सभी बच्चों की ज़िंदगी में माता-पिता की अहम भूमिका होती है। वे उन्हें उंगली पकड़कर चलना सिखाने से लेकर उनकी जिन्दगी की हर ख्वाहिश पूरी करते है, जिसका बखान हम शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकते हैं। लेकिन अगर किसी के सर पर माता-पिता का साया न हो तो वह इंसान एकदम से अकेला पड़ जाता है, हिम्मत हार जाता है। उनका मार्गदर्शन करने वाला सहारा छीन जाता है ऐसे में अगर कोई व्यक्ति ख़ुद को संभाल कर IPS बनने तक का सफर को तय करे तो वह पूरे आवाम के लिए प्रेरणास्रोत बन जाता है।
आज की हमारी कहानी एक ऐसे हीं बहादुर लड़की की है जिसके सर से बचपन में ही पिता का साया उठ गया लेकिन वह अपना हौसला नहीं छोड़ी और कड़ी मेहनत कर मात्र 28 साल की उम्र में सिक्किम की पहली महिला IPS ऑफिसर बनी।
सिक्किम (Sikkim) की अपराजिता राय (Aparajita Rai) बचपन से ही मेधावी छात्रा थीं। पढ़ाई के साथ-साथ उन्हें डांस और नृत्य में भी काफी रुचि थी, वह हमेशा क्लास में अव्वल आती थी, साथ ही हमेशा सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी भाग भी लेती थी। अन्य बच्चों की तरह उनकी भी जिंदगी में खुशियां थी उनकी भी जिन्दगी हंसी-खुशी के साथ व्यतीत हो रही थी। लेकिन मात्र 8 साल की उम्र में ही अपराजिता के सर पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा, उनके सर से पिता का साया उठ गया। अपराजिता के पिता डिविजनल ऑफिसर थे। पिता के देहांत के बाद उनके लिए उनकी मां ही एक मात्र सहारा बची। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के बावजूद भी अपराजिता ने हार नहीं मानी अपनी पढ़ाई जारी रखी, कठिन परिश्रम की और 28 वर्ष की उम्र में सिक्किम (Sikkim) की पहली महिला आईपीएस (IPS) ऑफिसर बनकर सफलता का परचम लहराया।
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पिता के देहांत के बाद भी अपराजिता के परिवार वालों ने पढ़ाई में उनका पूरा साथ दिया, हमेशा उन्हें प्रोत्साहित किया। अपराजिता भी सबकी उम्मीदों पर खड़ा उतरती थीं, अपनी पढ़ाई पूरी मेहनत और लगन से करती थी और उनकी मेहनत रंग भी लाती गईं। वह 12वीं की बोर्ड परीक्षा में 95% अंक प्राप्त कर बोर्ड टॉपर रही। राज्य में टॉप करने के लिए अपराजिता को ताशी नामग्याल एकेडमी में “बेस्ट गर्ल ऑल राउंडर श्रीमती रत्ना प्रधान मेमोरियल ट्रॉफी” से सम्मानित किया गया।
अपराजिता लॉ की पढ़ाई करने के लिए कोलकाता गईं और वहां नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ ज्यूडिशियल साइंसेस से वर्ष 2009 में एलएलबी की डिग्री प्राप्त की। लॉ की पढ़ाई करने के पीछे उनका मकसद समाज में बुराइयों के खिलाफ लड़ना था। अपराजिता यूपीएससी (UPSC) जैसी कठिन परीक्षा दो बार में पास की। 2011 में पहली परीक्षा में उन्हें 768वीं रैंक मिली लेकिन अपराजिता इससे संतुष्ट नहीं थी और 2012 में पुनः यूपीएससी की परीक्षा देकर 358 रैंक प्राप्त की और सिक्किम (Sikkim) की पहली महिला आईपीएस ऑफिसर बनी।
वर्तमान में अपराजिता की पोस्टिंग पश्चिम बंगाल में है, वह अपने अच्छे कर्मों से हमेशा सुर्खियों में रहती हैं। अपराजिता की पोस्टिंग जहां भी होती है वह लॉ एंड ऑर्डर से कभी कोई समझौता नहीं करती हैं। अपराजिता अपनी ईमानदारी के लिए अनेकों अवार्ड से सम्मानित भी हो चुकी हैं। उन्हें फीड कॉम्बेट के लिए “श्री उमेश चंद्र टॉफी”, “ट्रॉफी फॉर बीट टर्नआउट” तथा पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा “गवर्मेंट ट्रॉफी फॉर बंगाली” जैसे अनेकों अवार्ड मिल चुका है।
अनेकों मुश्किलों और कठिनाइयों का सामना करते हुए जिस तरह अपराजिता राय ने अपना मुकाम हासिल किया वह अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत है। अपराजिता राय (Aparajita Rai) का जीवन, उनकी मेहनत, कार्यशैली और सफलता एक मिसाल है। The Logically अपराजिता राय जी को नमन करता है।