हमारे समाज के लोग महिलाओं को हमेशा से चार दीवारों में कैद कर के रखना चाहता है ,महिलाओं को ना ही अच्छे से पढ़ने की आजादी है ना ही अपने सपने को पूरा करने की आजादी है. समाज के हिसाब से एक महिला सिर्फ घर के काम को संभालने और अपने घर वालों का ख्याल रखने के लिए हैं ,उनकी अपनी कोई इक्षा नहीं होती है। उनको अपने हक के लिए आवाज उठाने की भी आजादी नहीं हैं. हम यहां पे कुछ ऐसी महिलाओ के ताकत और अधिकार के बारे में जानकारी दें रहे हैं जिनकी मदद से वो खुद पर हो रहे अत्याचार और भेदभाव से लड़ सकती हैं और आगे बढ़ सकती हैं : 6 Laws to defend women safety
आज हम आप सभी को ऐसे 6 कानून के बारे में बताएंगे जिनके बारे में जानना हर महिला को बहुत ही जरूरी हैं, जिसे जानकर वो अपने अधिकारों और अपना आत्मरक्षा स्वयं कर सके.
दफ्तर में यौन हिंसा और प्रताड़ना के विरोध में कानून (Law to defend women at workplace)
सन् 2013 में कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न अधिनियम को पारित किया गया था। जिन संस्थाओं में दस से अधिक लोग काम करते हैं उन पर यह अधिनियम लागू होता है। ये अधिनियम 9 दिसम्बर 2013 को प्रभाव में आया था जैसा कि इसका नाम ही इसके उद्देश्य रोकथाम निषेध और निवारण को स्पष्ट करता है और उल्लंघन के मामले में पीड़िता को निवारण प्रदान करने के लिये भी ये कार्य करता है. इस प्रकार का अधिनियम कार्यशील महिलाओं को कार्यस्थल पे होने वाले यौन उत्पीड़न के खतरे का मुकाबला करने के युक्ति है। कानून के हिसाब से दफ्तर में काम करने वाली महिलाओं की जिम्मेदारी उस संस्थान की है जहाँ वो महिला काम करती हैं और उनके साथ कोइ अनुचित व्यवहार होता है तो वो शिकायत कर सकती हैं।
घरेलू हिंसा से बचाव के लिए (Law to defend women at home, Domestic violence)
26 अक्टूबर 2006 को यह अधिनियम लागू हुआ था! इसका उद्देश्य महिलाओं को हर प्रकार के घरेलू हिंसा से बचाव के लिए है. भारत में बहुत अधिक मात्रा में महिलाएं घरेलू हिंसा कि शिकार हैं परन्तु इसमें से बहुत कम ऐसे महिलाए हैं जो इसकी शिकायत कर पाती हैं। भारत में कोइ भी ऐसा कानून नहीं हैं जो महिलाओं को घर में सुरक्षित रख पाए इसलिए 2006 में यह कानून आया जिससे कि अगर किसी भी महिला को लगे की उसके साथ कोई हिंसा हों रहा है या फिर उसके साथ कोई घरेलू हिंसा होने वाला है तो वो पास के पुलिस थाने में शिकायत कर सकती हैं। इसके बाद यह पुलिस का दायित्व है कि वो उस शिकायत पर एक्सन ले।
यह भी पढ़ें :- इस महिला ने पति की मौत के बाद कर्ज में डूबी कम्पनी CCD को सफलता की बुलंदियों पर पहुंचाया: प्रेरणा
पिता की संपत्ति को लेकर महिलाओ का अधिकार (Law for women in ancestral property)
हमारे समाज में पहले महिलाओं को पिता कि संपति में कोइ अधिकार नहीं था, परन्तु 9 सितम्बर 2005 में यह कानून लागू हुआ। हालांकि इसके पहले भी 1956 में भी इससे सम्बंधित कानून था परन्तु उसमें लड़के और लड़की के बीच भेदभाव पूर्ण नियम था। इसमें पिता की सारी संपत्ति लड़को को मिलती थी, फिर 2005 में इस नियम का संशोधन किया गया नय कानून में इस भेदभाव को खत्म किया गया और बड़ा फैसला सुनाया गया जिसके अनुसार बेटियों का अपने पिता की स्व-अर्जित प्रॉपर्टी पर बेटों के बराबर हक़ है।
दहेज प्रथा के विरोध में कानून(Law against dowry)
दहेज लेना या दहेज देना एक कानूनी अपराध है इसके लिए 5 वर्ष की कैद और 15,000 रू जूर्मना हो सकता है। दहेज के लिए उत्पीड़न करने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए जो कि पति और उसके रिश्तेदारों द्वारा सम्पत्ति अथवा कीमती वस्तुओं के लिए अवैधानिक मांग पे 3 साल की कैद और जुर्माना हो सकता है । दहेज के मांग पर शिकायत करने पर तुरन्त गिरफ्तारी हो जाती थी और इसमें जमानत की कोई प्रवधान नहीं था. यह भारत में दहेज से संबंधित पहला राष्ट्रीय कानून है। दहेज निषेध अधिनियम को वर्ष 1961 में दो बार संशोधित किया गया था। भारतीय दंड संहिता, 1980 न केवल भारत में दहेज प्रथा को प्रतिबंधित करता है, बल्कि इससे संबंधित हिंसा को भी प्रतिबंधित करता है, जो पहले देश में एक नियमित प्रथा रही है।
मातृत्व अवकाश (Maternity leave at workplace)
मातृत्व लाभ संशोधन अधिनियम 2017 के तहत यह लाभ उन महिलाओं को मिलता है, जिसने कर्मचारी के रूप में मौजूदा कंपनी में पिछले एक साल में 80 दिन तक काम किया हो। अवकाश की अवधि के दौरान भुगतान दैनिक मजदूरी पर आधारित हैमातृत्व लाभ संशोधन अधिनियम-2017, मातृत्व लाभ संशोधन अधिनियम 1961 का संशोधित रूप है। इस बील को राज्यसभा में 11 अगस्त 2016 और लोकसभा में 09 मार्च 2017 में पारित किया गया था। गर्भवती महिला कर्मचारियों को इस बिल का लाभ पहुंचाने के लिए इसे अप्रैल 2017 में लागू कर दिया गया था।
अबॉर्शन का अधिकार (Right to abortion)
महिलाओं के पास अबॉर्शन कराने का अधिकार होता है , उन्हें अपने गर्भ में पल रहे बच्चे को अबॉर्ट कराने के लिए किसी से भी पूछने की आवश्यकता नहीं होती हैं ना ही अपने पति से ना ही ससुराल वालों से। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेगनेंसी कानून (MTP – 1971) के अनुसार महिलाओं को यह अधिकार दिया गया है कि अगर प्रेगनेंसी 24 सप्ताह से कम है तो महिला अपना प्रेगनेंसी खत्म कर सकतीं हैं.
उपर दिए गए कानूनों के बारे में और विस्तृत जानकारी लेने के लिए आप इंटरनेट पर रिसर्च कर सकते हैं और खुद को सुरक्षित कर सकते हैं।
The Logically के लिए इस आर्टिकल को “अंजलि” ने लिखा है.
सकारात्मक कहानियों को Youtube पर देखने के लिए हमारे चैनल को यहाँ सब्सक्राइब करें।