Wednesday, December 13, 2023

गर्मी के मौसम में तरबूज की खेती से हो सकती है लाखों की कमाई, इन उन्नत किस्मों के बीज़ का इस्तेमाल कर सकते हैं

तरबूज गर्मियों का एक ऐसा फल है जिसमें बहुत सारे गुण होते हैं और जिसकी खेती करना भी आसान है. बाहर से हरे रंग और भीतर से लाल रंग का होने वाला यह एक ऐसा फल है जिसमें पानी भरपूर मात्रा में उपस्थित होती है. यह फसल आमतौर पर गर्मी आने पर तैयार हो जाती है.

स्वास्थ्यकारी और बाजार मांग के अनुकूल

स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यंत गुणकारी तरबूज विटामिन ए का अच्छा स्रोत माना जाता है.  यह गर्मी के मौसम में रक्तचाप (Blood Pressure) को संतुलित करने में सहायता करती है. इसके अलावा भी यह कई अन्य प्रकार की बीमारियों के लिए भी कारगर माना जाता है जैसे- शरीर में खून की कमी को दूर करना इत्यादि. गर्मियों में बाजार में इसकी मांग बढ़ जाती है.

तरबूज की खेती का बढ़ता चलन

भारत में पिछले कुछ समय में किसान भाई काफी हद तक जागरूक हुए हैं. वे अब धान और गेहूं के अलावा अन्य फसलों की खेती पर भी ध्यान केंद्रित करने लगे हैं. देखा गया है कि पिछले कुछ सालों में किसानों के बीच तरबूज की खेती का भी चलन बढ़ रहा है.

तरबूज की खेती करना है सरल

इसकी खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्यों में की जाती है.तरबूज की खेती की खास बात ये है कि इसमें अन्य फलों के फसलों के मुकाबले कम समय, कम खाद और कम पानी की आवश्यकता पड़ती है. विशेषज्ञों का कहना है कि अगर तरबूज की खेती उन्नत किस्मों और तकनीक से की जाए, तो उसकी फसल से लाखों का मुनाफा कमाया जा सकता है. गर्मियों में बाजार तरबूज से भरा रहता है. ऐसे में उस दौरान किसान तरबूज की फसल पर बढ़िया मुनाफा कमा लेते हैं.

तरबूज की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी

इसकी खेती के लिए गर्म और औसत आर्द्रता वाले क्षेत्र सबसे उपयुक्त होते है. लगभग 25 से 32 डिग्री सेल्सियस तापमान में इसका विकास अच्छे से होता है. वहीं, रेतीली और रेतीली दोमट भूमि इसकी खेती के लिए सबसे बेहतर मानी जाती है. विशेषज्ञों के अनुसार खेती गंगा, यमुना और नदियों के खाली स्थानों में क्यारियां बनाकर करना सबसे फायदेमंद है.

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खेत की तैयारी

खेती की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए. ध्यान देने की बात है कि खेतों में पानी की मात्रा कम या ज्यादा नहीं होनी चाहिए. इसके बाद नदियों के खाली स्थानों में क्यारियां बना लें. अब मिट्टी में गोबर की खाद को अच्छी तरह मिला दें. अगर रेत की मात्रा अधिक है, तो ऊपरी सतह को हटाकर नीचे की मिट्‌टी में खाद मिलाना चाहिए.

बुवाई का समय

उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में तरबूज की बुवाई फरवरी में की जाती है. इसके अलावा नदियों के किनारों पर बुवाई नवम्बर से मार्च तक करनी चाहिए. वहीं पहाड़ी क्षेत्रों में मार्च से अप्रैल तक बुवाई करने की सलाह दी जाती है.

बुवाई की विधि

●      इसकी बुवाई के लिए किस्म और भूमि उर्वरा शक्ति कितनी है इस बात का अत्यंत महत्व है.

●      तरबूज की बुवाई मेड़ों पर की जाती है

●      मेड़ों पर लगभग 2.5 से 3.0 मीटर की दूरी पर 40 से 50 सेंटीमीटर चौड़ी नाली बनाकर इसकी बुआई की जाती है.

●      इसके बाद नालियों के दोनों किनारों पर लगभग 60 सेंटीमीटर की दूरी पर 2 से 3 बीज बोये जाते हैं.

●      नालियों के किनारे गड्ढों का निर्माण किया जाता है.

●      गड्ढा निर्माण के पश्चात उसमें मिट्टी, गोबर की खाद और बालू का मिश्रण को भरा जाता है.

●      ध्यान दें कि अंकुरण के लगभग 10-15 दिन बाद एक जगह पर 1 से 2 स्वस्थ पौधों को छोड़ दें और बाकि को निकाल दें.

तरबूज की उन्नत किस्में की सूची (Improved varieties of watermelon)

तरबूज की खेती से अच्छी उपज लेने के लिए किसानों को तरबूज की स्थानीय किस्मों का चयन करना लाभदायक साबित होता है अतः किसानों को इन्ही का चयन करना चाहिए. कुछ उन्नत किस्मों के नाम निम्नलिखित हैं –

सुगर बेबी

दुर्गापुर केसर

अर्को मानिक

दुर्गापुर मीठा

काशी पीताम्बर

पूसा वेदना

न्यू हेम्पशायर मिडगट

Disclaimer- ऊपर दिए गए उन्नत नस्लों के बारे में आप अपनी तरफ से भी बेहतर तरीके से रिसर्च कर लें उसके पश्चात ही उन्हें खरीदें। इन सभी बीजों के बारे में पूर्ण रूप से जानकारी इंटरनेट पर उपलब्ध है।

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