अक्सर बच्चों को आसान तरीके से पढ़ाने के लिए तरह-तरह के तरीके और तकनीकों का इस्तेमल किया जाता है ताकि वे किसी भी चीज को अच्छे से समझ सके और उनका कांसेप्ट क्लियर हो सके। इसके लिए स्कूल के शिक्षक कभी कहानी के जरिए बच्चों को समझाने का प्रयास करते हैं तो कभी डिजिटली पढ़ाते हैं। लेकिन गुजरात के एक गाँव का साधारण सा स्कूल की पहचान मॉडल्स स्कूल के तौर पर की जा रही है।
इस स्कूल में मॉडल्स के जरिया दी जाती है बच्चों को शिक्षा
जी हाँ, गुजरात (Gujarat) राजकोट (Rajkot) के एक गाँव में स्थित एक सरकारी प्राइमरी स्कूल के बच्चों को बेहद ही अनोखे तरीके से विज्ञान की शिक्षा दी जाती है। आपको जानकर बेहद हैरानी होगी कि एक स्कूल में विज्ञान में रोकेट साइन्स, वर्ल्ड मैप, सोलर सिस्टम, मिसाल्सन अर्थ रोटेशन और रिवोल्यूशन जैसे अन्य कांसेप्ट की शिक्षा देने के लिए मॉडल्स का इस्तेमाल किया जाता है। इन सभी के मॉडल्स को किसी आर्टिस्ट द्वारा नहीं बल्कि स्कूल के प्रधानाचार्य ने खुद से बनाया है।
बच्चों को किताबी ज्ञान के अलावा दिया जाता है प्रैक्टिकल नॉलेज
स्कूल के प्रिन्सिपल गिरीश बावलिया (Girish Bavaliya) ने विज्ञान की पढ़ाई के लिए फ्रेश मटेरियल से नहीं बल्कि कबाड के सामान से सभी मॉडल्स को तैयार किया है। उन्होंने बताया कि इन सब तरिके का प्रयोग बच्चों को बेहतर ढंग से पढ़ाने के लिए किया गया है। सभी बच्चों को कक्षाओं में किताबी ज्ञान की शिक्षा देने के बाद उन्हें स्कूल के फील्ड में लाकर मॉडल्स के माध्यम से प्रैक्टिकल करके भी समझाया जाता है। इससे उन्हें चीजें और भी अधिक बेहतर तरीके से समझ में आती है।
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आसान तरीके से पढ़ाने के लिए आजमाते हैं अलग-अलग तरीका
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सला 2018 में इस स्कूल (School) की स्थापना हुई और गिरीश (Girish Bavaliya) को वहां का प्रधानाचार्य बना दिया गया। उसके बाद से लेकर अभी तक गिरीश बच्चों को सरल तरीके से पढ़ाने के लिए नए-नए तरीके आजमाते रहते हैं। इसी का परिणाम है कि आज इस स्कूल में कई तरह मॉडल्स मौजूद हैं जिनसे बच्चों को प्रैक्टिकल ज्ञान दिया जाता है।
खुद से करते हैं विद्यालय की साफ-सफाई
आमतौर पर देखा जाता है कि प्रधानाध्यापक स्कूल के ऑफिस में आराम से बैठे दिखाई देते हैं और उन्हें स्कूल की साफ-सफाई से मतलब नहीं रहता है। लेकीन गिरीश एक ऐसे प्रधानाध्यापक हैं कि वे ऑफिस में न बैठकर स्कूल की साफ-सफाई खुद से करते हैं। इस बारें में बात करते हुए उन्होंने बताया कि, फंड की कमी होने के कारण सफाई कर्मचारी रोजाना स्कूल नहीं आते। ऐसे में स्कूल की साफ-सफाई की जिम्मेदारी लेते हुए गिरीश रोजाना समय से 2 घंटे पहले विद्यालय पहुंच जाते हैं और क्लासरूम स लेकर कॉरिडोर और वॉशरूम तक की सफाई खुद से करते हैं।
कर्तव्य के प्रति हैं निष्ठावान
प्रतिदिन स्कूल की सफाई करते देख लोग उन्हें ताना भी देते हैं। कई बार लोगों ने कहा कि एक प्रिन्सिपल को सफाई करना सोभा नहीं देता है लेकिन सभी की बातों को अनसुना कर देते हैं। उन्हें लोगों की बातों का कोई असर नहीं पड़ता है वे अपने काम में लगे रहते हैं। हर स्कूल में साल में कई बार छुट्टी मिलती है लेकिन प्रिन्सिपल गिरीश अपने कर्तव्य के प्रति इस कदर निष्ठावान हैं कि वे साल के 365 दिन में एक बार भी छुट्टी नहीं लेते हैं।
वास्तव में गिरीश (Girish Bavaliya) जिस प्रकार अपने कर्तव्य के प्रति समर्पित हैं यदि और शिक्षक भी उनके जैसा ही अपना कर्तव्य समझने लगे तो हर स्कूल के बच्चों का भविष्य उज्ज्वल होगा। The Logically कर्तव्य के प्रति समर्पित गिरीश बावलिया को सलाम करता है।