पर्यावरण की सुरक्षा की अहमियत समझता तो हर कोई है, परंतु लोगों के लिए कोई ठोस कदम उठाना मुश्किल होता है। हर किसी का यह कहना होता है कि हमारे अकेले के करने से क्या होगा, लेकिन अगर यह प्रयास एकजुट होकर किया जाए तो उसका असर पर्यावरण पर जरूर नजर आएगा। आज हम भारत के एक ऐसे ही गांव के बारे में बात करेंगे, जहां एक व्यक्ति या एक परिवार नहीं बल्कि पूरा गांव ही पर्यावरण की सुरक्षा में लगा है। – In Ratkheda village of Punjab, a dustbin and a sapling have been planted outside every house with a name plate.
रत्ताखेड़ा गांव पिछले 6 साल में काफी बदल चुका है
दरअसल आज हम बात कर रहे हैं पंजाब बॉर्डर के पास कैथल जिले का रत्ताखेड़ा (कढ़ाम) गांव की। कहने के लिए तो यह एक साधारण सा गांव है, परंतु यहां के लोगों की सोंच और पर्यावरण के लिए कुछ करने का संकल्प शहर के लोगों से कई गुना ज्यादा है। 6 साल पहले तक यह गांव भी अन्य गांवों की तरह ही था, लेकिन अब यहां के पंचायत और ग्रामीणों द्वारा मिलकर किए गए कामों से यह एक अलग पहचान बना चुका है।
हर घर के बाहर नेम प्लेट के साथ रखा गया है डस्टबिन
रत्ताखेड़ा गांव में रहने वाला हर एक व्यक्ति स्वच्छता के लिए जागरूक है और यहीं इस गांव को बाकी गांव से अलग बनाता है। आज तक आपने कई गांव देखा होगा, लेकिन आज हम एक अनोखे गांव की बात कर रहे हैं। आमतौर पर हर किसी के घर के बाहर नेम प्लेट रहता है, परंतु यह पहला ऐसा गांव है जहां नेम प्लेट के साथ ही हर घर के आगे डस्टबिन रखा गया है। इसके अलावा यहां हर घर के आगे तथा अंदर पेड़ लगाने का मानो नियम ही बन गया है।
गांव के ही लोग खुद करते हैं साफ-सफाई
इस गांव की सबसे अच्छी बात यह है कि यहां रहने वाला हर व्यक्ति प्रकृति को लेकर जागरूक है और इन सभी में आपको काफी अच्छा भाईचारा देखने को मिल सकता हैं। रिर्पोट की मानें तो पिछले 5 सालों से इस गांव के किसी भी व्यक्ति के खिलाफ थाने में कोई रिपोर्ट नहीं गई है। गांव के सदस्य ही हर गली को साफ रखने का तथा पौधे की देखभाल करने की जिम्मेदारी लेते हैं। उन्हें उम्मीद है कि आने वाली पीढ़ी भी इस परंपरा को आगे बढ़ाएगी और स्वच्छता को प्रथम स्थान देगी। – In Ratkheda village of Punjab, a dustbin and a sapling have been planted outside every house with a name plate.
रत्ताखेड़ा गांव में कुलदीप बनी पहली महिला सरपंच
साल 2016 में पहली बार रत्ताखेड़ा गांव में महिला सरपंच बनी, जिसका नाम कुलविंद्र कौर (Kulwinder Kaur) हैं। सरपंच बनने के बाद उन्होंने ही इस बदलाव की मुहिम को शुरू किया। हालांकि इसे शुरू करने में कई तरह की समस्याएं आई, परंतु ग्रामीणों ने मिलकर सब का संविधान निकाला और इस मुहिम को आगे बढ़ाएं। सरपंच होने के बावजूद कुलविंद्र पूरे गांव के स्वच्छता की देखरेख खुद करती है और समय-समय पर वह हर गली तथा सड़क पर जाकर नए पौधे भी लगाती हैं।
गांव वालों ने साथ मिलकर गांव में लाया यह बदलाव
शुरुआत के दिनों में गांव के हर एक व्यक्ति से यह शपथ दिलवाया गया कि वह रास्ते पर या गलियों में कूड़ा नहीं फेकेंगे। इसके लिए केवल डस्टबिन का ही प्रयोग करेंगे। सरपंच कुलविंद्र के आज्ञा पर हर घर के बाहर डस्टबिन के साथ ही एक पौधा भी लगवाया गया, जिसमें गांव के ही लोग सुबह-शाम पानी डालते हैं। कुलविंद्र बताती हैं कि आज अगर उनका गांव स्वच्छ है तो इसका श्रेय ना केवल उनको बल्कि गांव की हर एक सदस्य को जाता है क्योंकि इस मुहिम में हर किसी ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया जिसका नतीजा है कि केवल 5 साल में अब इस गांव की तस्वीर ही बदल चुकी है।
यह गांव कई पुरस्कारों से हो चुका हैं सम्मानित
रत्ताखेड़ा गांव का हर निवासी इसे ना केवल एक मुहिम समझते हैं बल्कि जिम्मेदारी समझकर कार्य करते हैं। हालांकि गांव के पंचायत के पास इसके लिए आय नहीं था। ऐसे में यह गांव कोई भी नई मुहिम में एकजुट होकर कार्य करता है। इसमें भी सभी गांव वालों ने अपने आय के अनुसार कुछ हिस्सा दिया और मिलजुल कर पैसे एकत्रित कर इस दिशा में काम शुरू किए। इस कार्य के लिए उन्हें 8 मार्च 2017 को गांधीनगर में पीएम मोदी द्वारा और साल 2019 में प्रदेश सरकार द्वारा सम्मानित किया जा चुका हैं। इसके अलावा उन्हें जिला प्रशासन द्वारा भी कई बार सम्मानित किया जा चुका है। – In Ratkheda village of Punjab, a dustbin and a sapling have been planted outside every house with a name plate.