कहा जाता है कि जिंदगी एक युद्ध का मैदान है। इस युद्घ के मैदान में जीतता वही है जो गिर कर सम्भल जाए, हार कर फिर से लड़ने के लिए उठ खड़ा हो जाए। हर रोज कोई न कोई नई चुनौती हमारे सामने खड़ी हो जाती है। कई लोग असफलताओं से हार कर अपनी जिंदगी का जंग हार जाते हैं, जो कि बहुत गलत है। जीवन में असफलता अपने साथ सफलता के नए कई अवसर लेकर आती है। सफलता की राह आसान नहीं होती है, उसके लिए कई बार असफलता हाथ लगती है, घोर संघर्ष करना पड़ता है, तब जाकर सफलता हासिल होती है। इसिलिए कहा गया है असफलता ही सफलता की सीढ़ी है।
आज हम आपको ऐसे ही एक IPS के बारें में बताने जा रहे हैं जो अपने जीवन में एक या दो बार नहीं बल्कि 30 बार असफलता का सामना किया। इतनी बार नाकामयाबी का स्वाद चखने के बाद भी उसने हार नहीं मानी और ना ही कभी कुछ गलत करने के विषय में सोचा। उसने अपने असफलता से सीख लेकर आखिरकार IPS बना और एक बेहद रोमांचक मिसाल पेश कर दी। आईए जानते हैं उस IPS की सफलता के पीछे छुपी संघर्ष की रोचक कहानी।
IPS ऑफिसर आदित्य कुमार (Aditya Kumar) का जन्म राजस्थान (Rajasthan) के हनुमानगढ़ जिले के एक छोटे से गांव अजीतपुरा में हुआ। इनके माता-पिता शिक्षक हैं। आदित्य का बचपन इसी गांव के मिट्टी में खेलते हुआ गुजरा। उनकी प्रारंभिक शिक्षा भी यहीं से हुई। आदित्य 8वीं कक्षा तक की पढ़ाई वहीं से किए। उसके बाद उनकी आगे की शिक्षा भदरा स्थित जिला मुख्यालय स्कूल से पूरी हुई।
12वीं के समय आदित्य के समक्ष बहुत सारी परेशानियां ऐसी आईं जो किसी का आत्मविश्वास तोड़ने के लिए पर्याप्त होता है। आदित्य को 2009 में राजस्थान बोर्ड से दी गई परीक्षा में केवल 67% ही नंबर मिले। हमारे समाज में इंजीनियरिंग या सिविल सर्विसेज की तैयारी करने वालों को नम्बरों से तौल दिया जाता है। आदित्य को जितने अंक हासिल हुए थे उतने में उन्हें इसकी तैयारी करने का सुझाव कोई नहीं देता था। लेकिन आदित्य ने वहीं किया जो उनकी करना था, वे किसी की एक नहीं सुने।
आदित्य के परिवार के पास जमीन जायदाद अधिक नहीं होने के कारण वह इस बात से भली-भांति परिचित थे, कि उन्हें आगे बढ़ने का एक मात्र जरिया शिक्षा है, जिसके बल पर वे अच्छी नौकरी और जिंदगी में सफलता हासिल कर सकते हैं। पहले तो आदित्य इंजीनियर बनना चाहते थे, लेकिन इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा पास नहीं कर सके।
आदित्य के पिता भी एक वक्त सिविल सर्विसेज में जाने का स्वपन देखा था। उन्होंने तैयारी भी किया था लेकिन वे सफल नहीं हुए थे। उनके कुछ मित्र सफल हुए। आदित्य उन्हें अपना आदर्श भी मानते है। एक पिता चाहता है कि जो सपना वह पूरा नहीं कर सका वह सपना उसका बेटा पूरा करे। आदित्य के पिता भी चाहते थे उनका अधूरा सपना उनका बेटा पूरा करे। आदित्य के पिता ने सिविल सर्विसेज की तैयारी के लिए आदित्य को प्रेरणा दिया।
यह भी पढ़े :- पिता ने गार्ड की ड्यूटी कर पढाया, आर्थिक तंगी से लड़ते हुए हार नही मानी और IRS अधिकारी बन गए: प्रेरणा
उन्होंने आदित्य को समझाया कि अधिकारी का क्या रुतबा होता है। इसके साथ ही समाज में बदलाव लाने के लिए सबसे पहला हक उन्हीं को दिया जाता है। पिता की इन सभी बातों को गौर से सुनने के बाद आदित्य ने निर्णय किया कि वे सिविल सर्विसेज में ही जाएंगे।
“हार और असफलता हमेशा जीत और सफलता हासिल करने के लिए नया रस्ता खोलती है” इस बात को सही साबित कर के दिखाया है आदित्य ने। सिविल सर्विसेज की तैयारी करने के लिए साल 2013 में आदित्य राजस्थान से दिल्ली आ गये। वहां वे अपनी तैयारी में पूरी लगन के साथ जुट गए।
