समय बदलते देर नहीं लगता और ना ही समय हमेशा किसी एक का होकर रहता है। समय किसी को महल से फुटपाथ पर लाकर खड़ा कर देता है तो कुछ लोगों को फुटपाथ से महल में लाकर रख देता है। समय ना कभी किसी का हुआ है ना होगा। अगर कोई व्यक्ति समय से हारकर अपने लक्ष्य को नहीं पा सके जिसे वह पाना चाहता था तो उसे विजेता नहीं माना जा सकता। अगर वही व्यक्ति अपनी हार को अपनी जीत समझकर उससे जंग लड़ता रहे और आखिरकार जब जीत जाए तो वह रियल हीरो और विनर होता है। हमारी आज की कहानी इसी बात से जुड़ी है।
आज हम आपको ऐसे शख्स से मिलवाएंगे जिन्होंने बचपन मे नमक-मिर्च खाकर अपना बचपन व्यतीत किया और 21 बार असफल हुयें फिर भी हार नहीं माने। अन्ततः अफसर बन के ही चैन की सांस ली।
गिरधर सिंह रांदा (Giradhar Singh Randa) उंडखा गांव के निवासी है। इनका गांव बहुत ही कम विकसित है और इनका परिवार बहुत ही पिछड़ा था। इनके घर में खाने के लिए लाल मिर्च को कूट कर रखा जाता था ताकि नमक के पानी को मिलाकर इसे खाया जा सके। ऐसे भी बहुत से दिन थे जिस दिन यह भी नहीं मिलता था। अपने घर की तकलीफों को देख यह सोचते कि मैं इसे जरूर दूर करूंगा और बचपन से ही सरकारी नौकरी की चाहत थी। इसके लिए इन्होंने 10वीं पास की और परीक्षाएं देने लगे। 12वीं की परीक्षा तक तो गिरधर ने लगभग 21 सरकारी परीक्षाएं दे चुके थे, लेकिन सबमें असफलता ही हाथ लगी थी। लोगों और परिवार से इन्हें बहुत सारी बातें सुनने को मिलती। इस ताना का जवाब उन्होंने अपनी मेहनत से सफलता हासिल कर दिया। आखिरकार उन्होंने सरकारी नौकरी हासिल कर अपने घर के लिए बहुत कुछ किया।
50 डिग्री तापमान में खाली पैर आते थे स्कूल से
इनके गांव में लोग ग़रीबी के कारण पढ़ाई-लिखाई को कम ही जानते थे। गिरधर अपने गांव के उन बच्चों में से थे जो स्कूल जाया करते थे…. गिरधर पढ़ाई के साथ कार्य भी किया करते थे चाहे होटल का हो, सब्जी के ठेले का या फिर किसी गोदाम में बोरी ढ़ोने का। यह सुबह स्कूल जाते और दोपहर के 50 डिग्री तापमान में खाली पैर घर आते। इस दौरान इन्हें बहुत ही दिक्कत होती और पैरों में छाले पर जाते।
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पिता थे शराबी, भाई विक्लांग
यह अपनी पढ़ाई को खत्म करते और काम भी करते थे। इनके पिता शराबी थे ,जो भी पैसा आता वह सब शराब में खत्म हो जाता था। एक भाई था, वह भी विक्लांग था। जिस कारण इनके घर वाले चाहते थे कि यह कोई कार्य करें जिससे अच्छे खासे पैसे मिले और पढ़ाई छोड़ दे। लेकिन इन्हें सरकारी नौकरी चाहिए थी जिसके लिए पढ़ाई जरूरी था। यह अपने घरवालों को जगह-जगह अन्य कार्य कर पैसा देते और पढ़ाई भी करते। इन्होंने Bank P.O और SSC की तरह 21 एग्जाम दियें लेकिन निराशा हाथ लगी। लोगों और घरवालों का मानना था कि तुम इतने असफल हो रहे हो फिर भी वही कार्य करो। इनका पढ़ाई में ध्यान इसलिए अच्छी तरह नहीं लग पाता क्योंकि यह गरीबी से परेशान और घर की जिम्मेदारियों से जूझ रहें थे।
ग्राम विकास अधिकारी में हुआ सिलेक्शन
यह असफल होने के बाद भी उन्हीं किताबों में लगे रहते। जब अधीनस्थ सेवा बोर्ड (Subordinate service board) में एक वैकेंसी आई “ग्राम विकास अधिकारी” (Village Developmnet Officer) की तो इन्होंने यह फॉर्म फील कर उसकी तैयारी की और परीक्षा दियें। फिर यह अपनी पढ़ाई में लगे ही रहें। 60 दिनों हद जब इसका रिजल्ट आया तब यह उस पोस्ट के लिए चयनित हो चुके थे। इन्होंने यह सिद्ध किया कि बार-बार फेल होने से कुछ नहीं होता बस अपने रास्ते पर अडिग रहना जरूरी है तो आप सफल जरूर होंगे।
अति पिछड़े गांव और परिवार में जन्म लेने के बाद भी गिरधर सभी युवाओं के लिए प्रेरणा बने जो अपनी जिंदगी से जल्दी हार मान लेते हैं। इनके लगन और कार्य की प्रशंसा करते हुये The Logically गिरधारी को उनके सपने को पूरा करने के लिए बधाई देता है।