समय और जगह का उपयोग भारतीय ग्रहणी से बेहतर कोई नहीं समझ सकता। दिल्ली की रहने वाली रुचिका जो कि एक ग्रहणी है। इन्होंने प्राकृतिक सुंदरता से प्रेरित होकर अपने घर की छत पर एक जैविक बागवानी को लगाया है।
रुचिका हमेशा से ही इस प्रकृति में कुछ योगदान देने के लिए एक इच्छुक रहती थी इसलिए इन्होंने अपने घर के छत पर 2200 वर्ग फीट की बागवानी का निर्माण किया। अपने परिवार के सेहत का ध्यान रखते हुए रुचिका हमेशा ही अनैतिक, हानिकारक कीटनाशकों और प्राकृतिक रसायनों के साथ उत्पादित सामग्रियों से परहेज करती थी।

रुचिका अपने बागान में मौसमी सब्जियां उगाते हैं जैसे पालक, मेथी, ब्रोकोली, लौकी, करेला, भिंडी, खीरा इत्यादि। साथ ही साथ इस बागानी में तुलसी, मेहंदी, अजवाइन, अजमोद, मरजोराम, ऋषि, नीम, पुदीना, लेमन ग्रास, कड़ी पत्ते और हल्दी जैसे कुछ औषधियां और जड़ी बूटियां उगाती हैं।
बागान की मिट्टी तैयार करने के लिए रुचिका घर के बने खाद और गोबर का इस्तेमाल करती है। मिट्टी को पोषक तत्वों से भरपूर रखने के लिए वह हमेशा ही मिट्टियों का रोटेशन और नियमित रूप से उसे ढीला करती रहती है।साथ ही साथ वह मिट्टी के पीएच स्तर, पोटैशियम, फास्फोरस, कैल्शियम, मैग्नीशियम और सल्फर जैसी चीजों पर निरंतर जांच के लिए परीक्षण किट का इस्तेमाल करती हैं।
बागान में कीट प्रबंधन के लिए हर 10 दिन पर नीम के तेल का छिड़काव करती है और इस कीटनाशक का निर्माण वह अपने घर पर ही करती हैं। कीटनाशक के निर्माण में वे लहसन, मिर्च, और नीम की पत्तियों से करती है। इसके साथ ही बायोम्स के उत्पादन के लिए वह प्याज, लहसुन, मिर्च आदि का प्रयोग करती हैं। लेकिन इसके बनाने की विधि पहले कीटनाशक की की विधि से थोड़ी अलग है।

बागान में उपयोग किए गए बीजों का संरक्षण व स्वयं करती है। हर मौसम वह बीजों को संरक्षित कर लेती है या स्थानीय किसानों से बीज खरीदती हैं। वह इन बीजों को अपने परिवार और दोस्तों के साथ साझा भी करती हैं इसके अलावा इंस्टाग्राम फॉलोअर्स को मुफ्त में सैंपल देती है।
रुचिका बताती है कि इस काम में उनकी उनकी सबसे बड़ी बाधा बागान का सीमित स्थान है क्योंकि यह उन्हें फल और विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों को जोड़ने से रोकता है। कभी-कभी गर्मियों में बागान में काम करना मुश्किल हो जाता है और साथ ही साथ क्षेत्र में पानी की भी कमी हो जाती है। रुचिका मानती है इस काम को करने का सबसे बड़ा इनाम यह जानना है कि, ‘यह पौधे मेरे जागने का इंतजार कर रहे हैं और मुझसे बहुत प्यार करते हैं।’ उनके मुताबिक यह पौधे उनसे बात करते हैं और उन्हें खुशी देते हैं। इन पौधों के साथ होने पर वह स्वस्थ महसूस करती हैं। खुले आसमान के नीचे बने पौधों और मिट्टी के संगम से उनकी भावनाएं संतुलित हो जाती है।

रुचिका एक संचार समूह से जुड़ी है जहां वह दूसरों को बायोएनजैम और जैविक बागवानी जैसे तकनीकों का अभ्यास कराती हैं। लेकिन अभी कोविड-19 के कारण यह सारे अभ्यास मुफ्त ऑनलाइन जानकारी सत्र में आयोजित किए जाते हैं। वह अपने पड़ोसियों और दोस्तों के पास जाती हैं और उन्हें इसका प्रशिक्षण देती है और पुणे मुफ्त में अंकुर और जैविक सब्जियों के नमूने देती हैं। इसके अलावा अतिरिक्त उत्पाद को मंदिर में दान देती हैं जिससे गरीबों को खाना खिलाने में मदद हो सके।
