आधुनिक युग में तो बहुत तरक़्क़ी हुई है। अगर पहले की बात की जाये तो उस वक़्त हमारे पास इतना कुछ नहीं था। फिर भी सब खुश रहते थे। अपनी जिंदगी में कैसे आगे बढ़ना है, यह उन्हें बखूबी पता होता था। पहले के लोगों का शरीर भी हमारे अपेक्षा बहुत स्वस्थ होता था। अगर कोई बीमारी किसी को हुई भी तो वह बहुत जल्द ठीक हो जाता था। आज की हमारी कहानी एक ऐसे सफल इंसान की है जो उस दौर में खेती किया करते थे, जिस वक़्त जैविक खेती के बारे में कोई सोचा तक नहीं था। यह किसान पूरे विश्व के किसानों के लिए उदाहरण है। उस समय उनके मार्गदर्शन के लिए भी कोई नहीं था। देखा जाये तो इन्होंने अंधेरे में सुई ढूंढने के कार्य शुरू किया। इन्हें राष्ट्रीय ही नहीं अंतराष्ट्रीय पुरस्कार ने भी सम्मानित किया गया है। तो आइये पढ़ते हैं, इस किसान के बारे में जो देश में ही नहीं विदेशों में भी अपनी सफलता के परचम लहरा चुके हैं और भारत वर्ष का गौरव बढ़ायें हैं।
ईश्वर सिंह कुंडू
ईश्वर सिंह कुंडू (Ishwar Singh Kundu) हरियाणा (Hariyana) से सम्बद्ध रखते हैं। इनका जन्म 1962 में कैलरम (Kailaram) में किसान परिवार में हुआ। एक किसान परिवार से सम्बंध रखने वाले ईश्वर की जिंदगी बड़ी मुश्किल से गुजरी है। छोटे से गांव के होने के बावजूद यह अपनी जिंदगी में कुछ बड़ा मुकाम हासिल करना चाहते थे, जो इन्होंने कर दिखाया। इनकी जैविक उर्वरक बनाने वाली कम्पनी भी है जिसका नाम है “कृषको हर्बोलिक लैबोरेटरी”। यह कम्पनी किसानों के लिए रिसर्च कर बहुत से उत्पादों को तैयार करता है।
ईश्वर की पढ़ाई
ईश्वर ने 10वीं कक्षा की पढ़ाई अपने ही गांव के उच्च विद्यालय से सम्पन्न की है। फिर आगे की पढ़ाई के लिए हरियाणा के जिले कैथल गयें और वहां इन्होंने ड्राफ्ट्समैन कोर्स के लिए नामांकन कराया। कोर्स के दौरान ईश्वर का विवाह करा दिया गया। वर्ष 1984 में जब इनका कोर्स कम्पलीट हुआ तब इन्होंने नौकरी ढूंढनी शुरू कर दी। लेकिन ईश्वर नौकरी पाने में असफल रहें।
चाय की दुकान में किये काम
हर इंसान अपने जीवन मे पढ़ाई के बाद नौकरी हासिल करना चाहता है। ईश्वर भी नौकरी करना चाहते थे। इन्होंने चाय की दुकान दिल्ली (Delhi) में चलाई। छत्तीसगढ़ (Chhattisagadh) में नक्शानवीश का कार्य भी किये। फिर अपने गांव में खेतों में उपयोग किये जाने वाले औजारों को ठीक कर उन्हें भी बेचा। कैथल में इन्होंने कीटनाशक दवा बेचने वाली दुकान भी खोली और दवा बेचने लगें। कीटनाशकों को बेचने से इन्हें एलर्जी हुई तब इन्हें पता चला कि यह खेतों की फसल, मिट्टी और किसानों के लिए कितने हानिकारक हैं। इन्होंने यह कार्य छोड़ने का निश्चय किया और अपने गांव के लिए निकल गए।

गांव आ कर शुरू की देशी खेती
वर्ष 1993 में ईश्वर अपने गांव आएं और ऑर्गेनिक खेती करने लगें। उस समय इस ऑर्गेनिक खाद या खेती के बारे में कोई नहीं जानता था। लेकिन ईश्वर ने अपने मन मे ठाना था कि वह देशी तरीक़े से खेती करेंगे और इसमें लगें रहें। ईश्वर देशी खेती करना तो चाहते तो थे लेकिन इस विषय में कुछ जानकारी नहीं थी ना ही कोई मार्गदर्शन करने वाला था। उस दौर में की गई खेती इन्हें आज राष्ट्रीय ही नहीं अंतराष्ट्रीय लेवल का किसान बना चुकी है।
नीम से शुरू किया खेतों के लिए उर्वरक बनाना
