आजकल अधिकतर लोगों में खेती का क्रेज बढ़ता जा रहा है। गांव-देहात एवं बड़े महानगरों में रहने वाले लोग भी खेती कर रहे हैं। जिनके पास जमीन नहीं है वे भी घर की छत से लेकर घर की बालकनी तक में खेती कर रहे हैं। जिन्हें खेती की जो पद्धति पसन्द आ रही है वो उसे ही अपनाकर खेती कर रहे हैं।
आज की हमारी यह कहानी भी खेती से ही जुड़ी हुई है। आज की बात बेहद खास है क्योंकि आप ऐसी खेती शायद हीं सुनें होंगे या देखें होंगे। अगर आप ये सुनेंगे कि बिहार राज्य की राजधानी पटना में भूमि से ऊपर हवा में आलू उगाया जा रहा तो आप इस बात पर अचंभित हो जाएंगे। यहां मिट्टी का इस्तेमाल नहीं बल्कि प्लेट की मदद से पौधे का ग्रोथ हो रहा है। आईए जानते हैं कि आखिर ये पद्धति कौन-सी है जिसकी मदद से बिना मिट्टी के पौधों को उगाया जा रहा है।
पटना में अब आलू उगाने के लिए मिट्टी नहीं बल्कि हवा का उपयोग हो रहा है। केंद्रीय आलू अनुसंधान केंद्र ने ऐसा कर दिखाया है। इसके लिए वह एरोपोनिक्स प्रणाली का उपयोग कर रहे हैं। इस पद्धति को अपनाकर आप बिना किसी माध्यम एवं बिना मिट्टी के किसी भी पौधे को उगा सकते हैं।
हवा एवं रोशनी से होता है पौधे का ग्रोथ
इसके साथ पोषक तत्वों के घोल का धुंध के तौर पर उनका छिड़काव निश्चित अन्तराल में जड़ो पर छिड़का जाता है। वही पौधे के ऊपरी भाग के विकास के लिए हवा एवं रोशनी की आवश्यकता होती है। वही जड़ तथा कंद का भाग नीचे हवा में आलू के रूप में पैदा होता है।
किसानों को मिल रहा है अधिक लाभ
इस पद्धति को अपनाकर की गई खेती से किसानों को अन्य खेती की तुलना में अधिक लाभ हो रहा है। दरअसल यह एक चाइनीज तकनीक है जिसके उपयोग से पटना में कुछ साल पूर्व इसकी शुरुआत की गई। जब यह प्रयोग सफल हुआ तो लोग इसे धीरे-धीरे अपना रहे हैं। वर्तमान में यहां 2 यूनिट में एरोपिनिक्स पद्धत्ति को अपनाकर आलू के बीज के उत्पादन में बढ़ोतरी पाई जा रही है।
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नहीं होती है कोई बीमारी
केंद्र के वरिष्ठ साइंटिस्ट डॉक्टर शम्भू कुमार यह बताते हैं कि इस पद्धति में मिट्टी का बिल्कुल भी उपयोग नहीं किया जाता है। जिस कारण बीज कीटाणुमुक्त होते हैं एवं पौधों को बीमारियों से बचाते हैं। इसके कंद की पहली कटाई 15 दिनों पर होती है। इसके ऊपरी पैनल को पहले हांथ से उठाया जाता है फिर कंद को तोड़ लिया जाता है। वही इसके भंडारण से पूर्व 24-28 घण्टे तक इसे सूखने के लिए रखा जाता है। तब इसे कोल्ड स्टोर में रख दिया जाता है।
रखना पड़ता है हर बात का ध्यान
हालांकि इसके संरक्षण में अधिक लागत होती है। अगर एरोपोनिक्स चेंबर का निर्माण हो गया है तो इसमें हर किसी को जाने की अनुमति नहीं है वही जो अंदर जाता है उसे बहुत सावधानी रखनी होती है। ऐसा हो सकता है कि अगर इसमे कोई अन्य बाहर का व्यक्ति इंटर करे तो वह किसी भी प्रकार का किट अंदर लेकर ना चला जाए।
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