‘पेंटिंग मुझे दूसरी दुनिया में ले जाती है, जहां मैं एक पक्षी की तरह स्वतंत्र विचरती हूं’ यह कहना है अस्सी वर्षीय विधवा जुधैया बाई का। सच.. रंगों की ये काल्पनिक दुनिया हमें वो स्वतंत्रता देती है जिसे हम वास्तविक जीवन के धरातल पर ढूंढ़ते रहते हैं। जुधैया बाई मध्य प्रदेश की रहने वाली हैं। आदिवासी समुदाय से संबंध रखती हैं। जिंदगी के चार-पांच दशक मजदूरी में बिता चुकीं हैं। अपनी ज़िंदगी में एक लंबे समय तक मजदूरी करने वाली जुधैया आज विश्व पटल पर अपनी पेंटिंग्स के जरिए धूम मचा रही हैं।
पिछले 40 वर्षों से पेंटिंग कर रही आदिवासी समुदाय की जुधैया को मिला अंतर्राष्ट्रीय मंच
मध्य प्रदेश में मुख्य रूप से तीन आदिवासी समुदाय है। उन्हीं में से एक है बैगा जनजाति। जुधैया बाई इसी समुदाय की है। उमरिया (म.प्र.) के लोरहा गांव की रहने वाली हैं। इस वनाच्छादित इलाके के किसी कोने में बैठ पिछले 40 वर्षों से पेंटिंग कर रही हैं। इनकी पेंटिंग्स भोपाल, खजुराहो, मंडावी (धार) और उज्जैन में भी प्रदर्शित हो चुकी हैं। राष्ट्रीय स्तर के बाद अब इनकी पेंटिंग्स अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपनी पहचान बना रही है। इटली के मिलान शहर और पेरिस (फ्रांस) की इंटरनेशनल प्रदर्शनियों में इनकी पेंटिंग्स प्रदर्शित हो चुकी हैं। इतना ही नहीं, इनकी एक पेंटिंग तो मिलान की प्रदर्शनी के लिए रचित आमंत्रण पत्र के कवर पेज पर भी प्रकाशित हुई है।
ज़िंदगी में चार-पांच दशक मजदूरी करने वाली जुधैया ने पति की मृत्यु के बाद रंगों से नाता जोड़ लिया
80 वर्षीय बुजुर्ग कलाकार जुधैया बाई अपनी ज़िंदगी में लगभग चार-पांच दशक मजदूरी की हैं। इन्हें अपने बच्चों को पालने के लिए लकड़ी की कटाई से लेकर देसी शराब बेचने तक के काम करने पड़े हैं। पति की मृत्यु हो चुकी थी। फिर जुधैया ने अपने दुख-दर्द को पीछे छोड़ते हुए रंगों से नाता जोड़ लिया। अपना ज्यादातर समय पेंटिंग में ही बिताने लगीं। अपनी अधिकतम पेंटिंग्स में जुधैया वन्यजीवों, वनस्पतियों, श्रमशील लोगों को चित्रित करती हैं।
जुधैया कहती हैं, “पेंटिंग मुझे दूसरी दुनिया में ले जाती है, जहां मैं एक पक्षी की तरह स्वतंत्र विचरती हूं।” आगे कहती हैं, अपने गांव को वैश्विक मानचित्र पर उभरते देख मुझे बेहद ख़ुशी होती है। यहां की परंपराओं को जीवित रखने और सबके सामने प्रस्तुत करने का मेरे पास यही एक तरीका है।”
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जुधैया बाई बैगा की उपलब्धि पूरे आदिवासी समुदाय के लिए गर्व का विषय
शांति निकेतन से स्नातक कला-शिक्षक आशीष स्वामी कहते हैं कि जुधैया बाई बैगा की यह उपलब्धि पूरे आदिवासी समुदाय के लिए गर्व का विषय है जो समुदाय के दूसरे लोगों को भी इस तरह की गतिविधियों में शामिल होने के लिए प्रेरित करती है। आशीष स्वामी से जुधैया की पहली मुलाक़ात 2008 में हुई थी। जब लोरहा गांव में स्वामी ने बैगाणी चित्रकला शैली की पेंटिंग प्रदर्शिनी लगाई थी।
विश्व के जाने-माने कलाधर्मियों ने जुधैया के पेंटिंग्स को सराहा
इटली और फ्रांस में हुए इंटरनेशनल प्रदर्शनी में जुधैया के पेंटिंग्स की बहुत तारीफ़ हुई। बेहतर सृजन, रंगों का संतुलित इस्तेमाल, अद्भुत रेखांकन, व्यवस्थित परिदृश्य देख विश्व के जाने-माने कलाधर्मियों ने जुधैया के पेंटिंग्स की खूब सराहना की। जुधैया को भी ख़ुशी है कि उनके काम को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सराहा जा रहा है।
मध्य प्रदेश के एक छोटे से आदिवासी समुदाय से निकलकर इटली और फ्रांस तक पहुंचने वाली जुधैया बाई के जज्बे को The Logically सलाम करता है। इनके ज़िंदगी की कहानी हमें संदेश देती है कि हुनर और काबिलियत के दम पर हम सब कुछ हासिल कर सकते हैं।