ज्यादातर लोग खुद सफल होने के बाद दूसरों की समस्याओं को नजरअंदाज कर देते हैं, परंतु कुछ ऐसे भी लोग हैं जो केवल अपने लिए नहीं जीते बल्कि वह अपने साथ-साथ दूसरों का भी भविष्य उज्जवल बनाना चाहते हैं।
उनमें से एक हैं लुधियाना के रहने वाले हरिओम जिंदल (Hariom Jindal)। हरिओम अपना लाखों का कारोबार छोड़कर सालों से अपने शैक्षिक ज्ञान के जरिए झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले गरीब बच्चों को निःशुल्क पढ़ा रहा है। – Hariom Jindal leaves his business and teaches poor children who live in slums.
झुग्गियों के बच्चों के हाथ मे पकड़ाते हैं किताबें
हरिओम पेशे से एक वकील है, लेकिन अब उनके जीवन का लक्ष्य केवल यही है कि झुग्गियों के बच्चों की प्रतिभा संसाधनों के अभाव में दम न तोड़े। उसके लिए वह खुद झुग्गियों में जा कर बच्चों के हाथों से कूड़ा छीनकर उन्हें किताबें पकड़ाते हैं। हरिओम बताते हैं कि वह कैसे किताबों के जरिए बच्चों के चेहरों पर मुस्कान ला रहे हैं।
कारोबार में नुकसान होने के कारण गांव से हुई पढाई
हरिओम जिंदल (Hariom Jindal) का जन्म 09 जून 1966 को लुधियाना में हुआ था। उनका बचपन एक आम बच्चे की तरह नहीं रहा। दरसल उनके पिता सुदर्शन जिंदल पेशे से एक कारोबारी थे। कारोबार में नुकसान होने के कारण उन्हें अचानक से फिरोजपुर शिफ्ट होना पड़ा, जिससे हरिओम की मैट्रिक स्तर की पढ़ाई गांव से पूरी हुई। उसके बाद उन्होंने चंडीगढ़ के महाविधालय से ग्रेजुएशन की डिग्री ली।
हरिओम अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग का कारोबार शुरु किया
हरिओम के परिवार के लिए यह बहुत ही कठिन समय था। कारोबार ठीक ना चलने के वजह से आर्थिक स्थिति भी खराब थी। ऐसी परिस्थिति में हरिओम किसी भी तरह परिवार की मदद करना चाहते थे। इसकी शुरुआत उन्होंने कई छोटी-मोटी नौकरियों से की। इसी दिशा में आगे चलकर उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग का कारोबार शुरु किया। – Hariom Jindal leaves his business and teaches poor children who live in slums.
झुग्गियों के बच्चों के लिए थे परेशान
हरिओम की मदद से उनके परिवार की आर्थिक स्थिति धीरे-धीरे सुधारने लगी और सबकुछ पहले जैसा होने लगा, लेकिन अब भी हरिओम परेशान थे क्योंकि जिस तरह का संघर्ष कर वह आगे बढ़े थे, वो सहज नहीं था। वह अक्सर यह सोचकर परेशान होते थे कि मेरे पास तो माता-पिता थे, पढ़ने के संसाधन थे, लेकिन उन बच्चों का क्या जिनके पास मां-बाप नहीं हैं। वह बच्चे कैसे पढ़ाई करते होंगे, जिनके पास संसाधन नहीं हैं।
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झुग्गियों के बच्चों को उनका अधिकार दिलाने के लिए किए वकालत की पढ़ाई
44 साल की उम्र में हरिओम कारोबार छोड़कर वकालत की पढ़ाई शुरू किए ताकि वह झुग्गियों के बच्चों को पढ़ा सकें और उन्हें अधिकारों के प्रति जागरूक करे। वर्तमान में हरिओम झुग्गियों के बच्चों के लिए छह स्कूल चला रहे हैं, जिसमें सैकड़ों बच्चे पढ़ते हैं। उनमें से अधिकतर वह बच्चे हैं, जो झुग्गियों में कभी कूड़ा बीनते थे। हरिओम का ना केवल सोच अलग है बल्कि उनके पढ़ाने का तरीका भी अलग है।
बच्चों के लिए एल्फावेट की एक खास किताब बनाए
हरिओम बच्चों के लिए एल्फावेट की एक खास किताब (Empowerment through Knowledge) तैयार किए है, जिसके जरिए वह बच्चों को ए फार एप्पल नहीं एडमिनिस्ट्रेशन, बी फार बॉल नहीं बैलेट, सी फार कैट नहीं कंस्टीटयूशन पढ़ाते हैं। हरिओम के अनुसार इस तरह पढ़ाने के दो बड़े फायदे हैं पहला बच्चे शिक्षित होते हैं और दूसरा वह समाज के प्रति जागरूक होते हैं। इससे बच्चों को पता चलता है कि एडमिनिस्ट्रेशन और कंस्टीटयूशन क्या होता है। – Hariom Jindal leaves his business and teaches poor children who live in slums.
झुग्गी के बच्चों को फ्री में सिखाते है कंप्यूटर
पढ़ाने के साथ ही हरिओम बच्चों को कंप्यूटर चलाना भी सिखाते हैं। इसके लिए उन्होंने एक कंप्यूटर सेंटर खोल रखा रखा है, जहां झुग्गी के बच्चों को फ्री में कंप्यूटर चलाना सिखाया जाता हैं। हरिओम का काम अब जमीन पर दिखाई देने लगा है। दरसल उनके पढ़ाए बच्चे अब फार्राटेदार अंग्रेजी बोलते हैं। यहां कई बच्चे अलग-अलग मंचों पर अपनी प्रतिभा के लिए सम्मानित भी हो चुके हैं।
दृढ़ इच्छाशक्ति से कुछ भी किया जा सकता है
हरिओम के नेक कार्य को देख कर यह कहां जा सकता है कि अच्छा काम करने के लिए पैसों से अधिक अच्छे मन की ज़रूरत होती है। दृढ़ इच्छाशक्ति के दम पर बड़े से बड़ा चुनौती का सामना कर सकते हैं। हरिओम के द्वारा उठाए गए इस कदम से आज कई बच्चों का भविष्य संवर रहा है। – Hariom Jindal leaves his business and teaches poor children who live in slums.