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150 माता-पिता को पाल रहा है यह युवक, बेघर बुजुर्गों को सम्मान से जीने का सुविधा दे रहा है

“बुज़ुर्गों का आशीर्वाद ज़ाया कहां होता है,
ठंडक वहां भी होती है, सूखे पेड़ का साया जहां होता है…….”

“मौका मिले तो किसी के लिये ‘सारथी’ बनने का प्रयत्न करना स्वार्थी नही होता”

इन दोनों कथनों को पढ़कर बेशक ही आपके मन में ये ख़्याल ज़रुर आया होगा कि ये तो आपस में एकदूसरे से बिल्कुल भिन्न हैं। लेकिन, हैदराबाद(Hyderabad) के एक युवा इंजीनियरिंग ग्रेजुएट जैस्पर पॉल (Jaspar Paul) ने अपने साथ हुए एक हादसे के बाद जिंदगी जीने के दोबारा मिले मौके से प्रेरित होकर असहाय व बेघर बुज़ुर्गों और बेसहारा लोगों के लिए स्वंय को समर्पित करते हुए उनके लिए एक सारथी की भूमिका निभा रहे हैं।

जैसपर ने जीने के अपने ‘दूसरे मौके’ को बनाया बुज़ुर्गों के लिए ‘सेंकड चांस’

आज के समय में अधिकांश लोग जब अपने वृद्ध माता-पिता को खुद पर आर्थिक अथवा शारीरिक रुप से बोझ समझते हुए या तो उन्हें वृद्धाश्रम या फिर धोखे से कहीं छोड़ आते हैं। ऐसे में जैस्पर ने अपने साथ हुए हादसे और ईश्वर द्वारा ज़िदगी जीने के दोबारा मिले मौके से प्रेरणा लेते हुए खुद के जीवन को ज़रुरतमंदों के लिए समर्पित करने का मन बना लिया है।

Jaspar Paul gives home to homeless

अपने जीवन में भंयकर हादसे का शिकार हो चुके हैं जैस्पर पॉल

हैदराबाद निवासी व इंजीनियरिंग ग्रेजुएट 25 वर्षीय जैस्पर पॉल साल 2014 में खुद एक भंयकर हादसे का शिकार हो चुके हैं जिसमें एक दुर्घटना के चलते उनकी कार ने सड़क पर तीन बार पलटी खाई। तब वे केवल 19 साल के ही थे। लेकिन वो कहावत है न कि – “जाको राखै साईंया, मार सके न कोई” और शायद उनके द्वारा समाज के लिये एक नेक कार्य करवाने हेतु भगवान ने उनकी जान बचा ली और जैसपर को जिंदगी जीने का ‘सेंकेड़ चास’ दिया।

2017 में की सेकेंड चांस की शुरुआत

अपने मकसद को साकार करने के लिए व बेघर और बेसहारा लोगों की सहायता के लिए पॉल तीन सालों तक शहर के अन्य शेल्टर होम्स् और सामाजिक संगठनों के साथ काम करते रहे। इस दरम्यान उन्हे ये महसूस हुआ कि शायद उनके काम में कहीं कोई कमी है। ऐसे में उन्होंने 2017 में ‘सेकेंड चांस’ नामक शेल्टर होम(Second Chance- Shelter Home) की शुरुआत की। क्योंकि उनके साथ पूर्व में घटित हुए हादसे ने उन्हे भी जिंदगी जीने का सेकेंड चांस दिया था। जिसके बाद वो पूरी तरह दृढ़ संकल्पित थे कि अब लाइफ में उन्हे समाज सेवा की दिशा में ही कुछ करना है। ऐसे में उन्होंने ज़रुरतमंदों के लिए बनाये गए इस शेल्टर होम को भी Second Chance नाम देना ही बेहतर समझा।

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वर्तमान में हज़ारों लोगों का मिल रहा है साथ

हांलाकि आरंभ में पॉल पूरी तरह से किंकर्तव्यविमूढ़ता की स्थिति में थे कि उन्होंने समाजसेवा का मन तो बना लिया है लेकिन वह कैसे लोगों की मदद करें, इस काम के लिए फंड कहां से आएगा आदि। लेकिन उनके इस सद्कार्य में जल्द ही पॉल को न केवल काफी लोगों का साथ मिलने लगा बल्कि वर्तमान में करोड़ों रुपये की फंडिंग भी लोगों द्वारा की जा रही है।

बेहद लाचार व शारीरिक अस्वस्थ महिला को सड़क पर पड़े देख पॉल हुए प्रेरित

मीडिया से हुई बातचीत में जैस्पर पॉल बताते हैं – “किसी कार्यवश एक दिन हैदराबाद स्थित सिकंदराबाद रेलवे स्टेशन पर जाते हुए मेरी नज़र अचानक ही फुटपाथ पर लेटी एक वृद्ध व चोटिल महिला पर पड़ी। वह महिला इतनी अशक्त थी कि अपने घावों पर आ रही मक्खियों को भी नही हटा पा रही थी। वृद्धा से उसकी इस अवस्था के बारे में पूछने पर उसने बताया कि वो न केवल बेसहारा है बल्कि काफी समय से उसे ये चोटें लगी हुई हैं। ऐसे में मैंने एक पुलिस कॉंस्टेबल की मदद से महिला को अस्पताल पहुंचाया। महिला के ठीक होने के बाद उन्हे एक शेल्टर होम में भर्ती करवाया और उनका वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट किया। जिसका रिज़ल्ट ये रहा कि महिला के परिवार वाले हैदराबाद आकर उन्हे ले गये।“

