“खुद को कर बुलंद इतना कि खुदा हर तकदीर से पहले खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है।”
वो कहते हैं ना कि “अगर हम अपनी समस्या को साथ में लेकर चलें तो समस्या और भी कठिन हो जाती है। परंतु अगर हम उस समस्या से मुकाबला करें तो आगे चलकर के हमें सफलता जरुर प्राप्त होती है”। ऐसी ही एक कहानी हम आपको बताएंगे जिन्होंने अपनी कठिन परिस्थिति में भी अपने करियर को बचाए रखा और अपनी मेहनत और लगन से आज कामयाबी के उस ऊंचाई पर पहुंच चुकी हैं जो वे कभी सोच भी नहीं सकती थीं।
दरअसल यह कहानी एक डाक्टर की है जिन्होंने अपने बुरे वक्त में भी अपने अंदर के जज्बे को खत्म नहीं होने दिया और वे सफलता की ओर बढ़ती चली गईं, जिसकी वजह से आज वे अपनी कामयाबी की ऊंचाई पर पहुंच चुकी हैं तो आईए जानते हैं कि कठिन परिस्थिति में खुद को संभाल करके कामयाबी की ओर कैसे बढीं।
डॉ. दिव्या सिंह (Doctor Divya Singh)
रांची (Ranchi) की रहने वाली दिव्या सिंह का बचपन से सपना था कि वह डॉक्टर बनें। इन्होंने डॉक्टर बनने के लिए खूब मेहनत करके पढ़ाई की। दिव्या बताती हैं कि हम अपनी पढ़ाई अपने तरीके से करते थे जिसे देखकर मेरे पापा कहते थे कि बेटा डॉक्टर बनने के लिए खूब मेहनत और परिश्रम करना पड़ता है। हमें पापा बहुत प्यार करते थे और हम अपने पापा के भी काफी लाडली थे। मेरे पापा जो कहते थे हम उसे पूरा करते थे और पढ़ाई में खूब मेहनत करते थे। अतः हम अपना ज्यादातर ध्यान पढ़ाई में ही देते थे। हमने एनआरएसएमसी कोलकाता से एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त कर ली और MBBS पूरा कर लेने के बाद हमने पीडियाट्रिशियन MD की पढ़ाई पूरी कर ली। दिव्या बताती हैं कि हमने जिस चीज की पढ़ाई की है मैं उस एरिया में स्पेशलिस्ट बनना चाहती थी, जो शायद मेरी किस्मत में नहीं लिखा था।
सड़क दुर्घटनाग्रस्त
दिव्या कहती हैं कि हमें नियोनेटोलॉजी में एडमिशन करवाना था जिसके लिए हमें 15 दिसंबर 2013 को दिल्ली जाकर के परीक्षा देनी थी। हमने इस परीक्षा की तैयारी काफी अच्छी तरह से कर ली थी। जिसके बाद हम और हमारे दोस्त ने दिल्ली जाकर के परीक्षा दे थी। परीक्षा दे देने के बाद हम और हमारे दोस्तों ने आगरा घूमने का प्लान बना लिया और हम लोगों ने अगले ही दिन 16 दिसंबर की सुबह को दिल्ली से आगरा के लिए रवाना हो गए। ठंड की वजह से रास्ते में काफी कोहरे थे जिससे आगे की सड़क दिखाई नहीं देती थी। परंतु फिर भी हम लोग अपनी गाड़ी से चले जा रहे थे तभी अचानक से एक बस से हमारी कार पर जोरदार टक्कर हो गई, यह एक्सीडेंट काफी भयानक था। हम जिस कार पर बैठे थे वह कार की हालत काफी खराब हो गई और जो हमारे दोस्त गाड़ी चला रहे थे उनकी वहीं पर मौत हो गई। मैं कार के पीछे की सीट पर बैठी थी। इस एक्सीडेंट होने के तुरंत बाद हमें वहां से अस्पताल ले जाया गया।
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6 महीने तक रही अस्पताल में
