यात्रा के दौरान अक्सर हम बहुत से निर्माणाधीन ब्रिज को देखते हैं जिन्हें देखकर लगता है कि आखिर इसके निर्माण में इंजीनियर ने ऐसा क्या किया है जिससे यह बेहद आकर्षक और टिकाऊ है?? अक्सर लोगों को इसके विषय में जानने की इच्छा होती है लेकिन ये बात हर कोई नहीं जानता। कभी-कभी तो ब्रिज को देखकर ऐसा लगता है कि ये कोई मनुष्य कैसे बना सकता है? अब जैसे हावड़ा ब्रिज को हो ले लीजिए इसके निर्माण में एक भी खम्भे के उपयोग नहीं हुआ है जिस कारण इसे देखने के हमेशा शैलानियों की भीड़ लगी रहती है।
ऐसे में आज हम आपको ये जानकारी देंगे कि आखिर किस तरह ब्रिज का निर्माण किया जाता है। आप स्टेप-बाई-स्टेप इसके निर्माण के विषय में पढ़ेंगे भी और साथ ही एक वीडियो भी देखेंगे जिससे आप सरलता से ये समझ जाएंगे कि ब्रिज के निर्माण में कितना वक्त, कौन-कौन सी समाग्री लगती है।
- ड्रोविंग के अनुसार होता है हर कार्य
अगर आप कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्रीज में देखेंगे तो इसमें महत्वपूर्ण होता है लेआउट प्लान (Layout plan) और स्ट्रक्चर ड्रोविंग ( stacture Drawing) क्योंकि इसमें सारी जानकारी दी होती है। पाइल की बोरिंग के लिए अगर बोरिंग मशीन (Auger boring machine) का उपयोग किया जाता है। बोरिंग होने के बाद यहां कोर एग्जीक्यूशन किया जाता है। कोर एग्जीक्यूकेशन का मतलब ये हुआ कि यहां आप कंक्रीट, बालू को डलाते हुए प्रोसीजर को फॉलो करें। इस बोरिंग मशीन में ड्रिलिंग के लिए कटर लगा होता है जिससे मिट्टी को डम करके बाहर निकाला जाता है।
बोरिंग के बाद इसमें एक लिक्विड डाला जाता है जिसे बेन्टोनाइट पॉलियुमर मिक्स कहा जाता है। इससे जो बालू बोरिंग होल में डाला गया है वह हार्ड हो जाएगा। ताकि बालू गीला होने के कारण पिघलकर बह ना जाए। आगे के एक बकेट की मदद से बोरिंग होल में सॉलिड पर्टिकुलर को डाला जाएगा। आगे यहां एक सॉनिक लॉजिक मेजरमेंट टेस्ट होता है। जिसमें ये पता चलेगा कि जो भी कार्य बोरिंग होल में हुआ है वह सही हुआ है या नहीं।
- किया जाता है सॉनिक लॉजिक टेस्ट
साथ ही ये भी पता चलता है पाइल का डाया सही है या नहीं। ये गोलाकार पाइल 1200 mm का होता है। इससे ये पता चलता है कि ये डिस्टर्ब तो नहीं हो रहा। इसलिए ये सॉनिक लॉजिक मेजरमेंट टेस्ट जरूरी है। आगे यहां एक स्टील का केसिंग इन किया जाता है। ये कार्य क्रेन गाड़ी के द्वारा किया जाता है क्योंकि ये ऐसे तो किसी मनुष्य द्वारा सम्भव ही नहीं है। ये केसिंग इसलिए होता है कि बोरिंग होल में जो भी कार्य हो वह सही तरीके से हो।
केसिंग के बाद रिंग फोर्समेंट केज पर कार्य शुरू होता है। ये सारे कार्य ड्रोविंग के अनुसार ही होगा। ये केज बहुत ज्यादा भारी होता है जिस कारण इसे भी हाइड्रोलीक क्रेन के द्वारा ही डाला जाता है। ये केज किसी वायर से बांधा नहीं जाता बल्कि इसे इलेक्ट्रिक द्वारा बिल्ड किया जाता है ताकि यह मजबूत हो जिस कारण जब इसमें कंक्रीट डाला जाए तो ये खुले नहीं।