ईश्वर ने अपना दिमाग लगाया और नीम का उपयोग कर खेती शुरू कियें। फिर इन्होंने धतूरे और आक का उपयोग किया। लेकिन ईश्वर यह जानते थे कि यह हमारे लिए हानिकारक है तो खेतों और फसलों के लिए भी सही नहीं होगा। जब वे दिल्ली में थे वहां इन्होंने जड़ी बूटियों से जुड़ी एक आयुर्वेदिक किताब खरीदी थी। इन्होंने इस किताब को पढ़ा और उन जड़ी-बूटियों को चुना जो मानव के लिए लाभदायक हो क्योंकि यह खेत के लिए भी असरदार होगा। यही से प्रारंभ हुआ ईश्वर का एक नया सफ़र। आयुर्वेदिक नुस्खे से खेती की शुरुआत। जो जड़ी बूटी जिह्वा पर कड़वी लगती उन्हें ईश्वर ने अलग किया और जो सही लगा उसका प्रयोग शुरू कियें।
लोग कहते थे पागल है
ईश्वर अपने कार्य मे हमेशा लगे रहते। जब लोग इन्हें देखते तो बोलते, इनके बच्चों को कौन संभालेगा.. यह तो पागल हो चुका है। फिर भी ईश्वर अपने काम में लगें रहें। छोटी-छोटी सफलता से उनका मनोबल बढ़ता रहा। एक लंबे समय.. 5 वर्ष बाद जो हुआ उस पर ईश्वर को भी विश्वास नहीं हो रहा था। इन्होंने जो उर्वरक बनाया, पहले उसका उपयोग खुद के खेतों में किया। फिर अपने मित्रों को भी दिए। उपयोग के बाद सब ने उनकी तारीफ की। मित्रों ने उनकी सराहना करते हुए कहा कि ईश्वर ने तो कमाल कर दिया।

किसानों को फ्री में देना चाहते हैं कीटनाशक
ईश्वर ने किसानों को यह कीटनाशक फ्री में देना शुरू किया और कहा कि मैं आप लोगों को भी बता दूंगा कि इसको घर पर कैसे तैयार करना है। लेकिन यह बात तो हम जानते हैं कि फ्री की चीजों का कोई मोल नहीं होता। कोई किसान कीटनाशक लेना नहीं चाहता था। फिर जिन मित्रों ने ईश्वर के उर्वरक का उपयोग किया था, उन्होंने ईश्वर से कहा कि तुम इन दवाइयों को बोतल में बंद करो और 100-150 रुपए की कीमत पर बेचना शुरु करो, तभी लोग इसे खरीदेंगे। इसके महत्व को पहचान पाएंगे। ईश्वर ने अपने मित्रों के सुझाव को अपनाया और उनके कहने अनुसार ही काम किया जिससे वह इस कार्य में सफल हुए।
सीखाना शुरू कियें उर्वरक बनाना
ईश्वर किसानों को नहीं बताते कि यह उर्वरक जैविक है या नहीं। वह इतना जरूर बताते कि यह रसायनिक उर्वरक नहीं है वह डालने के बजाय खेतों में इनका उपयोग करो। कुछ दिनों बाद उन्होंने खेतों में जा कर किसानों को बताना शुरू किया कि रासायनिक उर्वरक का उपयोग ना करें। उन्हें जागरूक करने के लिए अभियान भी चलाना शुरु किया। उन्हें जब इस बात का अंदाजा लगा कि किसान इस बात को समझ रहे हैं तब उन्होंने किसानों को खाद कैसे तैयार करना है, यह सीखना शुरू किया।
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ईश्वर के ऊपर हुआ मुकदमा
कुछ कंपनियों और लोगों ने ईश्वर के पीछे पुलिस को लगा दिया। कुछ लोगों ने बताया कि यह जो कार्य कर रहे है वह गलत है। इनके ऊपर 4-सौ बीसी का मुकदमा दर्ज हुआ। लेकिन उन लोगों और कंपनियों को राज्य कृषि विभाग की तरफ से कोई सहयोग नहीं मिला। 6 वर्षों तक यह मुकदमा चला। फिर ईश्वर इसमें जीत गयें और उनकी खोई हुई पहचान लौट आई।