दिव्या (Doctor Divya Singh) बताती हैं कि मैं इस Accident में इस तरह घायल हो गई कि हमें कुछ दिनों तक कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मेरे साथ क्या हुआ है और हम इस अस्पताल तक कैसे पहुंचे। इन्होंने बताया कि हमें सिर्फ यह याद है कि हमारी कार एक्सिडेंट हुई थी परंतु इसके बाद हमें कुछ मालूम नहीं है कि हम अस्पताल कैसे पहुंचे मुझे कार से किसने निकाला। परंतु जब हमें बताया गया तो पता चला कि मेरा स्पाइनल कोर्ड डेमेज हो गया था और तो और मेरे गर्दन के नीचे का अंग में भी पैरालाइसिस मार दिया था। इसकी वजह से वह बिल्कुल काम नहीं कर रहा था। फिर बाद में हमें कुछ लोगों ने बताया कि जहां पर मेरी एक्सीडेंट हुई थी वहां के कुछ लोगों ने हमें खून से लथपथ अस्पताल पहुंचाए थे। उन लोगों ने हीं मेरे घर पर पापा को फोन करके उन्हें इस दुर्घटना के बारे में सारी बातें बताई थी। परंतु मेरे पापा जब तक आगरा पहुंचते तब तक आगरा में एक हमारे परिचित रहते थे उन्होंने मेरा इलाज करवाना शुरू कर दिया था। हमारा एक्सीडेंट इतना भयानक हुआ था कि मेरा इलाज छह महीने तक चलता रहा और मैं 6 महीने तक अस्पताल में भर्ती रही।
जब जिंदगी बोझिल सी लगने लगी
दिव्या कहती हैं कि जब हमारा इलाज चल रहा था उसमें हमें अपनी जिंदगी पर काफी तरस आ रही थी। हमें ऐसा लग रहा था कि अब मेरे लिए जिंदगी जीना काफी मुश्किल हो गया। मुझे यह सब इसलिए लग रहा था कि मैं खुद एक डॉक्टर हूं और मुझे पता है कि हमें जो हुआ है उसमें क्या-क्या परेशानियां झेलनी पड़ती हैं। जिसकी वजह से हम काफी सोचने लगे कि अगर हम ठीक हो जाते हैं तो हमारी जिंदगी पहले की तरह तो नहीं हो पाएगी और हम अपनी पूरी जिंदगी किसी दूसरे के भरोसे कैसे जी सकेंगे। मेरे सारे सपने खत्म हो गए जिसके लिए हमने जी जान लगा कर के मेहनत की थी। यह सारे सवाल हमारे मन में कई बार उत्पन्न होती थी जिसे सोचकर मैं काफी निराश और मायूस रहने लगी।
फैमिली ने दिया साथ
दिव्या (Doctor Divya Singh) कहती हैं कि जब हमारा समय काफी खराब चल रहा था तब हमें पापा और भाई ने काफी सहारा दिया। वह हमें हमारे सपने को लेकर के काफी कुछ समझाते थे और मेरे हौसले को बढ़ाते थे। वे बोलते थे कि तुमने जो सपने देखे हैं वह जरुर पूरा होंगे। वे कहते कि तुम जब ठीक हो जाओगी तब तुम वो सब कुछ कर सकती हो जो तुमने करने की ठानी है। जब मेरा इलाज चल रहा था तो मेरे पापा और भाई दोनों हमेशा मेरे साथ रहते थे। जब छः महीने बाद मुझे अस्पताल से डिस्चार्ज किया गया तो मैं अपने घर दिल्ली से Ranchi आ गई। जब वे व्हील चेयर पर रांची पहुंची तो वे सोचने लगीं कि हमने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि जब मैं अपने घर रांची आऊंगी तो मुझे व्हील चेयर पर आना पड़ेगा, परंतु किस्मत में जो लिखा होता है वही होता है।
रिम्स में फिर से पीडियाट्रिक्स ज्वाइन की
दिव्या ने बताया कि जब हम रांची में रहते थे तब मैं राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस में पीडियाट्रिक्स विभाग में सीनियर रेजिडेंट के तौर पर काम करती थी। परंतु जब मैं हादसे के छ: महीने बाद दुबारा रिम्स ज्वाइन करने गई तो वहां के अधिकारी ने हमें व्हीलचेयर पर देख कहने लगे कि तुम इस स्थिति में मरीजों का इलाज कैसे करोगी। इतना कहकर के मुझे वहां से लौटा दिया जाता था परंतु मैंने फिर भी हार नहीं मानी और मैं फिर से रिम्स ज्वाइन करने के लिए गई परंतु फिर से हमें वही बात बोल करके लौटा दिया गया और हम फिर वैसे ही निराश होकर के लौट आए। एक बार पुनः मैंने फिर से हिम्मत जुटाई और वहां गई और वहां के अधिकारियों से विनती की कि हमें एक मौका दीजिए जिससे मैं साबित कर दूंगी कि मुझे इस स्थिति में रहने के बावजूद भी काम में कोई कटौती नहीं होगी। काफी विनती करने के बाद उन लोगों ने हमें नौकरी पर रख लिया और फिर मैंने अपना काम करना प्रारंभ कर दिए।
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— Dr Divya Singh, MD (@DrDivyaSingh7) June 14, 2019
