“मन के हारे हार है और मन के जीते जीत”।
जिंदगी में कई बार मनुष्य को कठिन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिसमें से कुछ लोग शीघ्र ही हार मान लेते हैं तो वहीं कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो इन मुश्किलों का डटकर सामना करते हैं और सफलता की नई इबारत लिखते हैं। आज की यह कहानी भी एक ऐसी ही महिला की है, जो एक हाथ से पेंटिंग बनाकर आज लाखों रुपये की कमाई कर रही है।
कौन है वह महिला?
यह कहानी है झारखंड (Jharkhand) रहनेवाली रुदल देवी (Rudal Devi) की, जिन्होंने बचपन से ही गरीबी झेलते हुए आज अपनी एक अलग पहचान बना रही हैं। आर्थिक स्थिति इस तरह दयनीय थी कि वह विद्यालय जाकर शिक्षा भी ग्रहण नहीं कर सकी। इसके अलावा काफी कम उम्र में ही उनकी शादी हजारीबाग के बड़कागांव प्रखंड के जोरहट गांव में कर दी गई थी। किस्मत की धनी नहीं होने के कारण ससुराल में भी उन्हें गरीबी का सामना करना पड़ा।
आर्थिक तंगी के कारण शुरु की सोहराय पेंटिंग बनाना
ससुराल में आर्थिक स्थिति खराब होने की वजह से उन्होंने क्षेत्र की पारम्परिक कला सोहराय और कोहबर की पेंटिंग बनानी शुरु की। हालांकि, उन्होंने मायके में इस कला को कभी नहीं सीखा था, बस अपने माता-पिता को बनाते देखा था। रुदल के अनुसार, एक समय ऐसा भी था जब उनके घर का खर्च चलना भी मुश्किल था। उस समय उनकी उम्र महज 12-13 वर्ष थी। उसके बाद उन्होंने सोहराय पेंटिंग बनानी शुरु किया।
दिवाली के अवसर पर दिवारों पर इस कला को उकेरती है महिलाएं
रुदल इस कला के बारें में बताते हुए कहती हैं कि, यह उनके इलाके की पारम्परिक कला है। इसे किसी पर्व या उत्सव (दिवाली और शादी) के अवसर पर जब घरों की लिपाई-पुताई की जाती है, उस दौरान महिलाएं दिवारों पर इस कला को बनाती हैं। इसे बनाने के लिए कंघी, सफेद मिट्टी, काली मिट्टी और रंग की आवश्यकता पड़ती है।
अन्य राज्यों में भी बढ़ रही इस कला की लोकप्रियता
बता दें कि, इसे सिर्फ घरों की दिवारों पर नहीं बल्कि वस्तुओं, सामानों, शादी-ब्याह, रेलवे स्टेशन और सरकारी इमारतों पर भी बनाया जाता है। इस कला में चित्रकारी की जाती है जिसके जरिए पेड़-पौधे, भगवान की तस्वीरों को दिवारों और वस्तुओं पर पेंटिंग के जरिए बनाया जाता है। हालांकि, सोहराय पेंटिंग अब सिर्फ झारखंड राज्य ही नहीं बल्कि अन्य दूसरों राज्यों में भी लोकप्रिय होता जा रहा है। वहीं इस कला को GI टैग भी दिया जा चुका है।
महिलाओं को भी इस कला का देती हैं प्रशिक्षण
चूंकि, जब रुदल ने इस कला को उकेरना शुरु किया तब गांव के अधिकांश लोगों को इसके बारें में जानकारी थी, जिससे गांव में इस कला के बारें में शोर हो गया। उनके आस-पास की महिलाएं भी इस आर्ट की सीखने में रुचि दिखाई और उनसे सीखने लगी। वर्तमान में 20 से ज्यादा महिलाएं इस पेंटिंग का प्रशिक्षण ले चुकी हैं।
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एक हाथ से करती हैं चित्रकारी