जब इस मुकदमे में ईश्वर फंसे थे उस दौरान यह एक ऐसे व्यक्ति से मिले, जिन्होंने उन्हें एक मैगजीन दी जिसमें नई-नई रिसर्च करने वालों के विषय मे लिख था। इन्हें जो मैगजीन मिली थी वह मैगजीन “राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान अहमदाबाद” से थी। फिर ईश्वर ने इस मैगजीन पर अपने रिसर्च के बारे में जानकारियां देते हुए पत्र लिखा, और उन्होंने ढेर सारी जानकारियां भी मांगी। कुछ ही दिनों बाद एक टीम रिसर्च के लिए गांव आई और उन्होंने इनके फसलो के साथ लैब की जांच की। इस जांच के बाद एक बड़े पैमाने पर ईश्वर का खोज सही साबित हुआ।
A. P. J. अब्दुल कलाम ने किया मदद और सम्मानित
ईश्वर से डॉ. कलाम ने कुछ सवाल पूछे और उनके रिसर्च की खूब सराहना भी की। वर्ष 2007 में राष्ट्रपति A. P. J. अब्दुल कलाम ने इन्हें पुरस्कार से सम्मानित किया। फिर कलाम ने इनकी मदद के लिए ओएसडी डॉ. बृह्मसिंह से कहा। अब इसके बाद ईश्वर के उत्पादों का उपयोग राष्ट्रपति भवन के बगीचे में भी किया जाने लगा जिससे ईश्वर को बहुत ही खुशी हुई।

ईश्वर के उत्पादों की विशेषता
- ईश्वर के जितने भी उत्पाद हैं वह पूर्णतः जड़ी बूटियों से निर्मित हैं। फसलों को कीड़े मकोड़े से बचाव और मिट्टी की उर्वरकशक्ति बढ़ाने के लिए ईश्वर ने “कमाल 505” उत्पाद का निर्माण किया है।
2. जमीन की परत को सही रखने और फफूंदी जनित रोग या जड़ गलन ना हो, इसके लिए इन्होंने ऑर्गेनिक कार्बन का एक स्रोत तैयार किया है। जो पाउडर की तरह है इसका नाम “कमाल क्लैम्प” है।
3.सब्जियों तथा मिर्ची में कोई कीड़ा मकोड़ा ना लगे, ना ही कोई सफेद मक्खी इनकी मिठास को चूस लेती है इसे बचाने के लिए इन्होंने “K55” नामक कीटनाशक का निर्माण किया है। एक और कीटनाशक का निर्माण किया है जिसका नाम कमाल केसरी है।
मिल चुके हैं बहुत सारे पुरस्कार
ईश्वर को उनकी खोज के लिए लिम्का बुक रिकॉर्ड, इंडिया बुक रिकॉर्ड, इनोवेटिव फार्मर अवार्ड अवार्ड, जगजीवनराम अभिनव कृषि अवार्ड, उत्तम स्टॉल अवार्ड, ईएमपीआई इंडियन एक्सप्रेस इनोवेशन अवार्ड, इसके अलावा 3 दर्जन अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है। इनकी खोज 2008 में जर्नल संख्या 51 में भारत सरकार के “पेंपेट कार्यालय” में छपा है। इतना ही नहीं उन्हें अंतरराष्ट्रीय अवार्ड अवार्ड भी मिला है। “इंटरनेशनल इनोवेशन फेस्टिवल” में 1 हज़ार डॉलर रुपए पुरस्कार के तौर पर मिले हैं।
इतना ही नहीं वर्ष 2013 में “महिंद्रा एंड महिंद्रा” के माध्यम से मुंबई में “स्पार्क द राइज” का आयोजन हुआ। वहां भी ईश्वर को 44 लाख रुपये राष्ट्रीय प्रतियोगिता में पुरस्कार स्वरूप मिलें हैं। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के द्वारा एक कार्यक्रम में इनोवेशन स्कॉलर्स के टॉप टेन में भी चयनित हुयें हैं।
इनती सफलता हासिल करने के बावजूद ईश्वर सभी किसानों को अपने आस-पास के जड़ी बूटियों से कैसे उत्पादन तैयार करना है, बता रहें हैं। कम से कम खर्च में कैसे उत्पादन निर्माण कर खेती करें यह भी अपने किसानों को बताते हैं ईश्वर। अगर किसी को ईश्वर से कोई जानकारी चाहिए तो वह “कृषिको हर्बोलिक लैबोरेटरी” में सम्पर्क कर सकता है।
The Logically ईश्वर के अन्य उत्पादों के निर्माण और खेतों में किसान की मदद के लिए नमन करता है। अगर हमारे कोई किसान मित्र इनसे कोई जानकारी प्राप्त करना चाहें तो वह 07015621521 या 09813128514 पर कॉल कर सकते हैं, या फिर kisan.kamaal@gmail. com पर ईमेल भी कर सकते हैं।