- टरमाइट टयूब का होता है उपयोग
आगे इसमें कंक्रीट डालने के लिए एक ट्यूब का उपयोग किया जाता है जिसे टरमाइट ट्यूब कहा जाता है। ऐसे ही धीरे-धीरे पूरे पाइल की कन्क्रिटिंग सम्पन्न की जाएगी। कन्क्रिटिंग पाइल से थोड़ा ज्यादा यानि उसकी ऊंचाई बढ़ा दी जाएगी और आगे इसे मैकेनिकल या फिर किसी मशीन द्वारा काटकर दिया जाता है। ये सारी चीजें ड्राविंग में दी हुई रहती है ताकि हर चीज आसानी से और सही तरीके से हो सके।
वीडियो यहाँ देखें:-👇👇
जो कंक्रीट कटऑफ लेवल से थोड़ा ऊपर उठाकर हटा दिया जाता है उसे पाइल चिपिंग बोला जाता है। यहां सिर्फ रिंग फोर्समेंट नहीं निकलता बल्कि कंक्रीट ही निकलता है। ड्रोविंग में ये बताया गया होगा कि आपको पाइल चिपिंग किस तरीके से करना है। ये मैनुअली होगा या फिर मेकैनिकली। ये कार्य अच्छी तरह करने के बाद आपको आगे यहां इसे बैंड करना होता है।
- वजन के लिए किया जाता पाइल कैप का निर्माण
ये बैंड इसलिए होता है ताकि ये खूबसूरत लगे और एक कैप द्वारा सम्पन्न किया जा सके। आगे का प्रोसेस पाइल कैपिंग रिंग फोर्सेमेन्ट अलाइन करने का होगा। पाइल कैप आपके रिंग फोर्समेंट के ऊपर होता है। ये कार्य कटऑफ लेवल पर होगा। ये पाइल कैप इसलिए बनाया जाता है ताकि जो डायरेक्ट लोड पियर से आ रहा है वह डायरेक्ट पाइल पर हीट ना करके पाइल कैप में आए।
पाइल कैप में जाने के बाद लोड की इंटेंसिटी कम होती है। जितना लोड का ट्रैवलिंग अधिक होगा इसकी इंटेंसिटी कम होगी। जिससे आपका स्ट्रक्चर सेफ होगा। आगे रिंग फोर्समेंट डायरेक्ट नहीं हो इसलिए ये कार्य पीसीसी (PCC) पर किया जाएगा। पीसीसी के ऊपर कंक्रीट ब्लॉक डाला जाएगा फिर इसके ऊपर रिंग फोर्समेंट डाला जाएगा। ये रिंग फोर्समेंट पाइल कैप का बॉटम मेस डाला जाएगा।
- ऐसे ड्रोविंग के साथ होता है ब्रिज का निर्माण
पाइल कैप में बॉटम मेस तथा टॉप मेस होता है और बीच में चेयर लगा होता है। ये चेयर टॉप मेस तथा बॉटम मेस दोनो को होल्ड करके रखता है इसलिए ये आवश्यक है। साथ ही इससे नीचे की तरफ झुकाव भी नहीं होगा। ये होने के बाद आगे का कार्य पियर का होगा जो सारे कार्य बार बेन्डर बेहद सावधानीपूर्वक करते हैं। पियर को कन्क्रिटिंग द्वारा तैयार करने के बाद वियरटिंग प्लेट लगेगा और फिर गढर लगेगा। ये गढर सुपर स्ट्रक्चर में आता है। अब पूरा ड्रोविंग होने के बाद यहां गढर की प्रक्रिया शुरू किया जाएगा जिसका भी पूरी तरह ध्यान रखा जाएगा। ये सारी चीज ड्रोविंग में दिया गया होगा कि आपको कौन से गढर का उपयोग करना है। अब ये सारा काम सपंन्न होने के बाद ब्रिज बनकर तैयार हो चुका होगा।