रुदल द्वारा बनाई गई पेंटिंग बेहद खुबसूरत होती है, जिसे देखकर यह समझना बहुत मुश्किल है कि वे इस पेंटिंग को एक हाथ से बनाती हैं। जी हां, रुदल का एक हाथ कटा हुआ है जिसके कारण वे एक ही हाथ से कठिन मेहनत करती हैं। इसके बारें में बेटे अमित कहते हैं कि, यह घटना उस समय घटी थी, जब उनकी उम्र काफी कम थी। एक दिन भोजन पकाने के दौरान उनकी मां की साड़ी में चूल्हें की आग की लपटे पकड़ ली। परिणामस्वरुप उनका एक हाथ (दाहिना हाथ) बुरी तरह से घायल हो गया।
काटना पड़ा दाहिना हाथ, बाएं हाथ से बनाती हैं खुबसूरत पेंटिंग्स
एक गरीब परिवार के लिए हॉस्पीटल के इलाज के लिए भारी-भड़कम खर्च उठाना बेहद कठिन काम है।समय पर सही इलाज नहीं होने की स्थिति में जब उन्हें जिला हॉस्पिटल में इलाज हेतु ले जाया गया तो डॉक्टर ने कहा कि उनके शरीर में इन्फेक्शन फैल रहा है, जिसके कारण उनके जख्मी हाथ को काटना पड़ेगा।
किसी भी इन्सान के लिए अपाहिज होकर जीवन गुजारना काफी चुनौतीपूर्ण काम होता है, लेकिन रुदल ने हार नहीं मानी और बाएं हाथ से ही पेंटिंग बनाने का अभ्यास करने लगी। उनकी मेहनत रंग लाई और वे बाएं हाथ से ही खुबसूरत पेंटिंग्स बनाने लगी।
कई राज्यों सरकारों द्वारा हो चुकी हैं सम्मानित
बता दें कि, बिहार और झारखंड सरकार समेत कई राज्य सरकारों द्वारा रुदल को पुरस्कृत किया जा चुका है। उन्होंने मुम्बई समेत अन्य महानगरों में भी अपनी कला का परचम लहरा चुकी हैं। वह बताती हैं कि आम लोगों के अलावा जिला प्रशासन भी नगरों को स्वच्छ और सुन्दर बनाने हेतु लोगों में जागरुकता फैलाने के लिए उनसे पेन्टिंग करवाती है। रुदल के एक दिन पेंटिंग बनाने की फीस 2 हजार रुपये है।
बहू अनिता भी करती हैं मदद
बता दें कि, रुदल की बहू अनिता भी इस काम में उनकी सहायता करती है। अनिता ने अनुसार, महज 10 वीं तक पढ़ाई करने के बाद ही उनकी शादी कर दी गई, जिससे आगे पढ़ाई की इच्छा होने के बावजूद भी नहीं पढ सकी। अब वह अपनी सास रुदल देवी के साथ मिलकर सोहराय पेंटिंग बनाती है। 70 वर्ष से अधिक उम्र में भी रुदल कैनवास, बेडशीट आदि पर कला उकेरती हैं साथ ही वे सोहराय कला पेंटिंग को मिट्टी के बर्तन आदि चीजों पर बनाकर बिक्री भी करती हैं।
अलग-अलग कार्यक्रमों में लगाती हैं स्टॉल
अनिता भी भिन्न-भिन्न चीजों पर इस कला को उकेरती हैं औए उसे अलग-अलग जगहों पर जहां कोई कार्यकर्म चलता है, स्टॉल लगाकर बेचती हैं। उनके अनुसार, विदेशी पर्यटक भी उन कार्यक्रमों का लुत्फ उठाने वहां आते हैं। ऐसे में सैलानियों को उनके द्वारा बनाई गई चित्रकारी बेहद पसंद आता है और वे उसे खरीदते हैं। रुदल कहती हैं कि जिस प्रकार मिथिला पेंटिंग की चर्चा होती है उसी प्रकार सोहराय और कोहबर भी एक कला है, लेकिन इसकी चर्चा देखने को नहीं मिलती है।
सालाना कमाती हैं 4 लाख रुपये
रुदल देवी आज इस कला के माध्यम से एक अलग पहचान बनाने में सफल होने के साथ-साथ सालाना 4 लाख रूपए की कमाई भी करती हैं। उनके द्वारा बनाई गई कलाकृतियां लोगों को काफी भा रहा है। आज वह अपनी मेहनत से जिस मुकाम पर पहुंची हैं वह प्रशंसनीय होने के साथ-साथ प्रेरणादायक भी है। एक हाथ कट जाने के बाद भी उन्होंने दूसरे हाथ से पेंटिंग बनानी शुरु की, इससे यह संदेश मिलता है कि एक दरवाजा बंद हो जाने से सभी दरवाजे बंद नहीं होते हैं। बस जरुरत होती उन्हें ढूंढ कर आगे बढ़ने की।