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जैसलमेर के हरीश ने सरकारी नौकरी छोड़कर शुरू किया एलोवेरा की खेती, फसल बेचकर लखपति बन चुके हैं

औषधीय पौधों की मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। इन पौधों का इस्तेमाल बहुत सारे प्रोडक्ट्स बनाने में होता है। उदहारण के तौर पर कई तरह के ब्यूटी प्रोडक्ट्स और विभिन्न प्रकार की दवाइयां बनाने में औषधीय पौधे का उपयोग किया जाता है। आजकल औषधीय पौधों की खेती में रोजगार की सम्भावनाएं बढ़ती जा रही है। औषधीय पौधों में एलोवेरा की खेती से अच्छी कमाई निश्चित है। एलोवेरा के फायदे भी बहुत है। इसमें विटामिन ए, विटामिन बी1, बी2, बी6, बी12, विटामिन सी, विटामिन ई आदि पाये जाते है जो हमारे शरीर के लिये बहुत फायदेमंद है।

आज हम आपकों ऐसे ही किसान के बारें में बताने जा रहें हैं जो जूनियर इंजीनियरिंग की सरकारी नौकरी छोड़कर एलोवेरा (Aloevera) की खेती करने लगा और आज के समय में करोड़पति बन चुका है।

 alovera farming

हरीश धनदेव (Harish Dhandew) राजस्थान (Rajasthan) के जैसलमेर के रहने वाले हैं। वह एक किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उन्हें जैसलमेर म्युनिसिपल काउंसिल में जूनियर इंजीनियर की नौकरी मिली। नौकरी मिलने के बाद भी वह कुछ अलग करना चाहते थे। इंजीनियर की नौकरी में उनका मन नहीं लगता था। किसान परिवार से होने की वजह से वह भी खेती में कुछ अलग और नया करना चाहते थे। कुछ और करने की चाह में हरीश धनदेव ने अपनी सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया। नौकरी छोड़कर वह एलोबेरा की खेती करने लगे और आज उनका टर्न ओवर करोड़ो में हो रहा है।

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हरीश धनदेव के पास जमीन और पानी था, लेकिन उसका इस्तेमाल कैसे और क्या किया जाये, इसका आइडिया नहीं था। वह अपने खेत में किसी नई चीज की खेती करना चाहते थे। कहा जाता है न जहां चाह होती है, वहां राह मिल ही जाती है। हरीश की चाह ने भी उन्हें रास्ता दिखा दिया। पिछ्ले वर्ष दिल्ली में हुये एग्रीकल्चर एक्सपो से हरीश को आगे की राह मिल गईं। वहां एलोवेरा, आंवला और गुंडा उगाने का सुझाव मिला। वैसे तो रेगिस्तान में बाजरा, गेहूं और सरसों आदि का उत्पादन किया जाता है परंतु हरीश ने कुछ अलग और नया उगाने का निश्चय किया।

हरीश ने 120 एकड़ की जमीन पर ‘बेबी डेन्सिस’ नामक एलोवेरा की किस्म को उगाने का निर्णय लिया। आरंभ मे उन्होंने 80 हजार एलोवेरा के छोटे-छोटे पौधे लगाये जिसकी संख्या अब 7 लाख हो गईं है। रेगिस्तान में उगाये जाने वाले एलोवेरा की गुणवत्ता बहुत अच्छी होती है, जिसकी वजह से राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इसकी मांग बहुत अधिक है।

अच्छी और उच्च गुणवत्ता वाले एलोवेरा ने अपनी विशेषता के आधार पर पतंजलि के विशेषज्ञों को भी अपनी ओर आकर्षित किया है, जिससे उन्होंने एलोवेरा की पत्तियों का ऑर्डर दे दिया। हरीश ने बताया कि पिछ्ले 4 महीने मे हरिद्वार स्थित पतंजलि की फैक्ट्रीयों में इन्होंने 125 से 150 टन एलोवेरा की सप्लाई किया है। रेगिस्तान में उगाये जाने वाले एलोवेरा की मांग देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अधिक है। उदाहरण के लिये ब्राजिल, होंगकोंग और अमेरिका।

देश और विदेश में बढ़ती मांग को देखते हुये हरीश ने जैसलमेर से 45 किलोमीटर दूर धहिसर में “नेचुरल एग्रो” नाम से एक कम्पनी की शुरुआत किया है। एलोवेरा की सप्लाई से हरीश को सालाना 1.5 से 2 करोड़ रुपये की आमदनी हो रही है। हरीश ने एलोवेरा को आधुनिक तरीके से प्रोसेसिंग करने के लिये एक यूनिट भी लगाया है।

हरीश की कामयाबी वैसे युवाओ के लिये प्रेरणास्त्रोत है जो पैसों की खातिर देश छोड़कर विदेश चले जाते है। अच्छी योजना से अपने देश में रहकर भीअच्छी-खासी कमाई किया जा सकता है।

The Logically हरीश धनदेव को उनकी कामयाबी के लिये बधाई देता है।

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