हमें हमारे जलाशयों की देखभाल करना बहुत जरूरी है। वजह आपको पता ही है, आबादी बढ़ रही है लोगों को पेयजल की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। आज हम आपको 65 वर्षीय व्यक्ति के बारे में बताएंगे इन्होंने अधिक मात्रा में जलाशयों का निर्माण कर देखभाल किया है।
उत्तरी केरल (Kerala) और कर्नाटक (Karnataka) के क्षेत्रों में पाए जाने वाले सबसे पुराने जल संचयन प्रणालियों में से एक ‘सुरंगा’ गुफा है। कुओं के माध्यम से खुदाई करके यहां के 67 वर्षीय कुंजंबु (Kunjambu) ने यह कार्य किया है। इन्होंने मात्र 14 साल की उम्र में खुदाई शुरू की और उनका दावा है कि इन्होंने अब तक 1000 गुफाओं जैसे कुओं को खोदा है।
सुरंग क्या हैं?
कन्नड़ में ‘सुरंगा’ या मलयालम में ‘थुरंगम’ पहाड़ियों के पार्श्व पक्षों में खोदी गई एक संकीर्ण गुफा जैसी संरचना है। यह लगभग 2.5 फीट चौड़ी है और ये अनोखी गुफा कुएं 300 मीटर तक खोदे जा सकते हैं। जहां पानी का झरना नहीं मिलता है और इन क्षेत्रों में सबसे स्थायी जल संचयन प्रणाली में से यह सुरंगा एक माना जाता है। सुरंग से बहने वाले पानी को सुरंग के पास बनाए गए जलाशय में डाल दिया जाता है। एक बार झरनों से पानी स्वतंत्र रूप से बहना शुरू हो जाता है तो मोटर या पंप के उपयोग के बिना भी ताजे पानी की लगातार आपूर्ति होती है।
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कुंजंबु की यात्रा
इन्होंने यह बताया कि इस कार्य के लिए बहुत ताकत और दृढ़ संकल्प की आवश्यकता होती है। यह हमेशा एक पिकैक्स और एक मोमबत्ती के साथ इन गुफाओं को खोदने की उम्मीद के साथ निकल रहे थे। यह बताते हैं कि जब आप एक गुफा खोद रहे हैं जो लगभग 300 मीटर गहरी है, गहराई में ऑक्सीजन का स्तर गिरता है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि यह इन गुफाओं में अपने साथ एक माचिस और एक मोमबत्ती ले जातें। खुदाई शुरू करने के लिए सही जगह खोजने से लेकर यह सुनिश्चित करने के लिए कि गुफाएं गिर तो नहीं रही। साथ ही सभी चरणों के लिए खुदाई करने वाले को प्रकृति के साथ गठबंधन करने की आवश्यकता होती है।
उदाहरण के लिए यह बताते है कि अगर मैं खुदाई शुरू करने के लिए सही जगह देखूं तो मैं आस-पास के पौधों को देखता। यदि ये पौधे फल-फूल रहे हैं और मिट्टी में एक निश्चित मात्रा में गीलापन है तो इसका मतलब है कि हमें यह स्थान मिल गया है जहां खुदाई हो सकती है। यह ज्ञान केवल वर्षों के अनुभव के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है और इसके साथ ही आपको प्रकृति में एक निश्चित मात्रा में विश्वास भी होनी चाहिए।
बोरवेल्स का उदय
इन्होंने यह जानकारी दिया कि जब मैंने यह कार्य शुरू किया था तो सुरंगा हमारी संस्कृति का एक अनिवार्य हिस्सा था। खासकर कृषि उद्देश्यों के लिए पानी की आवश्यकता थी। लेकिन जल्द ही बोरवेल पॉप अप करने लगे और विकल्प बन गए। धीरे-धीरे हमने अपने इस कार्य को खोना शुरू कर दिया। चूंकि बोरवेल की खुदाई की तुलना में सुरंगों को मैनुअल श्रम की आवश्यकता होती है।
बोरवेल संस्कृति सुरंगों के विपरीत हमारी प्रकृति के लिए बहुत हानिकारक है। जब बोरवेल के लिए खुदाई करते हैं तो आप पृथ्वी के दिल पर प्रहार करते हैं, जिससे भूजल बाहर निकल जाता है। यह आसपास के क्षेत्रों को भी भूकंप का खतरा बना सकता है क्योंकि यह चीजों को प्राकृतिक तरीके को बाधित करता है।
सुरंगों के लाभ
श्री पडरे कासरगोड के एक प्रसिद्ध लेखक बताते हैं कि सुरंगा लंबे समय से किसानों के लिए एक आदर्श संसाधन रहा है। वे पानी के बारहमासी स्रोत हैं और बोरवेल कभी भी इस प्रणाली के लिए एक प्रतिस्थापन नहीं बन सकते हैं। विशेष रूप से कासरगोड जैसे क्षेत्रों में जहां पतन की प्रवृत्ति बहुत अधिक है। आज कासरगोड जिले में 5,000 से अधिक सुरंग हैं, लेकिन इसकी लोकप्रियता में कमी के कारण अधिकांश रूप से यह अप्रभावी हो रहें हैं। हालांकि कुंजंबु जैसे लोग अभी तक हार मानने को तैयार नहीं हैं और अपने कार्य मे लगें हैं।