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हिंदु-मुस्लिम दोनो धर्मों के 2000 लावारिश लोगों का अंतिम संस्कार कर चुके हैं, पिछले 40 वर्षों से कर रहे यह कार्य

हमारे समाज में कई लोग ज़रूरतमंदों की अलग-अलग तरीके से मदद कर मानवता की मिसाल पेश करते है। कोई फुटपाथ पर रहने वाले गरीबों को खाना खिलाता है, तो कोई उनके लिए वस्त्र भेंट करता है। फुटपाथ पर रहने वालों में कुछ लोग तो ऐसे होते हैं जो अपनों के रहते हुए भी दर-दर की ठोकरें खाते फिरते है। कभी भूखे पेट सोते है तो कभी ठंड में पर्याप्त वस्त्र के बिना ठिठुरते रहते है। उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं रहता है। लेकिन हमारे समाज में समाजसेवी भी है जो ऐसे लोगों की मदद करने के लिए दिन-रात एक किए रहते है। एक ऐसे ही व्यक्ति है जय प्रकाश जो पिछले 40 सालों में 2000 लावारिस लाशों को दे चुके है अंतिम विदाई।

मान्यता है कि हर धर्म में अलग-अलग रिवाजों के साथ अंतिम संस्कार किया जाता है। वहीं ज़्यादातर लोगों को अपने परिवार वालों से अंतिम विदाई मिलती है लेकिन ऐसे भी कई लोग है जिन्हे मरणोपरांत वह सम्मानजनक विदाई नहीं मिल पाती। हम कई ऐसी घटनाओं से रूबरू होते है कि लोगों को मरने के बाद लावारिश घोषित किया जाता है। उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं होता है। ऐसे ही लोगों का सम्मानजनक अंतिम संस्कार करते है उत्तराखंड के जय प्रकाश (Jay Prakash)।

जय प्रकाश सिंह का परिचय

जय प्रकाश (Jay Praksah) उत्तराखंड (Uttrakhand) की राजधानी देहरादून (Dehradun) के रहने वाले है। इन्हें लोग कालू भगत के नाम से भी बुलाते है। कालू भगत अब 60 साल के हो चुके है और वह पिछले 40 वर्षों से लावारिश लाशों को अंतिम विदाई दे रहे है। भगत के लिए यह काम उनका मकसद बन चुका है।

न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, भगत के लिए यह देखना अत्यंत दुखी था कि कुछ लोगों को यह दुनिया छोड़ने के पश्चात उन्हें अंतिम विदाई नहीं मिलती। उनका मानना है कि यह मरने वालों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं है, जो उनके लिए असहनीय था और वह खुद ही इस नेक काम के लिए आगे बढ़े।

Representatiional Image

कैसे आईं लावारिश लाशों को अपनाने की प्रेरणा

भगत पिछले 40 सालों में 2000 से भी ज्यादा लावारिश लाशों का अंतिम संस्कार कर चुके है। भगत एक समय अपने किसी रिश्तेदार की अंतिम संस्कार में गए थे। वहां उन्होंने देखा कि कई लाशें जलाई जा रही थी लेकिन एक लाश वहीं कई घंटों तक पड़ी रही क्योंकि उस लाश को अपना कहने वाला कोई नहीं था। उसपर किसी का दावा नहीं था। भगत ने उस लाश का अंतिम संस्कार के लिए अपने पिता से आग्रह किया और उसे अंतिम विदाई भी दी। इस घटना ने भगत को ऐसे झकझोर दिया कि उन्होंने उस समय यह निर्णय लिया कि आगे वह लावारिश लाशों को अपनाएंगे। उन्हें सम्मानजनक अंतिम विदाई देंगे जैसे अपनों के साथ सामान्य लोगों को मिलता है। इस क्रम में वह किसी भी धर्म, जाति को बाधा नहीं बनने देते, सबको एक समान हीं समझते है।

जय प्रकाश ने जिस नेक कम का जिम्मा उठाया है, वाकई प्रेरणादायक है। यदि हम अपनों की जिम्मेदारी पूरी ईमानदारी से निभाए तो आगे हमारे समाज को जयप्रकाश जैसे लोगों की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। The Logically, Jay Praksah के द्वारा किए गए कार्यों को नमन करता है।

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