6 डॉक्टरों की टीम भी रखी गई है सेकेंड चांस में

बीमार आश्रितों की देखभाल के लिये यहां 6 डॉक्टरों की टीम भी रखी गई है। जो बिना किसी फीस के उनकी मदद करते हैं। जिन्हें ज़्यादा चिकित्सा की जरूरत नहीं होती है उन्हें बाकी दो केंद्रों पर रखते हैं, एक चेरापल्ली में और दूसरा घाटकेसर में है। जहाँ उनके रहने, खाने, सोने आदि का पूरा इंतजाम किया गया है। इन डॉक्टरों में से एक, डॉ. जी. एस. कार्तिक कहते हैं- “मैं अपने एक दोस्त के साथ पॉल के सेंटर पर गया था। उनके आश्रय गृह में जब मैंने उनका काम देखा तो मुझे लगा कि यह करने के लिए जज्बा चाहिए। उनके पास इस तरह के घायल लोग आते हैं जिनके घावों में कीड़े लगे हुए होते हैं बदबू आ रही होती है। पर वह कभी किसी से मुँह नहीं फेरते, बल्कि उनके घावों को खुद साफ़ करके उनकी पट्टी करते हैं जो बेहद ही सराहनीय कर्म है”

‘सेकेंड चांस’ में सारे काम तय प्रोसिज़र के तहत होते हैं

पॉल के मुताबिक – “बेसहारा लोगों को मदद पहुंचाने का सारा काम एक पूर्व निश्चित प्रोसिज़र के मुताबिक होता है जिसमें हमनें अपना एक कॉन्टेक्ट नंबर जारी किया है। किसी बेसहारा व्यक्ति के मिलने पर आप हमें इस नंबर पर कॉल कर सकते हैं। हम पूरी तरह से हैदराबाद पुलिस और अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं के संपर्क में भी रहते हैं। वर्तमान में हैदराबाद में हमारे किराये पर लिये हुए तीन केंद्र हैं। सबसे पहले अस्वस्थ व ज़रुरतमंद वृद्ध को रेस्क्यू करके यापरल स्थित पहले केंद्र पर ले जाया जाता है, जहाँ पर उन्हें सबसे पहले आवश्यक चिकित्सा दी जाती है फिर उन्हें नहला-धुलाकर साफ कपड़े पहनाये जाते हैं फिर खाना खिलाया जाता है” बता दें कि डॉ. कार्तिक नियमित रूप से हफ्ते में एक-दो बार केंद्र पर जाकर सभी लोगों का चेक-अप करते हैं। इसके अलावा वह वीडियो कॉल या सामान्य फोन कॉल के जरिए भी उनसे जुड़े रहते हैं।

20 लोगों की टीम के साथ काम कर रहे हैं पॉल

वर्तमान में Second Chance में 20 लोग काम कर रहे हैं। जिनमें खाना बनाने वाले और आश्रितों का ध्यान रखने वाले कर्मचारी भी शामिल हैं।

बिछड़ों को परिवार से मिलाना हमारा पहला कर्तव्य हैः पॉल

पॉल की मानें तो – “Second Chance फाउंडेशन में ज्यादातर ऐसे लोग पहुँचते हैं, जिनकी मानसिक स्थिति सही नहीं होती है। ऐसे में नियमित देखभाल से उनकी स्थिति में सुधार आने के बाद उनके परिवार के बारे में पता करने की कोशिश की जाती है। अब तक हमनें 1500 से ज्यादा लोगों की मदद की है। हम 70 लोगों को उनके परिवार से मिलवाने में सफल हुए हैं। इसके अलावा, 150 लोग हमारे केंद्रों पर रहकर सुरक्षित जीवन जी रहे हैं। हमारे पास जितने भी लोग हैं लगभग सबकी उम्र 50 से ऊपर है। जब भी कोई हमारे यहाँ पहुँचता है तो पहली कोशिश उन्हें उनके परिवारों से मिलाने की होती है। यदि ऐसा संभव नही होता तो हम इनकी पूरी जिम्मेदारी लेते हैं”

आश्रित के अंतिम समय पर भी साथ है सेकेंड चांस फाउंडेशन

सरकारी अस्पतालों में भर्ती हुए अकेले और बेसहारा मरीजों की मृत्यु हो जाने की स्थिति में अगर उनके परिवार का कोई पता नहीं होता है तो उस व्यक्ति के धर्म के अनुसार उसका अंतिम संस्कार संस्कार करवाने की ज़िम्मेदारी भी Second Chance लेता है।

