बात आज़ादी से पहले की है। हर कोई अपने-अपने तरीके से स्वाधीनता की लड़ाई लड़ रहा था। भारतीय उद्यमी और कलकत्ता केमिकल कंपनी के मालिक खगेंद्र चंद्र दास (Khagendra chandra Das) ने अंग्रेजों के विरुद्ध स्वदेशी चीज़ों को अपना हथियार बनाया और आज इन्ही के बदौलत मार्गो जैसी स्वदेसी (Margo) कम्पनी भारत मे अपनी पैठ बना चुकी है।
खगेंद्र चंद्र दास ने 1916 में अपने दो मित्रों आर.एन. सेन और बी.एन. मैत्रा के साथ मिलकर ‘कलकत्ता केमिकल कंपनी’ (Kolkata Chemical company) की शुरुआत की। यह कंपनी स्वदेशी आंदोलन का परिणाम थी और स्वदेशी अपनाओ पर जोर देती थी। दास के नेतृत्व में कंपनी स्वदेशी प्रोडक्ट्स के सबसे प्रसिद्ध व्यवसायों में से एक बन गई।
पिता ब्रिटिश सरकार में कार्यरत तो मां गांधीवादी विचारधारा की पक्षधार
खगेंद्र चंद्र दास (Khagendra Chandra Das) का जन्म बंगाल के एक संपन्न बैद्य परिवार में हुआ था। उनके पिता बहादुर तारक चंद्र दास, पेशे से एक न्यायाधीश थे और माता मोहिनी देवी महिला आत्मरक्षा समिति की पूर्व अध्यक्ष थी जो महिलाओं की आत्मरक्षा के लिए प्रतिबद्ध संगठन है। वह गांधीवादी विचारधारा की प्रवर्तक भी थी। हालांकि दास के पिता ब्रिटिश भारत सरकार के अंतर्गत कार्य करते थे, लेकिन उन पर अपनी देशभक्त मां का असर था।
दास प्रतिष्ठित स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन करने वाले पहले भारतीय
दास की प्रारंभिक शिक्षा कलकत्ता से हुई और उच्च शिक्षा के लिए वह अमेरिका चले गए। हालांकि दास के पिता चाहते थे कि वह ब्रिटेन जाएं पर उन्हें अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार नहीं थी। 1910 में केमिकल साइंस में डिग्री के साथ दास ने स्नातक की उपाधि प्राप्त की। दास प्रतिष्ठित स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय (Stanford University) से ग्रेजुएशन करने वाले पहले भारतीय बने।
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चार साल में ही कंपनी का किया विस्तार (Expansion of Kolkata chemical company, Margo soap)
विदेशी सामानों का बहिष्कार और स्वदेशी चीजों को मार्केट में लाने के उद्देश्य से 1916 में दास ने आर.एन. सेन और बी.एन. मैत्रा के साथ मिलकर ‘कलकत्ता केमिकल कंपनी’ शुरू की और कई प्रसिद्ध स्वदेशी प्रोडक्ट्स बनाएं। 1920 के लगभग में दास ने अपनी कंपनी का विस्तार किया और टॉयलेट में इस्तेमाल होने वाली सामग्री बनाना शुरू कर दिया। इससे कंपनी को बहुत फ़ायदा हुआ। स्वदेशी सामग्री को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने नीम के पत्तों के रस से भारतीय उत्पाद बनाने शुरू किए।
मार्गो साबुन और नीम टूथपेस्ट ( Margo soap and Neem toothpaste)
दास के प्रयासों का नतीज़ा था कि उस वक्त भारत के दो स्वदेशी ब्रांड, मार्गो साबुन और नीम टूथपेस्ट की शुरुआत हुई। एक समय था जब मार्गो भारत का सबसे तेजी से बिकने वाला प्रोडक्ट बन गया था। इस साबुन की विशेषता थी कि यह शुष्क त्वचा को मॉइस्चराइज़ करने, त्वचा में खुजली को दूर करने और त्वचा संबंधी अन्य समस्याओं को ठीक करने में मदद करता था। इसी तरह नीम युक्त टूथपेस्ट दांतों की सड़न और मसूड़ों की बीमारी ठीक करने में लाभदायक था। दास ने अपने इन उत्पादों की कीमत भी काफी कम रखी ताकि इसे देश के हर वर्ग तक आसानी से पहुंचाया जा सके।
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इंटरनेशनल मार्केट में बढ़ी मार्गो की डिमांड (Raised demand of Margo soap and Neem toothpaste)
जब मार्गो साबुन और नीम टूथपेस्ट की मांग कलकत्ता से बाहर अन्य शहरों में भी होने लगी तब दूसरे शहरों में भी कंपनी की ब्रांच खोली गई। कंपनी ने अपने प्रोडक्ट्स की गुणवत्ता से इतना विस्तार कर लिया कि दक्षिण-पूर्व एशिया के कई देशों से भी ऑर्डर आने लगे। इंटरनेशनल मार्केट में मार्गो के प्रोडक्ट्स की इतनी डिमांड बढ़ गई कि कंपनी ने सिंगापुर में भी एक प्लांट स्थापित किया।
दास ने साबुन और टूथपेस्ट के अलावा लैवेंडर ड्यू पाउडर व अन्य कई उत्पादों का निर्माण किया और मार्केट में अच्छी पहचान दिलाई। 1960 के दशक में दास की मृत्यु के समय कंपनी दक्षिण एशियाई क्षेत्र में भी अपनी जड़े जमा ली थी और प्रसिद्ध कंपनियों में से एक बन गई थी। दास की मृत्यु के बाद, उनके बेटे, समरेंद्र चंद्र दासगुप्ता ने ‘कलकत्ता केमिकल कंपनी’ के अध्यक्ष के रूप में कमान संभाली।
स्वदेशी प्रोडक्ट्स बनाकर खगेंद्र चंद्र दास (Khagendra Chandra Das) ने अंग्रेजों के ख़िलाफ़ स्वाधीनता की जो लड़ाई लड़ी, वह सफ़ल हुई। The Logically इस महान व्यापारी को शत् शत् नमन करता है।
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