो एक वर्ष में ही बेहतर परिणाम सामने आए। कमजोर मानसून और औसत से कम बारिश होने के बावजूद भी झील पानी से लबालब भर गया।

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जल संकट से निजात और आर्थिक सुधार

संगठन के सहयोग से कई लोगों ने यहां मछली पालन का काम भी शुरू कर दिया है। साथ ही किसान अब यहां गेहूं, ज्वार, सोयाबीन और अन्य फसल उगाने लगे हैं। जिससे यहां आर्थिक सुधार भी हुआ है। अंधविश्वास की पट्टी बांधे चल रहे लोगों के बीच गंगा की सूझबूझ और मेहनत ने पूरे गांव की काया पलट दी।