हमारे देश में ऐसी कई ऐतिहासिक इमारतें हैं जो देश के इतिहास से जुड़ा हुआ है। दिल्ली में स्थित राष्ट्रपति भवन (Rashtrapati Bhavan) एक ऐसी इमारत है जिससे देश का इतिहास जुड़ा हुआ है और जिसे अंग्रेजों के समय में व्हाइसरॉय हाउस कहा जाता था। ये इमारत दिल्ली को भारत की राजधानी बनाने में तो सहायता की, लेकिन इसके लिए कई घर उजड़ गए। जिस प्रकार हर जगह का इतिहास अच्छा और बुरा होता है उसी प्रकार राष्ट्रपति भवन का इतिहास भी कुछ ऐसा ही है।
इसी कड़ी में आज हम आपको भारत का शान राष्ट्रपति भवन से जुड़े कुछ ऐसी अनसुनी बातें बताने जा रहे हैं जिसे शायद ही आप लोग जानते होंगे। आइए जानते हैं-
बेहद विशाल राष्ट्रपति भवन
राष्ट्रपति भवन (President House of India) की भव्यता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसे पूरा घूमने के लिए 1 दिन कम पड़ जाएगा। राष्ट्रपति पैलेस के अंदर म्यूजियम, 300 कमरे, सेरिमोनी हॉल, स्टाफ के रहने की जगह गेस्ट रूम, बॉल रूम और एक बड़ा गार्डन मौजूद है। इटली के किरिनल पैलेस के बाद इसे सबसे बड़ा पैलेस माना जाता है। राष्ट्रपति भवन की सबसे खास बात उसका गुंबद है। इसी जगह से दिल्ली में “लुटियन्स” की शुरुआत हुई थी।
बनाने में लगा था 17 वर्षों का लम्बा समय
बहुत ही पुराने और विशाल इस भवन को बनाने में 17 वर्षों का लंबा समय लगा था। इतना लम्बा समय लग्ने के पीछे का कारण यह है कि इसके ढांचे को काफी मजबूत बनाना था और इसके आर्किटेक्चर को बनाने के लिए कई मजदूर की जरूरत थी। राष्ट्रपति भवन की नींव 1912 में रखी गई थी और ये 1929 में बनकर तैयार हुआ। इसे बनाने में 29000 वर्कर्स लगे थे। इसके अलावा इसके निर्माण में 700 मिलियन ईंटे और 3 मिलियन क्यूबिक फीट पत्थर इस्तेमाल किए गए थे।
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क्यों कहा जाता है इस भवन को लुटियंस का हिस्सा और क्या है रायसेना हिल्स का इतिहास?
दिल्ली के मध्य में स्थित ऐतिहासिक रास्ते से भरे इलाके और पुरानी इमारतों को लुटियंस कहा जाता है राष्ट्रपति भवन भी इसी का हिस्सा है।
दरअसल, राष्ट्रपति भवन को आर्किटेक्ट करने वाले व्यक्ति का नाम सर एडमिन लैंडसर लुटियन्स था। लैंडसर लुटियन्स अपनी भव्यता और दूरदर्शिता के लिए जाना जाता था यही कारण है कि इस पूरे क्षेत्र को लुटियन्स कहा जाने लगा।
इसके अलावा रायसीना हिल्स के बारे में बात करें तो राष्ट्रपति भवन को इसी पहाड़ी के ऊपर बनाया गया था।
राष्ट्रपति भवन निर्माण के लिए उजड़ गए थे कई गांव
अंग्रेजो द्वारा भारत की राजधानी कोलकाता से दिल्ली करने के लिए कई चीजों में बदलाव करना था। एक रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रपति भवन को बनाने के लिए दो गांव रायसीनी और माल्चा पूरी तरह से बर्बाद कर दिए गए थे और वहां रहनेवाले लगभग 300 परिवारों को बेघर कर दिया गया था। उस समय अन्ग्रेजी सरकार ने उसके लिए 15 रुपए प्रति एकड़ मुआवजा देने की बात की थी जो जमीन की कीमत के मुकाबले बहुत कम था। उन्हें लगभग 10 गुना कम मुआवजा दी गई थी जिसके लिए दिल्ली कोर्ट में केस भी चल रहा है।
राष्ट्रपति भवन में मौजूद है बेशकीमती वस्तुएं
बता दें कि राष्ट्रपति दरबार हॉल में चौथी या पांचवी सदी के गौतम बुद्ध की प्रतिमा रखी गई है। साथ ही कई ऐतिहासिक वस्तुएं और पेंटिंग्स भी मौजूद है। दुनिया भर से मिले तोहफे को रखने के लिए राष्ट्रपति भवन में एक गिफ्ट म्यूजियम भी है। इसके अलावा ब्रिटेन के किंग जॉर्ज 5 की चांदी की कुर्सियां भी रखी गई है जिसका वजन 640 किलो है। 1911 में राजा इसी कुर्सी पर दिल्ली दरबार में बैठते थे।
राष्ट्रपति भवन (Rashtrapati Bhavan) के मार्बल हॉल में कई 100 वर्ष पुरानी मूर्तियां और पेंटिंग्स रखी गई हैं। वह इसका अशोका हॉल में फतेह अली शाह, फारस के कजार रूलर्स आदि की पेंटिंग्स के साथ-साथ इतालवी पेंटर कोलोनेलो की फॉरेस्ट थीम पर बनाई गई पेंटिंग्स भी रखी गई हैं।
राष्ट्रपति भवन में बच्चों के लिए भी दो गैलरी बनाई गई है जिनमें से एक में बच्चों द्वारा बनाई गई कलाकृतियां रखी गई हैं, वहीं दूसरे में उनके लिए तरह तरह के आइटम मौजूद हैं। इसके अलावा भारत की शान कहा जाने वाला राष्ट्रपति भवन इनोवेशन और साइंस गैलरी भी मौजूद है जहां रोबोटिक डॉग से लेकर ऑडियो विजुअल डिस्प्ले समेत अन्य बहुत सारी चीजें मौजूद हैं।
कोरोना काल से पूर्व राष्ट्रपति भवन में मौजूद मुगल गार्डेन (Mughal Garden) को आम नागरिकों के लिए प्रति वर्ष फरवरी महीने में खोला जाता था। बता दे कि मुगल गार्डन में दुनिया भर के फूलों की अलग-अलग प्रजातियां मौजूद हैं।
राष्ट्रपति भवन (President House of India) में कुछ गलियारे ऐसे हैं जिनसे सीधे इंडिया गेट पर निकला जा सकता है। वाकई, भारत की शान राष्ट्रपति भवन भव्य और अनोखा है।
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