जिन लोगों को लगता है कि महिलाएं कमजोर होती है। उन्हें एक बार भारत का इतिहास जरूर पलट कर देखना चाहिए। आज से नहीं बल्कि सदियों से महिलाओं ने हर क्षेत्र में अपनी शक्ति का परिचय दिया है। अपने हक के लिए पुरजोर आवाज उठाकर उन्होंने इतिहास लिख दिया। ऐसे ही कुछ लोगों में से एक हैं किंकरी देवी (Kinkari Dev), जो अपने हक के लिए लड़ना और आवाज उठाना दोनों जानती थी। जब बात प्रकृति की हरियाली छीनकर कॉनक्रीट के जंगल खड़ी करने की हुईं तो हर कोई मौन हो गया और इसे ही विकास का मार्ग मान लिया गया, लेकिन किंकरी देवी नहीं मानी और अकेले ही इसका विरोध करने लगी। – Kinkari Devi from Himachal’s in Ghanto village, she raised her voice alone for her rights, after being successful, she built a college in her village.
अनपढ़ होते हुए भी उठाई आवाज
हिमाचल की घान्टो गांव की रहने वाली किंकरी देवी अपने जमीन और जंगल के लिए अकेले ही आवाज उठाई। ऐसा माना जाता है कि पढ़े-लिखे लोगों को अधिक जानकारी होती है या फिर वह अपने हक के लिए लड़ पाते हैं, लेकिन किंकरी देवी एक ऐसी महिला थी जो कि अनपढ़ होते हुए भी अपने हक के लिए आवाज उठाई। दरअसल किंकरी देवी का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ, जिससे उन्हें बेहद कम उम्र में घर की जिम्मेदारी उठानी पड़ी। अभी बचपन भी नहीं बीता था कि 14 साल की उम्र में उनकी शादी श्यामू राम नामक लड़के से कर दी गई।
22 साल की उम्र में पति की मौत
जिस लड़के से किंकरी देवी की शादी की गई थी वह एक बंधुआ मजदूर था। 22 साल की उम्र में किंकरी देवी के पति की मौत हो गई और वह अकेले हो गई। कुछ ही समय में ऐसे हालात पैदा हो गए कि उन्हें स्वीपर का काम करना पड़ा। रिर्पोट के अनुसार साल 1985 में दून की खदानों के बंद हो जाने के बाद ज़िला सिरमौर में चूना पत्थर के व्यापार का तेजी से विस्तार होने लगा, जिससे नदियां मैली और उनका पानी जहरीला होना शुरु हो गया। दिन पर दिन यह समस्या बढ़ती गई और यह खेत को भी नुकसान पहुंचने लगा। यह परेशानी समझ तो हर किसी को आ रही थी, परंतु कोई भी इसके खिलाफ आवाज उठाने को तैयार नहीं था। ऐसे में किंकरी देवी एक महिला होते हुए भी अकेले ही इसके खिलाफ आवाज उठाई।
इंसाफ पाने के लिए 19 दिन का भूख हड़ताल
पढ़ी-लिखी न होने के बावजूद भी किंकरी देवी को अवैध खनन और पर्यावरण को हो रहे नुकसान का एहसास था। इसके लिए उन्होंने सबसे पहले आस-पास के लोगों में जागरूकता लाने का प्रयास की, लेकिन इसमें वह सफल नहीं हो पाई। असफल होने के बावजूद भी वह हार नहीं मानी और साल 1987 में उसने People’s Action for People in Need की सहायता से शिमला हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर दी। इसके अलावा किंकरी देवी ने 48 खदान मालिकों के ख़िलाफ़ PIL की थी और इंसाफ पाने के लिए उन्होंने शिमला कोर्ट के सामने 19 दिन का भूख हड़ताल भी किया। – Kinkari Devi from Himachal’s in Ghanto village, she raised her voice alone for her rights, after being successful, she built a college in her village.
International Women Conference से आया बुलाया
काफी मुश्किलों के बाद ही सही लेकिन आखिर में किंकरी देवी को जीत मिली और कोर्ट ने पहाड़ तोड़ने पर पाबंदी लगाई और खनन पर भी रोक लगाई। साल 1995 में किंकरी देवी का केस सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा और वहां भी उन्हें जीत ही मिली। उसके बाद किंकरी देवी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हो गई। साल 1995 में बीजिंग में हुए International Women Conference में किंकरी को खास निमंत्रण पर बुलाया गया और साथ ही हिलेरी क्लिंटन ने उन्हें सम्मान देते हुए उनसे कॉन्फ्रेंस में दीप प्रज्वलन करवाया।
अपने गांव में खोली डिग्री कॉलेज
साल 1999 में भारत में किंकरी देवी की साहस को देखते हुए उन्हें झांसी की रानी लक्ष्मीबाई स्त्री शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनका संघर्ष यहीं नहीं रुका इसमें सफलता प्राप्त करने के बाद वह अपने गांव में डिग्री कॉलेज खोलने के लिए प्रयास की और उसमें भी सफल रही। साल 2006 में किंकरी देवी ने अपने गांव में कॉलेज खोला। हालांकि इसके 1 साल बाद साल 2007 में किंकरी देवी दुनिया छोड़ चल बसी। महिलाओं को कमजोर समझने वाले हर व्यक्ति के लिए किंकरी देवी एक करारा जवाब है। – Kinkari Devi from Himachal’s in Ghanto village, she raised her voice alone for her rights, after being successful, she built a college in her village.