लॉकडाउन में भी मसीहा साबित हुए 25 वर्षीय पॉल

रचकोंडा, हैदराबाद के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक महेश भागवत (Mahesh Bhagwat)कहते हैं- “लॉकडाउन के दौरान भी पॉल और उनकी टीम ने पुलिस के साथ मिलकर कई अभियानों पर काम किया। लॉकडाउन के दौरान 15 से ज्यादा बेसहारा लोगों को रेस्क्यू किया गया जिनकी पूरी जिम्मेदारी उन्होंने ली। साथ ही, जरूरतमंदों तक खाना, मास्क जैसी जरुरी चीजें पहुँचाने में भी उन्होंने मदद की। आज सेकंड चांस फाउंडेशन हमारी रचकोंडा सिक्योरिटी काउंसिल का भी हिस्सा है । हमारी टीम को जब भी कोई बेसहारा और मानसिक तौर पर बीमार व्यक्ति मिलता है, तो हम तुरंत उन्हें फोन करते हैं”

कई बार परेशानियों का सामना भी करना पड़ा पॉल को

कहते हैं न कि अच्छे काम में बाधाओं की कमी नही होती, ऐसा ही कुछ पॉल के साथ भी होता है। उन्हे परेशान करने के लिए कई बार उन्हें फेक कॉल्स भी आते हैं। अपने किसी बीमार बुजुर्ग से छुटकारा पाने के लिए कोई लज्जाहीन परिवार उन्हें फ़ोन कर देता है। इन परिस्थितियों में वह पुलिस के साथ मिलकर पूरी जाँच-पड़ताल करते हैं।

पॉल के सद्कार्य से प्रेरित होकर लोग कर रहें हैं आर्थिक मदद

इस पूरे काम की फंडिंग के बारे में पॉल बताते हैं- “इस काम में मेरी पत्नी टैरिसा मेरा पूरा साथ दे रही है। हम अपनी आजीविका के लिए अपना फूड बिजनेस चलाते हैं। उसमें से भी कमाई का एक हिस्सा हम इस काम में लगाते हैं। लेकिन, तीन केंद्रों को चलाने के लिए यह पर्याप्त नहीं है। इसलिए हम कभी-कभी सोशल मीडिया के जरिए फंड भी जुटाते हैं। बहुत से लोग हमारे यहाँ आकर इन लोगों से मिलते हैं और देखते हैं कि इन्हें अच्छी देखभाल मिल रही है। दुनिया में बहुत से लोग हैं जो कुछ अच्छा करना चाहते हैं, लेकिन कई कारणों से खुद लोगों की सहायता नहीं कर पाते हैं। ऐसे लोग हमारे जरिए जरूरतमंद लोगों की सहायता कर रहे हैं”

ज़रुरतमंदों की काउंसलिंग पर भी करते हैं फोकस

पॉल अपने सेंटर पर रहने वाले लोगों की काउंसलिंग पर भी ध्यान देते हैं ताकि ये लोग अपने निराशा भरे जीवन से ऊपर उठकर एक नई शुरुआत करें। केंद्रों पर रहने वाले जो लोग धीरे-धीरे ठीक होने लगते हैं, उन्हें दैनिक गतिविधियों जैसे- सब्जी काटने में मदद करना, बागवानी करना आदि में लगाया जाता है। अगर इसी तरह इन लोगों में सुधार होता रहा, तो वह आगे उन्हें किसी रोजगार से जोड़ने पर भी विचार करेंगे।

मैं नही चाहता कि समाज में किसी भी शेल्टर होम की ज़रुरत पड़ेः पॉल

पॉल कहते हैं- “मेरी दिल से इच्छा है कि सभी लोग अपने परिवार के सदस्यों, बुज़ुर्गों की जिम्मेदारी लें ताकि हमारे यहाँ इस तरह के आश्रय-गृह की जरूरत ही न हो। जब हम सब अपनी जिम्मेदारियों को समझेंगे तभी किसी वृद्धाश्रम या आश्रय-घरों की जरूरत नहीं होगी। लेकिन तब तक हम इन लोगों को भी अनदेखा नहीं कर सकते हैं। इसलिए जब तक हो सकेगा मैं इन लोगों की देखभाल करने के लिए तैयार हूं”

बेसहारा लोगों के बारे में जानकारी देने के लिए पॉल ने हैदराबाद के लिए एक नंबर भी जारी किया है

हैदराबाद निवासी होने के चलते और किसी बसहारा को देखने की अवस्था में आप पॉल द्वारा दिये गये इस नंबर पर 080108 10850 पर कॉल कर सकते हैं। पॉल व उनकी टीम को वहाँ पहुंचकर उनकी मदद करेंगे।

अर्चना झा दिल्ली की रहने वाली हैं, पत्रकारिता में रुचि होने के कारण अर्चना जामिया यूनिवर्सिटी से जर्नलिज्म की पढ़ाई पूरी कर चुकी हैं और अब पत्रकारिता में अपनी हुनर आज़मा रही हैं। पत्रकारिता के अलावा अर्चना को ब्लॉगिंग और डॉक्यूमेंट्री में भी खास रुचि है, जिसके लिए वह अलग अलग प्रोजेक्ट पर काम करती रहती हैं।

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