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कभी दो वक्त की रोटी के लिए मजबूर झारखंड की महिलाएं अब रेशम बना रही हैं, हर महीने 30-40 हज़ार का इनकम हो रहा है

कहते हैं कि अगर देश को तरक्की करना है तो उसे गांव में विकास करना होगा। गांव की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना होगा और कुछ इसी तरह का प्रयास झारखंड सरकार कर रही है। झारखंड सरकार ने आदिवासी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्हें रेशम और तसर की खेती में सशक्त बनाया हैं।
झारखंड के पश्चिमी सिंहभूमि जिले की आदिवासी महिलाएं आज रेशम की वैज्ञानिक ढंग से की गई खेती के जरिए अपना विकास कर रही है। आज वह महिलाएं आर्थिक रूप से सशक्त है । यह महिलाएं कुछ साल पहले तक मजदूरी कर अपना जीवनयापन करती थी। वह महिलाएं आज वैज्ञानिक तरीके से खेती कर हजारों रुपए कमा रही है।

महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना की शुरुआत

तसर की खेती को बढ़ावा देने के लिए और महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए सरकार द्वारा महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना (Mahila kisan sashaktikaran pariyozana) की शुरुआत की गई। इस परियोजना के तहत ग्रामीण महिलाओं को तसर की वैज्ञानिक ढंग से खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया गया और उन्हें तकनीकी बारीकियों की भी जानकारी दी गई। परियोजना रेशम (Pariyozana resham) के तहत उत्पादक समूह का गठन किया गया और इसकी सारी जिम्मेदारी समुदाय को सौंप दी गई । 2017 में परियोजना रेशम की शुरुआत हुई और समुदाय को मुनाफे में वृद्धि हो इसके लिए तकनीकी मदद, ज़रूरी कृषि यंत्र और उपकरण भी उत्पादक समूह को उपलब्ध कराए गए। इसका फायदा हुआ और समुदाय को मुनाफे में मदद मिली।

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150 महिलाओ को आजीविका रेशम मित्र बनाया गया

इस परियोजना के तहत गांव की 150 महिलाओं को आजीविका रेशम मित्र के रूप में मास्टर ट्रेनर बनाया गया। जिनका काम बाकी किसान महिलाओ को खेती में मदद करना हैं। संगठन आधारित समुदाय को कुकून बैंक और बाकी के कार्यों की जिम्मेदारी सौंपी गई। रेशम की खेती से जुड़ी महिलाएं बताती हैं कि ऐसा नहीं था कि पहले वह इसकी खेती नहीं करती थी पर पहले रेशम की खेती में घाटा होने का डर था और होता भी था। यह लोग पहले जंगल में जाकर रेशम के कीड़े बटोर कर लाते थे पर उनमें से कुछ कीड़े तो बीमारी की वजह से मर जाते और कुछ अन्य कारणों से खत्म हो जाते और जो कीड़े बचते थे उनके अंडे की गुणवत्ता सही नहीं होती थी। इस कारण धीरे-धीरे इसका असर तसर की खेती पर पड़ा। लोग तसर उत्पादन से दूर होते चले गए और आय के अन्य साधन से जुड़ गए । अब वैज्ञानिक तरीके से की गई इस खेती में मुनाफा हो रहा है जिससे लोग अब धीरे-धीरे इससे जुड़ रहे हैं और आर्थिक रूप से सशक्त बन रहे हैं।

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7500 परिवार रेशम और तसर उत्पादन से जुड़ा हैं

आज इन आदिवासी इलाकों की महिलाएं जंगल से अर्जुन और आसान पौधों से साल में दो बार वैज्ञानिक तरीके से कीट पालन और कुकून उत्पादन कर रही हैं। आज लगभग 7500 परिवार तसर और रेशम की वैज्ञानिक ढंग से खेती कर रहे है और इससे सिर्फ 2 महीने की मेहनत कर सालाना 35000 से 45000रुपये तक की कमाई कर रहे हैं। तसर उत्पादन से जुड़ी एक महिला किसान बताती हैं कि वह सिर्फ 1800 रुपये लगाकर सालाना 48000 रुपये का मुनाफा कमा रही हैं।

BSPU और CSPU से फायदा

उत्पादक समूह से जुड़ी महिला तसर किसानों की नेतृत्व में बेसिक सीड प्रोडक्शन यूनिट (BSPU)और कमर्शियल सीड प्रोडक्शन यूनिट(CSPU) का गठन किया। इसके तहत महिलाएं खुद ही अंडा और बीज का भंडारण करती हैं। माइक्रोस्कोप से टेस्टिंग कर रोग मुक्त कुकून का उत्पादन कर रही हैं। इसमें अंडे की हैचरिंग से लेकर कुकून टेस्टिंग और रोग मुक्त लेविन की टेस्टिंग जैसी सारी सुविधाएं प्रदान की गई हैं।

7.54 करोड़ रुपये तक कि कमाई कर चुके हैं

झारखंड के पश्चिमी सिंहभूमि जिले के आज लगभग 6500 किसान पिछले 3 साल में तीन करोड़ कुकून उत्पादन और बिक्री कर चुके हैं। इससे 7.54 करोड़ रुपए की कमाई कर चुके हैं।

आज यह महिलाएं अब जंगल में अर्जुन और आसन के पौधों से कीड़े ढूंढने के बजाय खुद अपने खेत के मेंढ़ पर अर्जुन और आसन के पौधे लगा रही हैं ताकि तसर उत्पादन को इससे बढ़ावा मिल सके ।

पलायन रुक हैं और महिलाये आत्मनिर्भर बनी हैं

रेशम की वैज्ञानिक ढंग से की गई खेती के कारण आज वहाँ पर पलायन रुका है। लोगों को रोजगार के अवसर मिल रहे हैं। कल तक जंगल से साल के पत्ते, लकड़ी, चिरौंजी चुनकर या मजदूरी कर के अपनी जीविकायापन करने वाली महिलाएं पिछले 2 साल से 2,000 रुपये लागत लगाकर 40000 रुपये की कमाई कर रही है। इससे आज यह महिलाएं आत्मनिर्भर हैं, सशक्त है और आर्थिक रूप से भी मजबूत है।

धागा उत्पादन से जुड़ने की योजना

आगे की योजना के बारे में यह महिलाएं कहती है कि उत्पादक कंपनी के जरिए वह धागा उत्पादन से भविष्य में जोड़ने की सोच रही हैं। ग्रामीण विकास विभाग का कहना है कि ग्रामीण महिलाएं और उनके संगठन के जरिए MKSP परियोजना के मॉडल को अन्य इलाकों में भी बढ़ाया जाएगा।

मृणालिनी बिहार के छपरा की रहने वाली हैं। अपने पढाई के साथ-साथ मृणालिनी समाजिक मुद्दों से सरोकार रखती हैं और उनके बारे में अनेकों माध्यम से अपने विचार रखने की कोशिश करती हैं। अपने लेखनी के माध्यम से यह युवा लेखिका, समाजिक परिवेश में सकारात्मक भाव लाने की कोशिश करती हैं।

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