“सफलता की राह आसान नहीं होती है, उसके लिए कई बार असफलता हाथ लगती है, घोर संघर्ष करना पड़ता है, तब जाकर सफलता हासिल होती है।” 5 वर्षों के दौरान आदित्य 30 परीक्षाओं में असफल रहे। आदित्य ने AIEEE, राज्य प्रशासनिक सेवा, बैंकिंग, और केंद्रीय विद्यालय संगठन समेत अन्य 30 प्रतियोगी परीक्षाएं दी, लेकिन सभी में वे असफल रहे। आदित्य ने 2 बार राजस्थान प्रशासनिक परीक्षाओं में भी कोशिश किया, इंटरव्यू राउंड तक पहुंच गए लेकिन असफल ही रहे। देखा जाए तो शायद उन्हें असफलता इसलिए हासिल हुई कि यदि वहां सफल हो जाते तो जहां आज पहुंचे है वहां नहीं पहुंच पाते।
आदित्य के पास दृढ इच्छा-शक्ति थी। उन्होंने इतनी असफलता के बाद भी हार नहीं मानी और लगे रहे अपने कर्म करने में। आदित्य हिन्दी माध्यम के छात्र हैं। लेकिन वे कभी भी अंग्रेजी से नहीं डरे। अंग्रेजी भाषा में अपनी पकड़ बनाने के लिए आदित्य ने न्यूज पेपर की सहयता लेने लगे। आरंभ में उन्हें एक न्यूज पेपर को खत्म करने में 6 घंटे का समय लग जाता था। लेकिन आहिस्ते-आहिस्ते राह आसान हो गई।
आदित्य ने वर्ष 2014 में UPSC की परीक्षा दिया, लेकिन वह इतना भी आसान नहीं था। इस परीक्षा में वे प्री भी पास नहीं कर सके। उसके बाद आदित्य ने दुगुनी मेहनत की और परिणामस्वरुप वे दूसरी बार मेन्स पास कर लिए,लेकिन इंटरव्यू में फिर से असफल रहे। उनका इस बार फिर से असफलता से ही सामना हुआ। मेन्स में सफलता हासिल करने के बाद उनका आत्मविश्वास बढ़ गया। लेकिन तीसरी बार फिर से वे असफल रहे और इस बार की परीक्षा में वे मेन्स भी क्लियर नहीं कर सके। उस असफलता से उन्होंने शिक्षा लिया कि हर बार एक नए सिरे से शुरुआत करनी पड़ती है।
2017 अंतिम वर्ष था जब आदित्य के लिए सिविल सर्विसेज के दरवाजे बंद होने वाले थे। इस बार की असफलता से सबसे अधिक जो परेशान किया था वह है सामाजिक दबाव। समाज हमेशा आदित्य पर अपनी नजर बनाए हुए था। आदित्य के नाकामयाबी से लोग भी कुछ और ट्राई करने का सुझाव देने लगे थे। आदित्य ने अपना संपर्क लोगो से कम कर दिया लेकिन आदित्य के माता-पिता हमेशा उसके साथ रहते थे। वे हमेशा आदित्य को प्रोत्साहित करते थे। लेकिन उन्होंने किसी को नहीं बताया कि वे फिर से तैयारी में जुटे हैं।
आदित्य 20 घंटे पढ़ाई करते थे। इसके साथ हीं उन्होंने तैयारी की रणनीति में भी कई बदलाव किए। उन्होंने सामान्य ज्ञान पर भी विशेष ध्यान दिया। वे उत्तर देने की टाइमिंग में सुधार करने लगे थे। इसके साथ ही वे उत्तर लेखन का विशेष तौर से अभ्यास कर रहे थे। इससे उनके अन्दर काफी सुधार आया। उस समय आदित्य के जिंदगी का हर रास्ता सिर्फ यूपीएससी की तरफ था।
2017 में आदित्य ने अपने जीवन का सबसे बड़ा और आखिरी दांव खेला। इस बार उनकी इतनी बड़ी कामयाबी हासिल हुई जिसने पीछे के सभी असफलताओं पर पर्दा डाल दिया। ऑल इंडिया 630वीं रैंकिंग के साथ आदित्य UPSC में सफलता पाई। यूपीएससी में सफलता हासिल कर के आदित्य सबके लिए एक प्रेरणास्त्रोत बन गए।
UPSC पास करने के बाद आदित्य ने IPS का चयन किया। आदित्य को पंजाब कैडर मिला। वर्तमान में वह संगरूर के ASP के पद पर कार्यरत हैं। आदित्य बीते साल दिसंबर में पंजाब आए। आदित्य पंजाब में मौजूद हालातों मे बदलाव लाना चाहते हैं। इसके साथ ही वह यहां के युवाओं को ड्रग्स के भयानक लत से बाहर लाना चाहते हैं।
The Logically आदित्य कुमार को व उनकी कठिन मेहनत और दृढ़ इच्छा-शक्ति को हृदय से सलाम करता है।