Monday, December 11, 2023

मुगलों की थाली से ताज नगरी की पहचान तक, वर्ल्ड वाइड फेमस पेठा केवल आगरा में ही क्यों बनता है?

ताज नगरी के अलावा आगरा अगर किसी दूसरे नाम से मशहूर है तो वह है “पेठा नगरी” आगरा और पेठा का संबंध मुगलकालीन (Mughal Era sweet dish)दौर से है। पेठा आगरा की रवायत है जो कोई यहां आता है वह इस मिठाई से रूबरू जरूर होता है। घरेलू ही नहीं बल्कि विदेशी सैलानी भी इसे खरीदना नहीं भूलते। ऐसे में क्या आपके मन में कभी सवाल आया है कि आगरा पेठे के लिए इतना मशहूर कैसे बना? कब से इसे बनाने की शुरुआत हुई ? और खास तौर पर यह बनता कैसे है? तो आइए इन सभी सवालों का जवाब हम आपको बारी – बारी से देंगे।

मुगलकालीन दौर से हुई पेठा बनाने की शुरुआत

आगरा में पेठा बनाने की शुरुआत मुगल बादशाह शाहजहां (Mughal emperor Shah Jahan) के दौर से शुरू हुई थी। लेकिन तब ये कोई मिठाई नहीं बल्कि दवा के तौर पर इस्तेमाल की जाती थी। पेठा कारोबारियों के अनुसार शाहजहां के राजवैद्य को कुम्हड़ा फल का बीज यमुना नदी के किनारे मिला था, उसने ही इसका पेड़ यहां लगाया और औषधि के रूप में इसका उपयोग किया गया। कभी पेठा मुगल बादशाहों की थाली में सजता था आज वह देश विदेश में लोगों की जुबां पर घुल गया है। ये स्वाद का एक लंबा सफर है।

Varieties of Petha

इतने किस्म की सब खरीदने का मन चाहे

1940 के दशक में एक या दो तरह का पेठा ही बाजार में मौजूद था लेकिन समय के साथ अब अलग – अलग दामों में कई तरह के पेठे (Varieties of Petha) बाजार में मौजूद हैं। पान गिलोरी, गुजिया पेठा, चोकलेट कोको, लाल पेठा , दिलकश पेठा, पिस्ता पसंद, पेठा रस भरी, पेठा मेवावाटी, शाही अंगूर, पेठा बर्फ़ी, पेठा कोकोनटस, संतरा स्पेशल, पेठा चेरी, पेठा शालीमार, गुलाब लड्डू। ये लिस्ट काफी लंबी है।

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इस तरह समय के साथ बदलता गया रंग, स्वाद,रूप

1945 के बाद पेठे के स्वाद में बदलाव का दौर शुरू हुआ था। इसको गोदकर और खांड के स्थान पर चीनी और सुगंध का प्रयोग करते हुए सूखा पेठा के साथ रसीला पेठा भी बनाया जाने लगा जिसे अंगूरी पेठा कहा जाता है। “चीनी और सुगंध के बाद पेठे में केसर और इलाइची के साथ नए ज़ायक़े का उदय हुआ।”

1958 के बाद सूखे मेवे पिस्ते, काजू, बादाम आदि का भी प्रयोग किया जाने लगा। जो धीरे धीरे देश विदेश की पसंद बनता चला गया। वर्षों तक यही स्वाद लोगो की ज़ुबान पर छाया रहा। फिर सन 2000 के बाद पेठे के स्वाद की दुनिया में क्रांतिकारी बदलाव आया और सैंडविच पेठा जिसमें की काजू, किशमिश, चिरोंजी आदि का पेस्ट बनाकर पेठा बनाया गया।

Varieties of Petha

जटिल है पेठा बनाने की विधि

पेठा बनाने की प्रक्रिया (Method to make Petha) काफ़ी जटिल और मेहनत का काम है। पेठे को धोकर उसके 4 टुकड़े कर लिए जाते है। बीज वाला हिस्सा और छिल्कों को अलग कर जो गूदा बचता है उसे एक विशेष प्रकार की गोदनी से गोदा जाता है।

गोदन प्रक्रिया के बाद पेठे के टुकड़ों को लगभग एक घंटे तक चूने के पानी में डाला जाता है। इसके बाद सांचों की मदद से छोटे छोटे टुकड़े काटकर 100 किलो पेठा 400 लीटर पानी से तीन बार धोया जाता है। जब यह टुकड़े पूरी तरह साफ़ हो जाते है तो इनको उबाला जाता है।

उबालते समय पानी में ज़रा सी फिटकरी डाली जाती है ताकि चूने का कोई भी अंश शेष न रह जाए। फिर चीनी की पतली चाशनी के घोल में इनको डालकर दो से तीन घंटे तक उबाला जाता है।

अगर सूखा पेठा बनाना है तो चाशनी पूरी तरह मिल जाने पर पेठे को सुखा लिया जाता है और गीला पेठा बनाना हो तो चाशनी की निर्धारित मात्रा बचने पर पेठे को आग से उतारकर सुखाया जाता है।

इस तरह तैयार हो जाती है कोलस्ट्रोल रहित, औषधीय गुणों (Medicinal Petha) से युक्त पेठे की मिठाई।

Varieties of Petha

आगरा के अलावा कहीं और क्यों नहीं बन पाता पेठा?

बीबीसी की रिपोर्ट अनुसार पेठा बनाने के जानकार प्राचीन पेठा के मालिक राजेश अग्रवाल बताते है “आगरा के पानी में वो तासीर है जो पेठे जैसे कसैले फल को भी स्वादिष्ट मिठाई में बदल देती है। यहाँ बनने वाला पेठा स्वादिष्ट और चमकीला होता है। यह 15 दिनों तक ख़राब भी नहीं होता। इसके विपरीत यदि आगरा के अलावा इसे बनाने का प्रयास भी किया गया तो न तो वह चमक आई न स्वाद। दो तीन दिन बाद ही इसका प्राकर्तिक रूप भी बदलकर काला होने लगता है। वर्षों से पेठा बनाने वाले कारीगर भी आगरा में ही मौजूद है लगभग 15,000 से ज़्यादा व्यक्ति इस व्यवसाय से जुड़े है। साधारण दिनों में आगरा में लगभग 18 से 20 टन पेठा बनता है। इसकी खपत त्योहारों और शादियों के समय ज़्यादा हो जाती है।