वर्ष 2017 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित होने वाले लोगों के बारें तो हम सभी बखुबी जानतें हैं। उनमें विराट कोहली, संजीव कपूर, आदि बड़े-बड़े नामों से हम भली-भांति परिचित हैं। लेकिन शायद ही किसी को पता होगा कि उस पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित होने वालों में एक नाम विकलांग किसान का भी था।
आज हम आपको उसी किसान के बारे में बताने जा रहें हैं जो पद्मश्री जैसे बड़े सम्मान से पुरस्कृत हुए हैं।
गेनाभाई दर्गाभई पटेल (Genabhai Dargaabhai Patel) गुजरात के बनासकांठा जिले के अंतर्गत आने वाले सरकारी गोलिया गांव के निवासी हैं। गेनाभाई का दोनों पैर पोलियो ग्रस्त है। पैर पोलियो ग्रस्त होने के कारण इनके पिताजी सोचते थे कि यह खेती में उनकी मदद नहीं कर सकतें। इसलिए वह गेनाभाई की पढ़ाई पूरी करवाना चाहते थे। पढ़ाई पूरी करने के लिये गेनाभाई को बहुत ही कम उम्र में 30 किलोमीटर की दूरी पर एक हॉस्टल में डाल दिया गया। वह अपने तिनपहिया साइकिल चलाकर आसानी से स्कूल जाते थे। गेनाभाई पटेल 12वीं तक पढ़ाई करने के बाद अपने गांव वापस आ गये।
गेनाभाई खेती में अपने पिताजी की मदद नहीं कर सकते थे लेकिन फिर भी वह साथ में खेत जाया करते थे। तब उनके मन में विचार आया कि वह सिर्फ एक तरीके से अपने पिता की सहायता कर सकतें हैं। उन्होंने ने ट्रैक्टर चलाना सीख लिया। हाथ से क्लच और ब्रेक को सम्भालने लगे और बहुत ही जल्द एक अच्छे ट्रैक्टर चालक बन गयें।
गेनाभाई के पिताजी परम्परागत तरीके से खेती करतें थे। वह गेहूं, बाजरा जैसे गुजरात के पारंपरिक फसलों को उगाते थे। सिंचाई की व्यव्स्था नहीं होने के कारण बोरबेल की सहायता से सिंचाई किया जाता था। लेकिन बोरबेल की मदद से सिंचाई करने में पानी अधिक बर्बाद होता था। गेनाभाई को भी कृषि करना था। वह किसी ऐसे फसल की खोज कर रहे थे जिसे वह अपाहिज होते हुयें भी उगा सकें और एक बार बोने के बाद अधिक वक्त तक उससे उपज मिलती रहें।
गेनाभाई (Genabhai) ने शुरु में आम का पेड़ लगाने के बारें में विचार किया। इसके साथ समस्या यह है कि यदि मौसम परिवर्तित हो तो आम के फूल गिर जातें है और फिर अगले वर्ष का इंतजार करना पड़ता। यह सोच कर वह दूसरे फसलों के बारें में जानने का प्रयास करने लगे। इसके लिये उन्होनें स्थानीय कृषि विभाग से सम्पर्क किया। कृषि विश्वविद्यालय भी गयें। इसके अलावा उन्होंने सरकार के कृषि मेले में जाकर जानकारी इकट्ठी की। इससे भी नहीं हुआ तो गेनाभाई ने लगभग 3 महीने तक गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र का दौरा किया। उनके जज्बे ने उन्हें कामयाबी दिला दी। गेनाभाई ने महाराष्ट्र के किसानों को अनार की खेती करतें हुयें देखा। महाराष्ट्र का मौसम भी गुजरात के जैसा ही रहता हैं। अनार में फूल सालभर उगते है और उन्हें ज्यादा देखभाल की भी जरुरत नहीं होती हैं।
गेनाभाई ने वर्ष 2004 में महाराष्ट्र (Maharastra) से अनार के 18 हजार पौधें लेकर आये। अपने भाई की मदद से अनार के पौधें को खेतों में लगाया। गेनाभाई ने बताया, “मुझे इस काम को करते देखकर गांव के लोगों को लगा कि मेरा दिमाग घूम गया है, क्यूंकि इससे पहले गांव में अनार की खेती किसी ने नहीं की थी।” लेकिन गेनाभाई का मानना है कि एक किसान की आंखे कभी धोखा नहीं खा सकती। गेनाभई के इस काम में उनके भाई और भतीजे ने काफी सहायता की।
गेनाभाई ने जो पौधा लगाया था उसमें 2 साल बाद 2007 में फूल आना शुरु हो गया। इसे देखकर दूसरे किसान भी इनकी मदद से अनार की खेती करने लगे। लेकिन गेनाभाई के लिये सबसे बड़ी चुनौती अनार को बेचने की थी क्यूंकि पूरे राज्य में अनार का बाजार कहीं नहीं था। अनार बेचने के लिये गेनाभाई ने अनार की खेती करने वाले सभी कृषकों को बनासकांठा (Banaskantha) में एकत्रित किया और ट्रकों में अनार लादकर दिल्ली (Delhi) और जयपुर (Jaipur) के बाजारों में बेचने की व्यवस्था किए। लेकिन यह उपाय ज्यादा दिन तक टिक नहीं सका। इसलिए गेनाभाई को ऐसे व्यापारी की जरुरत थी जो उनसे सीधा माल खरीद सके।
