अंग्रेजी में एक कहावत है: “The only thing that you absolutely have to know is the location of the library.”
ALBERT EINSTEIN
मानव शरीर को स्वस्थ बनाए रखने के लिए जिस प्रकार हमें पौष्टिक तथा संतुलित भोजन की आवश्यकता होती है. उसी प्रकार मानसिक स्वास्थ्य के लिए ज्ञान की प्राप्ति आवश्यक है, और इस मानसिक स्वास्थ्य के लिए पुस्तकालय (Library) एक (Immunity Booster) का काम करती हैं.- Bansa Community library
कैसे मिली प्रेरणा?
बदलाव किसी तरह की सुविधा, Luxury और पैसों (Money) की राह नहीं देखता है. ये ऐसी प्रक्रिया है जो अभाव और कमी में ही अपनी राह निकालता है. बदलाव की इस मुहिम के वाहक उत्तर प्रदेश के बाँसा गांव के ही एक युवा जतिन सिंह ने छेड़ा है. मात्र 24 वर्ष के जतिन ने दिसंबर 2020 में अपने गांव में ‘बांसा कम्युनिटी लाइब्रेरी एंड रिसोर्स सेंटर’ की शुरुआत कर दी.
कौन हैं जतिन सिंह(Jatin- Founder, Bansa community Library)
उत्तर प्रदेश के निवासी जतिन सिंह (Jatin Singh) सिंह ने मशहूर गलगोटिया विश्वविद्यालय से वकालत की है. इनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा गांव के पास के ही एक नीजि स्कूल में हुई. फिलहाल यूपीएससी की तैयारी कर रहे जतिन बताते हैं, “मैं अपने गांव में ही पला-बढ़ा हूं. मेरी स्कूली पढ़ाई पास के ही एक निजी स्कूल में हुई. यहाँ का इन्फ्रास्ट्रक्चर तो शहरी था, लेकिन परिवेश बिल्कुल ग्रामीण था. यहां से मैं लखनऊ के सिटी मॉन्टेसरी स्कूल गया, जहां गांव और शहर के बीच के फर्क साफ-साफ दिखाई दे रहा था.
लाइब्रेरी ही क्यों? (Bansa Community Library)
इस बारे में विस्तार से बताते हुए कहते हैं कि मुझे बचपन से ही किताबों में काफी रुचि थी और मुझे जब भी समय मिलता, मैं पास की लाइब्रेरी में जाने लगा था.
इस लाइब्रेरी का नाम ‘द कम्युनिटी लाइब्रेरी’ था और यहां सभी के लिए सभी सुविधाएं बिल्कुल मुफ्त थीं. यहां दक्ष नाम का एक छोटा सा बच्चा रोज पढ़ने आता था. उसके माता-पिता काफी गरीब थे और वे स्लम में रहते थे. शुरू-शुरू में तो दक्ष काफी दुबका और सहमा सा रहता था. लेकिन, धीरे-धीरे वह नई-नई चीजें सीखने लगा और लोगों से अंग्रेजी में चीजों को डिस्कस करने लगा। वह फिलहाल छठी क्लास में है और आज भी हर दिन लाइब्रेरी जाता है.”
दक्ष में आए इस बदलाव ने जतिन के मन पर गहरा प्रभाव छोड़ा.उन्होंने तय कर लिया कि उन्हें जब भी मौका मिलेगा, वह अपने गांव में भी इसी तर्ज पर लाइब्रेरी जरूर खोलेंगे. अभी उनके दिमाग में ये सब चल ही रहा था कि कोरोना महामारी ने दस्तक दिया. उस वक्त जतिन अपनी पढ़ाई के आखिरी साल में थे. Dec 2020 में आखिरकार उन्हें मौका मिल ही गया अपने सपने को साकार करने का. उनकी Community Library शुरू हो गई.
Library का अद्भुत संग्रह (Collection of Bansa community library)
आपको बता दें कि इस लाइब्रेरी में हिन्दी, अंग्रेजी के अलावा, उर्दू और अवधी में तीन हजार से अधिक किताबों का संग्रह हैं. यही नहीं यहां प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए भी सभी आवश्यक किताबें और पत्रिकाएं (Magazine) उपलब्ध है. सबसे बढ़कर यह लाइब्रेरी फ्री इंटरनेट Free Internet की सुविधा भी दिया जा रहा है. इतना ही नहीं, बच्चों को पढ़ाई में मदद के लिए एक्सपर्ट गाइड भी मिलते हैं.
यह कैसे संभव हुआ?
जतिन की यह राह आसान नहीं थी. था तो केवल मजबूत इरादा. उनके पास न पैसे थे, न सुविधा. एक ही चीज़ उनके पास थी Internet की सुविधा. इंटरनेट की उपलब्धता ने इसमें उनकी भरपूर मदद की. Internet की मदद से जतिन ने Crowd Funding के ज़रिए करीब 7 लाख रूपये इकठ्ठा किये और लाइब्रेरी का काम शुरू कर दिया.
