Wednesday, December 13, 2023

मूली की खेती करने के लिए रखें इन बातों का ध्यान, होगा बेहतर उत्पादन

मूली बेहद हीं पौष्टिक सब्जी मानी जाती है। इसका प्रयोग हम सब्जियों से लेकर सलाद के रूप में करते हैं। आज हम मूली की खेती के बारे में बात करने जा रहे हैं। हमारे देश में मूली की खेती लगभग सभी क्षेत्रों में की जाती है। सभी किसान सब्जियों की अन्य फसलों की मेढ़ों पर या छोटे-छोटे क्षेत्रों में मूली लगाकर आय अर्जित करते हैं।

शीत ऋतु में भी कृषक इसकी फसल को 30 से 60 दिन में तैयार कर पुनः बुआई कर दो बार उपज प्राप्त कर लेते हैं। यह फसल कम खर्च में अधिक उत्पादन देने वाली है। इसे मुख्य तौर पर सलाद के लिए उत्तम माना जाता है। जड़ वाली सब्जियों में इनका प्रमुख स्थान है। इनकी खेती सम्पूर्ण भारत वर्ष में की जाती है।

Radish

मूली स्वास्थ्यवर्धक होता है

अगर मूली की स्वाद की बात करें तो इसका तीखा स्वाद होता है, इसका उपयोग नाश्ते में दही के साथ पराठे के रूप में भी किया जाता है। इसकी पत्तियों की भी सब्जी बनाई जाती है। मूली विटामिन सी एवं खनीज तत्व का अच्छा स्त्रोत है। मूली लिवर एवं पीलिया मरीजों के लिए भी अनुसंशित है। यदि उत्पादक मूली की खेती वैज्ञानिक तकनीक से करें, तो इसकी खेती से अधिक उपज के साथ-साथ अच्छा लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

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मूली की खेती

मूली अधिक तापमान के प्रति सहनशील है। किन्तु सुगंध विन्यास और आकार के लिए ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है। अधिक तापमान के कारण जड़ें कठोर और चरपरी हो जाती है। मूली कि सफल खेती के लिए 10 से 17 डिग्री सेल्सियस तापमान सर्वोत्तम माना गया है। मूली के उत्तम उत्पादन के लिए उचित जल निकास वाली रेतीली दोमट और दोमट भूमि अधिक उपयुक्त रहती है। मटियार भूमि मूली कि फसल उगाने के लिए अनुपयुक्त रहती है, क्योंकि इस में भूमि के ऐसी जड़ों का समुचित विकास नहीं हो पाता है।

मूली की खेती के लिए गहरी जुताई कि आवश्यकता होती है, क्योंकि इसकी जड़ें भूमि में गहरी जाती है। गहरी जुताई के लिए मिटटी पलटने वाले हल से जुताई करें। इसके बाद दो बार कल्टीवेटर या देशी हल चलाएँ जुताई के बाद पाटा अवश्य लगाएं, ताकि भूमि समतल और भुरभुरी हो जाये।

मूली की खेती में निराई-गुड़ाई

Radish cultivation

यदि खेत में खरपतवार उग आये हों तो आवयकतानुसार उन्हें निकालते रहना चाहिए। रासायनिक खरपतवारनाशी जैसे पेन्डिमीथेलिन 30 ई सी 3.0 किलोग्राम 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से बुआई के 48 घंटे के अन्दर प्रयोग करने पर प्रारम्भ के 30 से 40 दिनों तक खरपतवार नहीं उगते हैं। निराई-गुड़ाई 15 से 20 दिन बाद करना चाहिए। मूली की खेती में उसके बाद मिटटी चढ़ा देनी चाहिए। मूली की जड़ें मेड़ से उपर दिखाई दे रही हों तो उन्हें मिटटी से ढक दें अन्यथा सूर्य के प्रकाश के सम्पर्क से वे हरी हो जाती हैं।

अगर बोआई के समय भूमि में नमी की कमी रह गई हो तो बोवाई के तुरंत बाद एक हल्की सी सिंचाई कर दें। वैसे वर्षा ऋतु की फसल में सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है। परन्तु इस समय जल निकास पर ध्यान देना आवश्यक है। गर्मी की फसल में 4-5 दिन के अन्तराल पर सिंचाई की आवयकता पड़ती है। शरदकालीन फसल में 10-15 दिन के अन्तर पर सिंचाई करते हैं। मेड़ों पर सिंचाई का पानी आधी मेड़ तक ही सीमित रखना चाहिए ताकि पूरी मेड़ नमीयुक्त व भुरभुरी बनी रहे। यदि नियमित ढंग से मूली की खेती की जाय तो किसानों को अच्छा खासा मुनाफा हो सकता है।