किसी भी मंजिल को पाने के लिये इन्सान को मानसिक और शारिरीक दोनों तौर पर मजबूत रहना होता है। परीक्षा चाहे कोई भी हो, खेल-कूद या दूसरी कोई परीक्षा सफल होने के लिये मानसिक और शारिरीक संतुलन बना के रखना पड़ता है, तब सफलता मिलती है। कहने के अर्थ यह है कि स्वस्थ्य मन में ही स्वस्थ्य मस्तिष्क निवास करता है। स्वस्थ्य मन के लिए शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से मजबूत होना ज़रूरी है ताकि मंजिल को पाने के रास्ते में कितनी भी रुकावटे आये, आप उसे खुद पर हावी नहीं होने दे।
आज आपको हम ऐसे ही एक IAS की के बारें में बताने जा रहें है जिसके सामने मानसिक तौर पर कई मुसिबतें आई लेकिन उसने मुसीबतों को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। पिता के कैंसर होने की जानकारी होने के बाद भी उन्होंने अपने आप को बहुत ही साहस के साथ संभाला और अपनी मेहनत के बल पर सिर्फ 22 साल के उम्र में ही एक आईएएस बन गईं।
हम बात कर रहें हैं, IAS रीतिका जिंदल (Ritika Jindal) की। वह वर्ष 2018 में यूपीएससी (UPSC) की परीक्षा में टॉप रही। UPSC 2018 में रितिका को 88वीं रैंक आई और वह टॉप लिस्ट में रही।
वीडियो में देखें Ritika Jindal ने कैसे मुश्किल हालातों से लड़कर सफलता प्राप्त की –
आइये जानतें है, आईएएस रितिक जिंदल के आईएएस बनने तक का सफर
रितिका जिंदल का जन्म पंजाब (Punjab) के मोगा में हुआ था। उन्होनें बताया कि पंजाब में बच्चे लाला लाजपत राय और भगत सिंह की कहानियां सुनकर बड़े होते हैं। वह भी इनकी कहानियां सुनकर ही बड़ी हुईं। रितिका बचपन से ही देश और देश के नागरिकों के लिये कुछ करना चाहती थी। अपनी इस चाहत को पूरा करने के लिये उन्होंने सिविल सर्विसे का चयन किया। रितिका के 12वीं तक की शिक्षा पंजाब में हुईं और पुरे नॉदर्न इंडिया में 12वीं की CBSE की परीक्षा में टॉप की। 12वीं की पढाई करने के बाद रितिके ने दिल्ली (Delhi) के श्रीराम कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स से स्नातक किया। स्नातक में भी रितिका ने पूरे कॉलेज में 95% के साथ तीसरे स्थान पर रही।
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ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद रितिका यूपीएससी की परीक्षा की तैयारी करने में जुट गईं। लेकिन यह इतना आसान नहीं था। उनके पिता को पहले टंग कैंसर हुआ जिसमें उनके पिता की जीत हुईं और वे स्वस्थ्य हो गये। लेकिन फिर कुछ समय बाद ही उनकों लंग कैंसर हो गया। पिता से अत्यधिक लगाव और ऐसी वेदना के बीच यूपीएससी (UPSC) की परीक्षा देना सरल नहीं था। उसके बावजूद भी रितिका ने एक नहीं बल्कि 2 बार परीक्षा दी। पहली बार की परीक्षा में फाइनल लिस्ट में कुछ नम्बरों से चयन होने से पीछे रह गईं। लेकिन दूसरे बार के प्रयास में रितिका सफल रही और 88वीं रैंक हासिल की। पिता की वेदना के माहौल में खुद को संभालना बहुत कठिन कार्य है, फिर भी रितिका ने हर कदम पर मंजिल के बीच आने वाली बाधाओं को साहस के साथ पार किया।
ऐसे कई सारे छात्र हैं जो परीक्षा में एक या दो बार सफल नहीं होने के कारण हताश होने लगते हैं और हिम्मत हार कर बीच में ही रुक जाते हैं। ऐसे सभी छात्रों के लिये रितिका जिंदल ने 3 सुझाव दिये है। जो इस प्रकार है:-
उन्होंने पहला सुझाव यह दिया कि जीवन में कभी भी आनेवाली चुनौतियों से घबराना नहीं चाहिए और ना ही अपने कदम को पीछे हटाना चाहिए। जीवन में कब क्या हो जायें इसके बारे में कोई नहीं जानता और उसपर किसी का वश नहीं है लेकिन जीवन में होनेवाले घटनाओं पर इन्सान कैसा रिएक्ट करे इस बात पर उसका अधिकार है। इसलिए परिस्थिति कैसी भी हो हमेशा उसका सामना मुस्कुराहट के साथ करे, परेशानियां अपने आप खत्म हो जायेगी। रितिका के पहले परीक्षा के समय उनके पिता को टंग कैंसर था और दूसरे परीक्षा में लांग कैंसर। इसके बावजूद भी रितिका हालतों से लड़ी और सफल हुईं।
रितिका जिंदल की दूसरी सलाह यह है कि किसी को भी अपनी इमोशनल इंटेलेजेंसी का उपयोग बहुत ही सोच समझ कर करना चाहिए। किसी के भी दबाव में आकर उसे बिखरने नहीं दें और जब भी पढ़ाई करें तो खुशी-खुशी करें। उन्होने कहा कि इस परीक्षा में सफल होने में सालों लग जाते है, ऐसे में दिमाग पर प्रेशर लेने से समस्या का हल नहीं निकलेगा। इसलिए टेंशन लेने के बजाय खुश रहें। यदि आप खुश रहेंगे तो पढ़ाई जल्दी समझ में आएगी और जब समझ में आ जायेगा तो लम्बे समय तक याद भी रहेगा। इसलिए हमेशा खुश रहने की कोशिश करें और ऐसे ही पढ़ाई करें।
IAS रितिका जिंदल (Ritika Jindal) ने तीसरा सुझाव दिया कि असफलता से हारें नहीं। यदि हम असफल होते हैं तो हमारे पास दो ऑप्शन होते है पहला हम उस असफलता का दुख मनाये और दूसरा उस असफलता से नई सीख लेकर फिर से दुबारा उठ खड़े हो और पहले के अपेक्षा दुगुनी परिश्रम से आगे बढ़े। फेल होना सामान्य है, बल्कि यह सफलता की वह सीढ़ी है जो हमे सफलता के मार्ग पर चलने के लिये दिशा दिखाती है। इसलिए अपने हार पर रोने या दुखी होने पर समय बर्बाद न करे, उसका उपयोग करें। रितिका कहती है कि पहले प्रयास में प्री, मेन्स और इंटरव्यू सभी में पास होने के बाद भी कुछ नम्बरों से उनका चयन नहीं हुआ। इस असफलता से उन्होंने सीखा कि जब छोटा बच्चा चलने लगता है तो वह बार-बार गिरता है और फिर खड़ा हो उठता है। ठीक उसी प्रकार सभी को बार-बार फेल होने के बाद अपनी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए और अपने द्वारा की गईं गलतियों से शिक्षा लेकर दुगुनी मेहनत से कोशिश करनी चाहिए।
The Logically आईएएस रितिका जिंदल को उनकी सफलता के लिये ढ़ेर सारी बधाई देता है और कामयाबी के रास्ते पर चलने के लिये उनके द्वारा दिये गयें सलाह के लिये धन्यवाद देता है।