किसी ने बहुत सुन्दर बात कही है, जीवन में आगे वही बढ़ता है जो अपनी कमियों पर रोना रोने के बजाय बुलंद हौसलों के साथ हर परिस्थितयोँ का सामना करता है। इस कथन की झारखंड (Jharkhand) के एक दिव्यांग व्यक्ति ने सही साबित कर दिखाया है। दिव्यांग होने के बावजूद भी वह अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए खेतों में काम करते हैं।
ढाई वर्ष की उम्र में चली गई थी आंखों की रोशनी
दरअसल हम बात कर रहे हैं छोटेलाल उरांव की, जो झारखंड के लातेहार टाऊन स्थित सालोडीह गांव के रहनेवाले हैं। वह जब महज ढाई वर्ष के थे तभी उनके आंखों की रोशनी चली गई जिसके वजह से उन्हें नेत्रहीन बनकर जीवन जीना पड़ा। आर्थिक स्थिति से काफी दयनीय होने की वजह से उनके माता-पिता चाहकर भी उनका इलाज कराने में नाकामयाब रहें।
छोटेलाल के परिवार की स्थिति इतनी खराब थी कि वह ब्लाइंड स्कूल में पढ़ने जाने में भी असमर्थ थे। इसी तरह धीरे-धीरे समय व्यतीत होता गया लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। एक नेत्रहीन के लिए जीवन यापन करना काफी चुनौतीपूर्ण होता है और बहुत लोग हार मान लेते हैं। लेकिन छोटेलाल ने हार न मानकर सामान्य जीवन जीने के लिए सामने आई हर परिस्थति का डटकर सामना किया।
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खेतों में काम करने से लेकर साइकिल चलाना और खाना बनाना भी जानते हैं छोटेलाल
किस्मत से समझौता करके छोटेलाल ने अपने पिता के साथ खेती करना शुरु किया और धीरे-धीरे उन्होंने खेती करने की सब विधि सीखी। अब वह अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए खेतों में फसल उगाने से लेकर उसे काटने तक का सभी काम करते हैं। इतना ही नहीं वह साइकिल चलाकर बाजार जाते हैं और आवश्यक चीजों की खरीददारी भी करते हैं।
आपको जानकर हैरानी होगी कि, साइकिल चलाने और खेतों में काम करने के अलावा उन्हें खाना बनाना भी आता है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अपने परिवार के आजीविका के लिए वह सालों भर खेती करते हैं। इसके अलावा उन्हें सरकार की तरफ से दिव्यांगता पेंशन भी मिलती है। वह दृष्टिबाधित होने के कारण कुछ देख नहीं पाते हैं लेकिन फिर भी अपने परिवार के लिए मेहनत करते हैं ताकि उनका पेट भर सके।
दोनों आंखों से दृष्टि बाधित होने के कारण जीवन यापन करना काफी मुश्किल होता है लेकीन फिर भी उन्होंने हार नहीं मानकर जीवन में आगे बढ़ रहे हैं। उनकी यह कहानी कई लोगों के लिए प्रेरणादायक है।The Logically उनके हिम्मत और मेहनत की प्रशंशा करता है।