किताबें जुटाने में उन्हें द कम्युनिटी लाइब्रेरी, राजकोट लाइब्रेरी, प्रथम बुक्स जैसी संस्थाओं की पूरी मदद मिली. आज उनकी इस लाइब्रेरी में किताबों के अलावा मैगजीन, अखबार और इंटरनेट जैसी कई सुविधाएं भी हैं.
बांसा कम्युनिटी लाइब्रेरी में पढ़ते बच्चे (More than 1000 kids studying in Bansa community library)
लाइब्रेरी ने कम किया आर्थिक बोझ
बांसा गांव की आबादी 11 हजार से भी ज्यादा है. यहां के लोगों की आमदनी का मुख्य जरिया खेती है. वहीं, अधिकांश युवा सरकारी नौकरी की तैयारी करते हैं.
कई बार इन युवाओं को बेहतर तैयारी के लिए पास के कानपुर या लखनऊ जैसे शहरों में जाना पड़ता है, जिससे उनके परिवार का आर्थिक बोझ काफी बढ़ जाता है. गांव वाले इस समस्या से तो जूझ ही रहे थे कि तभी 2020 में कोरोना महामारी ने एक और समस्या खड़ी कर दी. शहरों में पढ़ने वाले इन सभी युवाओं को गांव लौटना पड़ा. यहाँ गाँव में न किताबें थी, न कोई गाइड. ऐसे में, इन युवाओं को अपना भविष्य अधर में लटका हुआ नज़र आ रहा था.
पर जतिन की लाइब्रेरी इन युवाओं के लिए एक आशा की किरण बनकर आयी.
लाइब्रेरी की तरक्की
इस लाइब्रेरी से फिलहाल 1400 से अधिक छात्र जुड़े हुए हैं, जिनमें से करीब 300 छात्र, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं. जतिन ने छात्रों की मदद के लिए दो तरह की टीम बनाई है. हमारी टीम दो तरीके से काम कर रही हैं. हमारी एक टीम जमीनी स्तर (Ground Level) पर है, वहीं दूसरी टीम उनके (Online Support) ऑनलाइन सपोर्ट के लिए है. इस काम में उन्हें उनके मित्र मालविका अग्रवाल, अभिषेक व्यास जैसे कॉलेज के साथियों की पूरी मदद मिलती है.
बच्चों और ग्रामीणों को लाइब्रेरी के प्रति जागरूक करते जतिन के साथी (Bansa community library)
ऐसे करते हैं लाइब्रेरी की खर्च का इंतज़ाम
जतिन के साथ फिलहाल 40 वालंटियर्स जुड़े हुए हैं, जिनकी मदद से ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों क्लासेज होती हैं. वहीं, उन्होंने लाइब्रेरी के पूरे काम को संभालने के लिए चार लोगों को आमदनी का जरिया भी दिया है. लाइब्रेरी को चलाने में जतिन को हर महीने करीब 10 हजार का खर्च आता है. इस खर्च को पूरा करने के लिए सभी वालंटियर्स हर महीने 100-200 रुपए जमा करते हैं.
नहीं लेते हैं कोई जुर्माना
इस लाइब्रेरी की सबसे बड़ी बात है कि किसी भी हाल में Students से कोई जुर्माना नहीं लिया जाता है. यहाँ पहले एक हफ्ते के लिए किताब दी जाती है. छात्र जरूरत पड़ने पर उसे फिर से रिन्यू (Renew) करा सकते हैं. यदि इस दौरान किताब फट जाए या वापस जमा करने में देर हो जाए, तो इसके लिए कोई जुर्माना नहीं लिया जाता है.
इस बारे में जतिन कहते हैं, मेरे गांव की स्थिति ऐसी है कि यदि हमने छात्रों के लिए एक रुपया भी फीस या जुर्माना रखा, तो अगले दिन से वे लाइब्रेरी आने से हिचकिचाएंगे, यहां किसी से कोई आईडी (ID) नहीं मांगी जाती, यहां सभी सदस्यों के लिए सभी सुविधाएं बिल्कुल फ्री हैं.
लाइब्रेरी से विद्यार्थियों को जोड़ने के लिए कई सभाओं का आयोजन कर लोगों में जागरूकता का संचार किया जाता है.
जतिन बताते हैं कि गांव के लड़कों को कानपुर या लखनऊ जैसे शहर में रहने के लिए हर महीने कम से कम 3000 से 5000 रुपए खर्च करने पड़ते हैं. वहीं, लड़कियों के लिए तो गांव से शहर जाना ही काफी मुश्किल काम है. लेकिन गांव में ही लाइब्रेरी खुल जाने से दोनों समस्याओं का एक साथ निदान हो गया है.
The Logically, जतिन सिंह द्वारा किए गए इस कार्य के लिए उन्हें बधाई देता है.