पापा ने डिजाइन किया मेरे लिए स्पेशल कार
दिव्या बताती हैं कि हमें अस्पताल आने-जाने मैं काफी कठिनाइयां होती थी जिसे देख पापा से रहा नहीं गया तो मेरे पापा ने मेरे लिए मारुति ओमनी वैन को विशेष रुप से डिजाइन करवाया जिससे मैं आसानी से उस पर बैठकर अस्पताल जा सकूं। इसको पापा ने इस तरह से डिजाइन करवाया था कि इसमें व्हील चेयर को लिफ्ट करने का सिस्टम लगा हुआ था। जिसकी वजह से अब हमें अस्पताल जाने में कोई परेशानी नहीं होती है। जब हम अपने कार से अस्पताल पहुंचते हैं तो रैंप कि जरिए हम खुद ही व्हील चेयर को कार से नीचे ले आते थे और अपने वार्ड में जाकर मरीजो का इलाज करते थे। जब हम अपने वार्ड में जाते थे तो लोग हमें काफी हैरानी से देखते थे। जब कुछ समय बीत गया तो हमने सुना कि वहां के लोग हमें अब व्हीलचेयर वाली डॉक्टर के नाम से जानने लगे।
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संकट में परिवार ने हमेशा साथ दिया
दिव्या (Doctor Divya Singh) बताती हैं कि आज मैं जो भी हूं वह सिर्फ अपने फैमिली के बदौलत हूं। इस कामयाबी और सफलता का श्रेय मेरे परिवार को जाता है। आज मेरे भाई और मेरे पापा ने हमें अपने सपने को साकार करने के लिए काफी हौसला दिया जिसकी वजह से आज मैं अपने सपने को साकार कर पाई हूं। मेरे भाई मन्नू जो मेरे हर दुख-सुख में साथ खड़ा रहता है वह एक अच्छा दोस्त की तरह मुझे हौसला देता है आज मेरे भाई की शादी हो गई है और मैं उसके बच्चे के साथ खूब खेलती हूं जिससे हमारा मन लगा रहता है और मुझ पर बीती हुई यादें अब असर नहीं करती है और मेरे पापा एम सिंह भी हमें बुरे वक्त में हमेशा मेरे साथ खड़े रहे और हमें हौसला दिलाते रहे जिससे आज हमारे सपने साकार हो गए।
कोविड पीरियड में ई संजीवनी ऑनलाइन OPD से जुड़ी
दिव्या कहती है कि जब कोवीड पीरियड का समय चल रहा था तब हमें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा जिसकी वजह से हम खुद कई बार कोविड पॉजिटिव हो गई परंतु वहां के डायरेक्टर के आदेश के अनुसार मैंने ई संजीवनी की ऑनलाइन OPD से जुड़ गई और इस ऑनलाइन OPD के जरिए खुद का इलाज तो किया ही साथ-साथ हमने कई मरीजों का इलाज करके उन्हें ठीक भी किया। मैं ढाई साल में लगभग 10,000 से अधिक मरीजों को ऑनलाइन के जरिए इलाज कर चुकी हूं, जिसमें कई बार तो हमने दूर में रहने वाले मरीजों से बात करके उनका इलाज किया और इसके साथ-साथ देश से बाहर भी दूसरे देशों के मरीजों को इलाज करके उन्हें ठीक किया। जो मेरे लिए एक नया अनुभव था।
ऑटोबायोग्राफी “गर्ल विथ विंग्स ऑन फायर” (Girl with wings on fire)
दिव्या कहती हैं कि मैंने अपनी जिंदगी में काफी बड़ी मुश्किल समय का सामना की है। इन सभी मुश्किल समय को और हमारे साथ बीती हुई हर चीज को हमने एक किताब के रूप में बनाया है जो मेरी ऑटोबायोग्राफी है। मेरी यह ऑटोबायोग्राफी “गर्ल विथ विंग्स ऑन फायर” है। दिव्या हर एक के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई हैं कि मुश्किल कितना भी बड़ा क्यों न हो हमें उस मुश्किल से पीछे कभी नहीं हटना चाहिए और उस मुश्किल का सामना करना चाहिए अगर हम अपने समस्याओं से निकलते हैं तो हमारी जिंदगी आगे चलकर आसान हो जाती है। इसके लिए लोगों को अपने ऊपर भरोसा रखने की जरुरत है। अगर आप खुद पर भरोसा रखते हैं तो और बड़ी से बड़ी मुश्किलों का सामना कर लेते हैं और अंततः आपको सफलता जरुर हासिल होगी।