पत्तल…नाम सुनते ही बचपन की यादें ताज़ा हो गयी न। पहले हर आयोजन मे खाना हम इसी पत्तल पर खाते थे पर आजकल यह आयोजन से गायब सा हो गया है। अब किसी समारोह में देखने को ही नही मिलता। अब इसकी जगह प्लास्टिक और थर्माकोल की प्लेट्स ने ले ली हैं। आज के मेट्रो सिटीज में रहने वाले बच्चों को शायद ही पता होगा कि पत्तल क्या होता हैं। पर कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें इस पत्तल का महत्व पता है और वह इसे एक बार फिर से प्रचलन में लाने का प्रयास कर रहे हैं। इन्ही में से एक हैं हैदराबाद के रहने वाले माधवी और वेणुगोपाल (Madhvi and Venugopal) . माधवी ने फार्मेसी एंड जेनेटिक्स से मास्टर्स किया है वही वेणुगोपाल मैकेनिकल इंजीनियर हैं। इनदोनो ने अमेरिका, बैंकॉक, सिंगापुर, मलेशिया जैसे देशों में नौकरी की पर जब इनके बच्चे बड़े होने लगे तो वह अपने बच्चों को भारतीय संस्कृति से रूबरू करवाने के उद्देश्य से भारत वापस लौट आए। 2003 में यह दोनों हैदराबाद आकर बस गए और यहां ज़मीन भी खरीदी जिसपर इन्होने खेती करनी शुरू की। जॉब के साथ-साथ दोनो शनिवार और रविवार को खेती करते थे पर जब 2010 में माधवी को ब्रैस्ट कैंसर हुआ तब पूरी तरह खेती करने की सोची।
डिस्पोजल प्लेट्स के ढेर को देख आया पत्तल बनाने का ख़्याल
माधवी और वेणुगोपाल(Madhvi and Venugopal) ने 2019 में विस्प्राकू नाम से एक स्टार्टअप की शुरआत की जो साल और पलाश के पत्तो से इको फ्रेंडली प्लेट्स और कटोरी बनाती है। विस्प्राकू एक तेलगु शब्द है जिसका मतलब ही पत्तल या पत्रावली होता हैं। माधवी और वेणुगोपाल बताते है कि उन्होंने कभी स्टार्टअप की शरुआत करने का नही सोचा था पर एक दिन अपनी सोसाइटी के बाहर डिस्पोजल प्लेट्स के ढेर को देखा जिसमे कुछ जानवर खाना ढूंढ रहे थे। प्लास्टिक के ढेर को देखकर इन्हें बहुत दुख हुआ। एक बार इनकी माँ ने बताया कि पहले पलाश के पत्तो से पत्तल बनता था। माधवी और वेणुगोपाल ने खुद से छोटे-छोटे पत्तल बनाने की कोशिश की पर सफल नही हो पाए। वेणुगोपाल फेसबुक पर कुछ ग्रुप से जुड़े है जिनमे से एक के ज़रिए इन्हें पता चला कि ओड़ीसा में आदिवासी समुदाय आज भी पत्तल बनाती है जिसे खलीपत्र कहते है । यह साल और सियाली के पत्तो से बना होता हैं पर बाज़ार में प्लास्टिक और थर्माकोल प्लेट्स की ज़्यादा माँग होती जिसके कारण इसपर उतना ध्यान नही दिया जाता।
पत्तल स्वास्थ और पर्यावरण दोनो के लिए फ़ायदेमंद हैं
माधवी और वेणुगोपाल ने कुछ नेचुरोपैथ से बात की तो पता चला की पत्तल पर्यावरण और स्वस्थ के लिए लाभदायक हैं। इसमे खाने से खाने में प्राकृतिक स्वाद आता हैं और कीड़े भी दूर भागते हैं।
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अपने खेत मे पत्तल बनाने की यूनिट लगाई
इसके फायदे जानकर वेणुगोपाल और माधवी ने अपने 25 एकड़ के खेत में इसकी यूनिट लगाई जिसमे दो साइज के प्लेट्स और एक साइज का कटोरा बनता हैं। इस यूनिट में सात लड़किया काम करती हैं। इस यूनिट में 7000 से 10,000 प्लेट्स और कटोरी हर दिन बनाई जाती हैं।
विदेशो में हैं इनके पत्तलों की मांग
माधवी और वेणुगोपाल ने इन पत्तलों के इस्तेमाल की शुरआत अपने ही सोसाइटी से की । इस्तेमाल करने पर लोगो को इनके उत्पाद पसंद आए और सबने अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर इसकी तारीफ की। इस तरह इनके बनाए हुए उत्पाद का प्रचार हुआ। आज इनके उत्पाद अमेरिका और जर्मनी जैसे देशों में जाते हैं।
आज जिस तरह हमारे पर्यावरण को नुकसान पहुच रहा है उसमें इसे बचाने के लिए किया गया छोटा सा प्रयास भी बड़ी बात हैं। माधवी और वेणुगोपाल का यह प्रयास सराहनीय हैं।