गेनाभाई ने अपनी पहली ऑर्डर के बारें में बताया कि व्यापारी को जब विश्वास होता है कि माल की प्रयाप्त मात्रा है तब ही वह फल खरीदता है। अपने फल को बेचने के लिये उन्होंनें एक योजना बनाई। उनहोंने प्रत्येक खेतों में अलग-अलग किसानों को बैठाया और एक ही खेत को व्यापारियों को अनेक बार दिखाया। वास्तव में उनके पास सिर्फ 40 खेत थे लेकिन अपनी योजना के अनुसार उनहोंने व्यापारी को 100 खेत दिखाया जिससे उन्हें विश्वास हो गया कि माल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है।
गेनाभाई के अनार के पहले ऑर्डर की बिक्री 42 रुपये किलो के भाव पर हुईं। इसके बाद गेनाभाई ने 5 एकड़ की भूमि पर अनार की खेती की जिससे लगभग 54 हजार किलो अनार का उपज कियें। गेनाभाई ने बताया कि एक एकड़ पर किसानों को पारंपरिक खेती से 20,000 से 25,000 का आमदनी होता है लेकिन मुझें मेरी खेती से 10 लाख से अधिक का फायदा हुआ है।
गेनाभाई से प्रेरणा लेकर गांव वालों ने भी पारंपरिक खेती को छोड़कर अनार की बागबानी करने लगे। किसानो की सहायता के लिये गेनाभाई ने एक वर्कसॉप का आयोजन किया और इसमें कृषि जानकारों एवम कृषि वैज्ञानिकों को बुलाया, ताकी उनहोंने जो गलती किया वह दूसरे किसान भाई न करे।
अपने इस व्यवसाय में गेनाभाई पटेल को कई मुसीबतो का सामना भी करना पड़ा। एक वक्त ऐसा आया जब पूरे जिले में जल स्तर नीचे चले जाने के कारण जल संकट आ गया। ऐसे में फलों की सिंचाई के लिये उन्होंने ड्रिप सिंचाई का व्यवस्था किया। गेनाभई का कहना है कि उनके पास ड्रिप सिंचाई करने स्थापित करने के लिये सिर्फ 50% सब्सीडी थी। आज यह बढ़कर 80% हो गई है। सरकार अनार की खेती करने वाले किसानों को 42 हजार की सब्सीडी देती हैं जिसकी सहायता से उन्होंने ने ड्रिप सिंचाई की व्यवस्था की।
हम सभी जानते है कठिन परिश्रम का फल जरुर मिलता है। गेनाभाई को उनके मेहनत का फल मिला। उनके जिले के अनारो का सप्लाई दुबई (Dubai), श्रीलंका (Sri Lanka) और बांग्लादेश (Bangladesh) तक होता है। विदेशों में सप्लाई होने के वजह से किसानों को अच्छी आमदनी भी होती है। हमारे देश के प्रधानमंत्री मोदी जी ने दासा में एक यात्रा के दौरान गेनाभाई के नाम का जिक्र भी किया था।
वर्तमान में गेनाभाई किसानों को समस्या से निपटने के लिये सुझाव भी देते है। वे कहतें हैं कि किसानो को पारंपरिक खेती और फसल के तरीकों से कुछ अलग भी सोचना चाहिए। जैविक खाद बनाने के लिये प्रत्येक किसान भाईयों के पास 2 देशी गाय होना चाहिए। इसके अलावा वह बताते हैं कि बाजार की मांग के हिसाब से उत्पादन करेंगे तो सभी किसान भाई अपने सामान को विदेशों में भी बेच सकतें हैं। यह देश के लिये और उनके लिये भी लाभकारी होगा।
गेनाभाई दर्गाभई पटेल को उनके काबिलियत और सफलता के लिये 18 राज्य-स्तरीय सम्मान और कई राष्ट्रीय पुरस्कार भी दिया जा चुका है। 26 जनवरी 2017 को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के द्वारा पुरस्कृत किया गया। यह गेनाभाई के लिये एक सपना जैसा था।
भविष्य की योजना के बारें में गेनाभाई कहतें हैं कि भारत वह भारत बने जहां किसानो की सफलता किसी के लिये आश्चर्य की बात न हो।
यदि गेनाभाई पटेल से आप सम्पर्क करना चाहतें हैं तो दिये गये ईमेल से सम्पर्क कर सकतें हैं। patelgenabhai77@gmail. com
The Logically गेनाभाई के जज्बे को सलाम करता है और उनकी सफलता के लिये ढ़ेर सारी बधाई देता है।