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गरीबी झेली और जूते तक नही मिले, फिर भी हॉकी में इनकी कामयाबी के सिक्के चले: वंदना कटारिया

“जीवन के सफर में जो संघर्ष करते आगे बढ़ता जाता है,
वही इंसान आगे चलकर मुकद्दर का सिकन्दर कहलाता है”..

जीवन में आने वाले हर संघर्ष और चुनौती का सामना करना मनुष्य का कर्तव्य है। इसी से मनुष्य के जीवन में बदलाव संभव है जिससे जीवन सार्थक बनता है। संघर्ष जितना बड़ा होगा,सफलता भी उतनी ही बड़ी होगी। बिना संघर्ष के जीवन कुछ नही है। यदि आप किसी और के कमायें हुए पैसे खर्च करते है तो उतनी सुख की अनुभूति नही होती जितना अपना कमाया हुआ पैसे खर्च करके पर होती है।

कर्म और संघर्ष हमें जीवन में आगे बढ़ना सिखाते हैं। जो मुश्किलों का सामना करता है वहीं जीवन में सफल हो सकता है। आज हम कभी जूते और जर्सी के लिए संघर्ष करने वाली वंदना कटारिया के बारे में बताएंगे जो आज हॉकी के खेल के जरिए भारत का नाम पूरी दुनिया में रौशन की हैं। उन्होंने महिला हॉकी टीम में अपनी एक खास जगह बनाई है। लेकिन तमाम संघर्ष के बीच वंदना के लिए यह आसान नही था। आइए जानते हैं उनके संघर्ष के बारे में। (Vandana Katariya success)

आभाव में बीता बचपन
(Vandana Katariya success)

उत्तराखंड के हरिद्वार की रहने वाली वंदना कटारिया (Vandana Katariya) का बचपन काफी आभाव में बीता।उनका परिवार बहुत ही गरीब था।वंदना कटारिया को बचपन से ही राष्ट्रीय खेल हॉकी से काफी लगाव था। उन्होंने कभी हॉकी स्टिक तो कभी जूतों के लिए संघर्ष किया उनके परिवार के पास इतने पैसे नहीं थे कि वो उन्हें जर्सी या जूते दिला सकें। वदंना के लिए हॉकी खिलाड़ी बनने के अपने सपने को पूरा करना इतना आसान नहीं था। उनके पड़ोसी और घर के कुछ लोग नहीं चाहते थे कि वह अपने सपनों को पूरा करें। यहां तक कि उनकी दादी भी चाहती थी कि वह घर के कामों में हाथ बटाएं।

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पिता ने किया सहयोग (Vandana Katariya success)

वंदना के पिता पहलवान थे उन्होंने वंदना का समर्थन किया और पेशेवर रूप से खेल को आगे बढ़ाने में मदद भी की। पिता का सहयोग पाकर वंदना ने हॉकी खेलने की शुरूआत की। वो अक्सर अभ्यास के लिए बाहर निकल जाती थी,लेकिन शुरुआती दिनों में उसके पास प्रशिक्षण के लिए उचित उपकरण नहीं थे। वह अपने कौशल को निखारने के लिए पेड़ की शाखाओं के साथ अभ्यास करती थीं। एक पल तो ऐसा भी आया था जब पिता को पैसों के लिए संघर्ष करते देख उन्होंने अपने सपनों को तोड़ने का निश्चय कर लिया था।

Hockey player Vandana katariya

कोच ने की मदद (Vandana Katariya success)

तमाम संघर्षों के बीच वंदना की मुलाकात कोच प्रदीप चिन्योती से हुईं। उन्होंने वंदना को एक स्कूल टूर्नामेंट में देखा और पहली बार भारत की तरफ से खेलने में उनकी मदद की। वंदना ने ट्रेनिंग लेनी प्रारंभ की। कोच ने वंदना को उचित प्रशिक्षण देने के लिए उनका बेस मेरठ शिफ्ट कर दिया।कड़ी मेहनत और क्षमता ने जल्द ही उन्हें परिणाम दिया। इसके तुरंत बाद उन्हें भारत की जूनियर महिला टीम के लिए खेलने का पहला मौका उन्हें मिला। उन्होंने जल्द ही जूनियर स्तर पर अपनी छाप छोड़नी शुरू कर दी और जर्मनी के मोनचेंग्लादबाक में 2013 जूनियर विश्व कप में भारत के कांस्य पदक जीतने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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अपने देश का नाम रौशन (Vandana Katariya)

वंदना ने भारत की ओर से हॉकी में अच्छा प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। उन्होंने रियो 2016 के बाद भारत की महिला हॉकी टीम का नेतृत्व भी किया। 2016 एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी के लिए सुशीला चानू की भूमिका निभाई। उनके नेतृत्व में भारत ने फाइनल में चीन को 2-1 के अंतर से हराकर 2016 एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी जीती थी। उनके शानदार प्रदर्शन मेलबर्न में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट सीरीज़ के लिए राष्ट्रीय टीम के कप्तान के रूप में बरकरार रखा गया। वंदना कटारिया को आज किसी पहचान की मोहताज नहीं है। उनके उत्कृष्ट कार्यों को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान में से एक पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया हैं।

आज वह उन लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणा हैं जो आभाव में अपने सपनों को छोड़ देती हैं। कठिन परिस्थिति को जो पार कर लेता है वही जीवन में आगे बढ़ पाता है वंदना कटारिया ने यह साबित कर दिया है। देशवासियों को उनसे सीखने की आवश्यकता है।

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Shubham वर्तमान में पटना विश्वविद्यालय (Patna University) में स्नात्तकोत्तर के छात्र हैं। पढ़ाई के साथ-साथ शुभम अपनी लेखनी के माध्यम से दुनिया में बदलाव लाने की ख्वाहिश रखते हैं। इसके अलावे शुभम कॉलेज के गैर-शैक्षणिक क्रियाकलापों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं।

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