मनुष्य को कुछ नया सीखने की चाह और धुन किसी उम्र सीमा या समय सीमा का मोहताज नहीं होती है। वह कुछ नया चुनौतीपूर्ण कार्यों को करने के लिए प्रेरित करती है। कई लोग ऐसे भी हैं जो अपनी बढ़ती उम्र का ख्याल न कर के चुनौतीपूर्ण कार्य करने के रास्ते पर चल पड़ते हैं। उसके लिए वह अपनी नौकरी भी छोड़ देते हैं क्यूंकि जिस काम से प्रेम हो उसे करने के लिए इन्सान कुछ भी कर सकता है।
आज की कहानी भी इसी से मिलती जुलती है। आज आपको इस कहानी के माध्यम से एक ऐसे शख्स के बारे में जानने का मौका मिलेगा जिसने अपनी पुलिस की नौकरी छोड़कर आलू की खेती को अपनाया। आलू की खेती कर के उन्होंने पुरानी विधि से खेती कर रहे किसानों के लिए नया रास्ता दिखाया है। आलू की खेती से वह किसान करोड़ो का मुनाफा भी कमा रहा है। आइए जानते हैं उस शख्स के बारे में।
पार्थीभाई जेठभाई चौधरी गुजरात के बनासकांठा के दान्तीवाडा के निवासी हैं। वे गुजरात पुलिस में कार्यरत थे। पुलिस की नौकरी करने के बाद भी पार्थिभाई को खेती-बाड़ी से काफी प्रेम था तथा वे कुछ अलग भी करना चाहते थे। अलग करने की चाह ने नौकरी से मोह को खत्म कर दिया। पार्थीभाई ने लगभग 19 वर्ष पूर्व खेती कार्य करने के लिए पुलिस की सरकारी नौकरी को छोड़ दिया। पुलिस मे नौकरी करने के दौरान पार्थीभाई को विदेशी कम्पनी मैकेन के द्वारा ट्रेनिंग का मौका मिला। मैकेन कम्पनी आलू से सम्बंधित प्रॉडक्ट्स बनाती है तथा गुणवत्तापूर्ण आलू के उताप्दन के लिए ट्रेनिंग भी देती है।
पार्थीभाई ने मैकेन के द्वारा ही आलू कल्टीवेशन के बारे में सारी तकनीक के बारे में सीखा। सभी काम को अच्छे से गहनता से सीखने के बाद उन्होंने आलू की खेती करना आरंभ किया। परंतु पानी की कमी बहुत बड़ी समस्या थी। पानी की कमी से निपटने के लिए पार्थीभाई ने ड्रिप इरिगेशन (द्रप्स सिंचाई) तकनीक का प्रयोग किया।
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ड्रिप इरिगेशन तकनीक का प्रयोग कैसे करें।
ड्रिप इरिगेशन विधि से पानी और खाद दोनो की बचत होती है। इस विधि में पौधे की जड़ो पर पानी को बूंद-बूंद कर के टपकाया जाता है। पानी पौधे की जड़ो के आसपास टपकाने के लिये वाल्व, पाइप और नालियों का निर्माण कर के एक संरचना बनाई जाती है। वैज्ञानिकों के अनुसार ड्रिप इरिगेशन विधि से सिंचाई करने पर पौधे को नियमित तौर पर आवश्यक मात्रा में पानी मिलता है। इसकी वजह से फसल अच्छे से बढ़ते है तथा उत्पादन में भी वृद्धि होती है।
पानी की समस्या से उबरने के लिए पार्थीभाई ने भी ड्रिप इरिगेशन तकनीक का सहारा लिया। सबसे पहले उन्होंने अपने खेतो में स्प्रिंकलर लगवाया। इसकी सहायता से वे प्रत्येक वर्ष 750 mm पानी की जरुरत वाले स्थान पर बहुत कम पानी मे ही काम चला लेते है। आरंभ मे वे मैकेन को अपने द्वारा उगाए गए आलू का सप्लाई करते थे। अच्छी कीमत मिलने के वजह से अब पार्थीभाई अपने खेत की आलू को बालाजी वेफर्स जैसी बड़ी चिप्स बनाने वाली कम्पनियों को सप्लाई करते है।
87 एकड़ की जमीन से सालाना 3.5 करोड़ की आमदनी।
पार्थीभाई 87 एकड़ की भूमि पर आलू की खेती करते हैं। वे प्रतिवर्ष 1 अक्तूबर से 10 अक्तूबर के बीच के समय मे खेतों की बुआई करते हैं। इससे दिसंबर तक आलू की फसल तैयार हो जाती है। इस मौसम में करीब 1200 किलो प्रति हेक्टेयर आलू का उत्पादन होता है। आपकों बता दे उनके खेत मे 2 किलो तक के एक आलू होते है। आलू की फसल तैयार होने के बाद पार्थीभाई उसे कोल्ड स्टोरेज में रखते हैं। उसके बाद डिमांड के अनुसार उसकी सप्लाई करते हैं। 3 महीने के कार्य में खेतों में अधिक काम नहीं रहता है जिसकी वजह से वे अपना समय अपने परिवार के साथ गुजारते हैं। पार्थीभाई के नहीं होने पर उनका कार्य उनके मैनेजर और स्टाफ देखते हैं। वर्तामान में उनके फार्म पर 16 से अधिक लोग कार्यरत हैं। औसत के अनुसार पार्थीभाई आलू बेच कर के प्रति वर्ष 3.5 करोड़ रुपये से अधिक की कमाई करते हैं।
पर नया सीखने और कामयाबी हासिल करने तथा उम्र के इस मुकाम पर ऊर्जावान रहना सभी किसानों के लिए एक नई मिसाल है। उन्होंने सभी किसानो को नया करने और कामयाब होने के लिए प्रेरित किया है।
The Logically पार्थीभाई जेठभाई चौधरी को उनकी सफलता के लिए बधाई देता है।