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पिता ने ऑटो चलाकर नेत्रहीन बेटे को पढ़ाया लिखाया, आज वह सख्स IAS बनकर पूरे समाज के लिए मिसाल बन गया

“मैं कभी भी अपने नेत्रहीनता को चुनौती के रूप में स्वीकार नहीं करता, व्यक्तिगत रूप से मैं इसे एक शक्तिशाली उपकरण मानता हूं” यह कथन हैं जन्म से अंधे एक ऐसी शख्सियत की जिसने बिना आंखों के होने के बावजूद अपनी काबिलियत से आईएएस बनकर एक प्रेरणा का बेहतरीन उदाहरण पेश किया।

काबिलियत हमेशा हीं एक ऐसी शक्ति है जिसके दम पर विपरीत परिस्थितियों और समस्याओं को हराया जा सकता है। यह सहजीय कल्पना की जा सकती है कि बिना आंखों के इंसान की जिंदगी कितनी सूनी होती है। हालांकि ऐसा नहीं है कि जिनकी आंखें नहीं होती हैं वे जीना छोड़ देते हैं लेकिन बिना आंखों की जिंदगी जीना कितनी तकलीफदेह होती है यह बिल्कुल महसूस किया जा सकता है। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनकी आंखों में रोशनी भरसक नहीं होती है लेकिन वे अपनी काबिलियत से सफलता का ऐसा परचम लहराते हैं जो लोगों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत बन जाता है। आज बात बिन आंखों वाले एक ऐसे ही शख्स की जिसने लगातार अपनी मेहनत, जज्बे और काबिलियत के दम पर आईएएस की परीक्षा में सफलता हासिल की।

IAS D Bala Nagendran

तमिलनाडु के चेन्नई के रहने वाले डी. बाला नागेंद्रन ने हमेशा ही सकारात्मकता को अपने जीवन में समावेश किया और उस पर चल कर आगे अपने सपनों को पूरा किया। डी. बाला नागेंद्रन बचपन से हीं अंधे थे। उनके माता-पिता नागेंद्रन के नेत्रहीन होने से हमेशा मायूस रहते थे लेकिन उन्होंने कभी भी अपनी हिम्मत नहीं हारी और अपने बेटे को शिक्षित करने के लिए हमेशा तत्पर रहे।

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नगेंद्रन की स्कूली पढ़ाई रामा कृष्णा मिशन स्कूल से पूरी हुई जिसके बाद उन्होंने चेन्नई के लोयला कॉलेज से बीकॉम की पढ़ाई पूरी की। चंदन के पिता भारतीय सेना से रिटायर्ड थे और उन दिनो टैक्सी चलाते थे न। बाला के एक शिक्षक ने हीं उन्हें आईएएस ऑफिसर बनने के लिए प्रेरित किया था। बाला भी अपने शिक्षक की बात मानकर आईएस की तैयारी में जुट गए लेकिन आगे उनका सफर आसान ना था। चूकि उनकी आंखें नहीं थीं तो उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। आईएसए जुड़े हुए सभी किताबों को नागेंद्रन को बेल भाषा में परिवर्तित करनी पड़ी।

2011 से लेकर 2015 तक लगातार चार बार उन्हें असफलता हाथ लगी। अगले साल 2016 में उन्हें परीक्षा में सफलता तो प्राप्त की लेकिन उनका रैंक 927 था। डी. बाला नागेंद्रन ने इस बार भी नौकरी ज्वाइन नहीं की क्योंकि उनका एक हीं मकसद था आईएएस अधिकारी बनना। वह निरंतर प्रयासरत रहे और कठिन मेहनत करते रहे। अंततः 2019 में उन्होंने 659 वां स्थान हासिल करके आईएएस अधिकारी का पद प्राप्त किया।

डी. बाला नागेंद्रन ने जिस तरह से आंख ना रहने के बावजूद भी अपने अंदर आईएएस बनने की सोंच पैदा की और उसे अपनी मेहनत व जज्बे में से साकार किया वह सभी युवाओं के लिए प्रेरणा की पराकाष्ठा है। उन्होंने यह साबित कर दिखाया कि संसार में कोई भी लक्ष्य अभेद नहीं है। The Logically डी. बाला नागेंद्रन के हौसले और जज्बे को सलाम करता है और उन्हें उनकी सफलता के लिए बहुत-बहुत बधाइयां देता है।

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