यह बात तो सब जानते है की प्लास्टिक हमारे पर्यावरण के किये हानिकारक है। फिर भी हम उसका इस्तेमाल करते हैं और प्लास्टिक के कचरे को ऐसे ही फेंक देते हैं। यह जानते हुए की यह हमारे के पृथ्वी के अस्तित्व के लिए ख़तरनाक हैं। पर हमसब में से ही एक है जतिन गौड़(Jatin Gaur) जिन्होंने इस प्लास्टिक के कचरे से निजात दिलाने के लिए एक मुहिम शुरू की। जतिन गौड़(Jatin Gaur) हरियाणा के हिसार के रहने वाले हैं। इन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की हुई है पर एक पेपर खराब होने के कारण यह जॉब नही जॉइन कर पाए। पेपर क्लियर होने के बाद भी जतिन घर पर ही रहे। परिवार के साथ जतिन को भी इंजीनियरिंग करने के बाद भी घर पर रहने का मलाल था!
जतिन ने एक पर्यावरण से संबंधित आर्टिकल पढ़ा जिसमे उन्हें प्लास्टिक के कचरे से पृथ्वी को हो रहे नुकसान के बारे में पता चला। जतिन ने जब इन कचरो से निजात का तरीका इंटरनेट पर ढूंढा तब इन्हें रिड्यूस, रियूस और रिसायकल के बारे में पता चला। इनमे जतिन को सबसे अच्छा रिसायकल लगा पर उनके पास उस समय रिसायकल करने का साधन नही था। तब उन्होंने प्लास्टिक को रियूस करने का विचार किया। जतिन ने कही पढ़ था कि अमेरिका में इको ब्रिक्स से स्कूल बनाये जा रहे हैं। उन्हें यह आईडिया पसंद आया। जतिन ने अपने आस-पड़ोस ने देखा की सभी अपने-अपने तरीके से प्लास्टिक के कचरे को इस्तेमाल में ला रहे हैं जैसे वर्टिकल और हैंगिंग गार्डन में इसका इस्तेमाल पर इन्होंने कही भी इको ब्रिक्स का इस्तेमाल नही देखा। तब इन्होंने इसके बारे में सबको जागरूक करने का सोचा।
इको ब्रिक्स प्लास्टिक वेस्ट से बने ब्रिक्स कहलाते है। यह प्लास्टिक के बोतल में प्लास्टिक के रैपर (चिप्स, बिस्किट के रैपर ) को बोतल में भरकर ढक्कन बन्द कर दिया जाता है और इन्ही इको ब्रिक्स का इस्तेमाल निर्माण कार्य में किया जाता हैं।
अपने स्कूल से किया इको ब्रिक्स से निर्माण की शुरुआत
जतिन को अब तक इतना समझ आ चुका था कि उन्हें अब इसी क्षेत्र में कुछ करना है। उन्होंने इसके लिए प्लास्टिक की बोतलों को इकट्ठा करना शुरू किया और 2 लोगों को भी रखा जो उन बोतलों में प्लास्टिक के रैपर भरते थे और इसके लिए जतिन उन दो लोगों को 2 रुपये प्रति बोतल के हिसाब से पैसे देते थे जतिन इस तरह इको ब्रिक्स बना रहे थे पर उन्हें इस काम में सफलता नहीं मिल रही थी क्योंकि यहां पर उनकी कोई कमाई का जरिया नहीं था। इसमें उनका खर्च हो रहा था पर उन्हें इनकम नहीं मिल रही थी और साथ ही उन्हें उनके परिवार का समर्थन भी नहीं मिल रहा था। उनके पिता ने तो उनसे यहां तक कह दिया था कि पहले आत्मनिर्भर बनो उसके बाद यह सब करना। जतिन ने इसके लिए उपाय निकाला उन्होंने अपने खर्चे के लिए बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया और इको ब्रिक्स बनाने के लिए उन्होंने अपने ही स्कूल के प्रिंसिपल और शिक्षकों को इसके बारे में बताया।
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वह प्रिंसिपल और शिक्षकों को इस बारे में समझाने में सफल हुए। इस तरह उस स्कूल में एक सेमिनार का आयोजन किया गया जिसमें जतिन ने बच्चों को इको ब्रिक्स बनाना सिखाया। स्कूल से 700 तक इको ब्रिक्स मिल जाते थे । इन इको ब्रिक्स से जतिन स्कूल में ही गमले बनवाये और बरगद के पेड़ के नीचे एक चबूतरे का निर्माण करवाया। जतिन ने प्लास्टिक के कचरे के लिए शहर के 2-3 कैफ़े से बात की और वह लोग भी जतिन की बात समझ कर प्लास्टिक वेस्ट देने के लिए तैयार हो गए।इस तरह प्लास्टिक वेस्ट जतिन को कैफ़े से मिल जाते और इको ब्रिक्स स्कूल के बच्चे तैयार करते। इन इको ब्रिक्स से जतिन ने एक शौचालय और छोटा सा डॉग शेल्टर का निर्माण करवाया। जतिन गौड़ ने अपने इस मुहिम को कबाड़ी जी नाम दिया हैं।
कबाड़ी जी (Kabadi ji) के रास्ते मे आयी परेशानियां
जतिन को इस काम के शुरुआत में अपने परिवार का समर्थन नही मिला। बाद में जो बच्चे ब्रिक्स बना रहे थे उन्हें तो उस काम मे मज़ा आ रहा था पर उनके माता-पिता को इससे परेशानी थी। उन्हें लग रहा था कि इससे बच्चो की पढ़ाई खराब हो रही हैं तब स्कूल के शिक्षकों ने बच्चों के माता-पिता को इसके फायदे समझाए।
जतिन ने सोशल मीडिया के ज़रिए लोगो को अपने इस मुहिम से जोड़ा।
अन्य स्कूल और कॉलेज इको ब्रिक्स से निर्माण के किये संपर्क कर रहे हैं
जतिन बताते है कि आज दूसरे स्कूल और कॉलेज भी इको ब्रिक्स से निर्माण के लिए संपर्क कर रहे हैं। लॉक डाउन के पहले एक कॉलेज मैनेजमेंट से एक कैफेटेरिया के निर्माण के प्रोजेक्ट पर बात हुई थी और कुछ महीनों में यह काम पूरा भी हो जाएगा। आज जतिन को दूसरे शहरों से भी इको ब्रिक्स के बारे में जानने के लिए फ़ोन आते हैं।
अगर आप भी जतिन से इको ब्रिक्स से सम्बंधित जानकारी लेना चाहते हैं तो 9053122979 पर सम्पर्क कर सकते हैं।