पर्यावरण के संजीदगी को समझना सभी के लिये बेहद आवश्यक है। एक स्वस्थ जीवन जीने के लिये स्वस्छ वातावरण बनाये रखना हमारी जिम्मेदारी है लेकिन इस बात को बहुत संख्या में अनदेखा किया जा रहा है। पर्यावरण को दूषित करने में प्लास्टिक और ई-कचरे महत्वपूर्ण भुमिका निभाते हैं। ऐसे में पर्यावरण के संजीदगी को समझते हुए हरिबाबू नातेसन, ई-कचरे का उपयोग कर के मूर्तियां बनाते हैं।
हरिबाबू बनाते हैं ई-कचरे से मूर्तियां
हरिबाबू नातेसन (Haribabu Natesan) मुंबई के रहनेवाले हैं। वे अपनी कला का बेहतरीन प्रदर्शन करतें हैं, इसलिए उन्हें बेकार इलेक्ट्रॉनिक कचरे से कलाकारी करने के लिए जाना जाता है। हरिबाबू मंत्रमुग्ध करने वाली मूर्तियां बनाने के लिए मदरबोर्ड, फ्लॉपी डिस्क, सीडी ड्राइवर, सेल फोन, डिस्कार्डेड सीडी, सेल फोन, लैपटॉप के कुछ हिस्सों, माइक्रोवेव और सीडी जैसे ई-कचरे (E-Waste) का उपयोग करते हैं।
ई-कचरा पृथ्वी के लिए है खतरनाक
भारत देश में हर साल लगभग 20 लाख टन ई-कचरा उत्पन्न होता है, जिसमें से सिर्फ 22 प्रतिशत ही रिसायकल होता है। ई-कचरे जहरीले रसायनों और धातुओं से युक्त होता है। इस वजह से इसका अधिकांश भाग खुले क्षेत्रों में समाप्त हो जाता है, जिससे खतरनाक सामग्री पृथ्वी में रिसने लगती है। यह पर्यावरण के लिए काफी हानिकारक है।
हरिबाबू के कला का नाम है ‘ग्रीन डिज़ाइन वर्क्स’
हरिबाबू को बचपन से ही अपने हाथों से क्रिएटिव चीजें बनाने का शौक था। वे डिजाईनिंग सीख कर एनिमेशन का काम करने लगे। वर्ष 2009 में एनीमेशन में अपनी नौकरी छोड़ने के बाद, वे अनूठी कला बनाना चाहते थे। हरिबाबू अपनी कला को “ग्रीन डिज़ाइन वर्क्स” कहते हैं। मूर्तियां बनाने के लिए वे अपशिष्ट सामग्रियों को इकट्ठा करके उसे अपने स्टूडियो के स्क्रैप रूम में संग्रहीत करतें हैं। बाद में वे आकार, रंग और प्रकार के आधार पर सभी भागों को वर्गीकृत करते हैं। उसके बाद ई-कचरे के सभी भाग अलग हो जाने पर वे एक कला रूप बनाने के लिए सावधानीपूर्वक टुकड़ों को इकट्ठा करतें हैं।
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ई-कचरे (E-Waste) को फेंके जाने पर हरिबाबू ने कही यह बात
ई-कचरे को फेंके जाने पर NDTV के रिपोर्ट के अनुसार, हरिबाबू का कहना है, “कभी सोचा है कि अप्रचलित वॉकमेन और पुराने वीडियो टेप, मृत सेल फोन और ब्लेड का क्या होता है? प्राचीन फ़्लॉपी डिस्क और फ़्यूज्ड लाइट बल्ब का क्या होता है? इन सभी को आम तौर पर ‘स्क्रैप’ कहते हैं। इन सभी रद्दी सामान को स्क्रैप यार्ड के एक कोने में रख देते हैं, जिसके बाद उनमें जंग लग जाते हैं। जंग लगने के इस प्रक्रिया में हानिकारक विकिरण उत्सर्जित होता है, जो हमारे लिए खतरनाक हो जाते हैं।”
उनकी आधिकारिक वेबसाइट, फॉसिल्स के अनुसार, हरिबाबू ने गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ फाइन आर्ट्स, चेन्नई से ललित कला में स्नातक किया है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिज़ाइन (एनआईडी), अहमदाबाद से पोस्ट-ग्रेजुएशन के दौरान, उन्हें बेकार कचरे से बनी अपनी कला को प्रदर्शित करने के लिए एक मंच मिला, जिससे उन्हें काफी सराहना और प्रशंसा मिली।
800 किलो फिटकिरी से बनाई गणेश भगवान की मुर्ति
पिछ्ले साल गणेश चतुर्थी पर, हरिबाबू नातेसन ने 800 किलो फिटकरी से गणेश भगवान की मूर्ति बनाई। फिटकरी के उपयोग के पीछे की अवधारणा इसके शुद्ध करने वाले गुणों के कारण थी। यह उस पानी को प्रदूषित नहीं करेगा, जिसमें मूर्ति को विसर्जित किया जायेगा, लेकिन यह उसे शुद्ध करेगा। मूर्ति बनाने की पूरी प्रक्रिया को फॉसिल्स के फेसबुक पेज पर शेयर किया गया था।
जागरुकता फैलाने के लिए करतें हैं कला का प्रदर्शन
हरिबाबू अपनी कला का उपयोग अभ्यास करने और पर्यावरण जागरूकता फैलाने के लिए करते हैं। NDTV के अनुसार, हरिबाबू का कहना है, “मेरी कला के प्रदर्शन करने की वजह ई-कचरे के पुन: उपयोग के बारे में जागरूकता पैदा करना है। यह सिर्फ कला के लिए कला नहीं है। मैं अपने स्टूडियो में कक्षाएं लेता हूं और युवा कलाकारों के लिए नियमित कार्यशालाएं आयोजित करता हूं, ताकि उन्हें छोड़ी गई चीजों का उपयोग करके पर्यावरण के अनुकूल कला बनाने की तकनीक सीखने में मदद मिल सके, अन्यथा लैंडफिल में समाप्त हो जाए। हमारा विचार औद्योगिक कचरे को हमारे ग्रह को प्रदूषित करने से रोकने के लिए रीसायकल करना है।”