Wednesday, December 13, 2023

कैसे करें अमरूद की खेती, किन बातों का रखना पड़ता है ख्याल, जानिए अमरूद की खेती से जुड़ी खास बातें

अमरूद स्वास्थ्य के लिए एक बेहद हीं लाभकारी फल होता है। यूं तो हर जगह अमरूद के पौधे देखने को मिल ही जाते हैं। अमरूद की खेती से आज कई किसान लाखों रूपये प्रति महीने कमा रहे हैं। ऐसे में एक बात जेहन में आना स्वाभाविक है कि आखिर अमरूद की खेती किस तरह की जाए जिससे बेहतर उत्पादन हो। आईए आज हम आपको बताते हैं कि अमरूद की खेती किस तरह से की जाती है।

विश्व में अमेरिका और वेस्टइंडीज के उष्ण कटिबंधीय भाग अमरुद की उत्पत्ति के लिए जाने जाते है। इस समय भारत की जलवायु में भी अमरुद की खेती आसानी से की जा सकती है। भारत में अमरुद की खेती की शुरुआत 17वीं शताब्दी से होते हुए आ रहा है। लेकिन आज के समय में अमरुद की फसल आम, केला और निम्बू के बाद चौथे स्थान पर सबसे ज्यादा उगाई जा रही है। इसके साथ ही भारत की जलवायु में उगाये गए अमरूदों की मांग विदेशो में बढ़ती जा रही है। जिस वजह से इसकी खेती व्यापारिक रूप से भी की जा रही है।

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अमरूद का स्वाद खाने में अधिक स्वादिष्ट और मीठा होता है, जिस वजह से इसे खाने के लिए सबसे ज्यादा उपयोग में लाया जाता है। अमरूद में कई औषधीय गुण भी होते है। इसका मुख्य इस्तेमाल दांतो से सम्बंधित रोगो को दूर करने में किया जाता है, तथा इसकी पत्तियों को चबाने से दांत में कीड़ा लगने खतरा कम हो जाता है। अमरूद की खेती किसी भी उपजाऊ मिट्टी में की जा सकती है। इसकी खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी को सबसे उपयुक्त माना जाता है। क्षारीय मिट्टी में इसके पौधों पर उकठा रोग लगने का खतरा होता है। इसलिए इसकी खेती में भूमि का P.H. मान 6 से 6.5 के बीच होना चाहिए।

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अमरूद का पौधा उष्ण कटिबंधीय जलवायु वाला होता है। इसलिए इसकी खेती सबसे अधिक शुष्क और अर्ध शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में की जाती है। अमरुद के पौधे सर्द और गर्म दोनों ही जलवायु को आसानी से सहन कर लेते है। लेकिन अधिक वर्षा इस पौधों के लिए उपयुक्त नहीं होती है। सर्दियों के मौसम में गिरने वाला पाला इसके छोटे पौधों को हानि पहुँचाता है। इसके पौधे अधिकतम 30 डिग्री तथा न्यूनतम 15 डिग्री तापमान को ही सहन कर सकते है, एवं पूर्ण विकसित पौधा 44 डिग्री तक के तापमान को भी सहन कर सकता है।

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अमरूद के पौधे एक बार पूर्ण विकसित हो जाने पर कई वर्षो तक पैदावार देते है। इसलिए पौध रोपाई के पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लेना चाहिए। इसके लिए खेत की सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हलों से गहरी जुताई कर दी जाती है। जुताई के पश्चात खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दिया जाता है। इसके बाद खेत में प्राकृतिक खाद के रूप में 10 से 15 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद प्रति एकड़ के हिसाब से डाल दी जाती है। खाद डालने के बाद रोटावेटर लगाकर दो से तीन तिरछी जुताई कर दी जाती है। इसके बाद खेत में पानी लगा दें। पानी लगाने के बाद खेत की मिट्टी के सूखा हो जाने पर जुताई कर दी जाती है। इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाती है। मिट्टी के भुरभुरा हो जाने के बाद पाटा लगाकर खेत को समतल कर दिया जाता है।

इसके बाद खेत में पौध रोपाई के लिए 5 से 6 मीटर की दूरी रखते हुए गड्डो को तैयार कर लिया जाता है। पौध रोपाई से पहले गड्ढों में 200 GM सड़ी गोबर डाल दी जाती है। इसके अलावा पौधों की गुड़ाई करते समय गोबर की खाद के साथ नीम की खली भी दे सकते हैं, इससे पौधा अच्छे से विकास करता है। यदि आप चाहें तो प्राकृतिक खाद के स्थान पर रासायनिक खाद का भी इस्तेमाल कर सकते है। इसके लिए आपको यूरिया और पोटाश की मात्रा पौधों को देनी होती है। पौधों के विकसित होने के साथ-साथ खाद की मात्रा बढ़ा दी जाती है।

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अमरूद के पौधों की रोपाई बीज और पौध दोनों ही तरीकों से की जाती है। खेत में बीजों की रोपाई के अपेक्षा पौध रोपाई से जल्द पैदावार प्राप्त की जा सकती है। इसके लिए भेटकलम विधि द्वारा पौधों को तैयार कर लिया जाता है। अमरूद के पौधों की रोपाई के लिए मार्च और जुलाई का महीना सबसे अच्छा माना जाता है। सिंचित क्षेत्रों में इसके पौधों की रोपाई मार्च के महीने में की जाती है, तथा असिंचित क्षेत्रों में पौधों की रोपाई के लिए जुलाई और अगस्त का महीना उचित होता है। क्योंकि इस दौरान बारिश का मौसम होता है, जिस वजह से पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। अमरूद के खेत में पौध को लगाते समय 15 से 20 फ़ीट की दूरी रखी जाती है। इससे पौधों और उसकी शाखाओ को फैलने के लिए अच्छी जगह मिल जाती है।

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अमरूद का पौधा शुष्क जलवायु वाला होता है, इसलिए इसकी फसल को कम सिंचाई की आवश्यकता होती है। यदि आप सर्दियों के मौसम में फसल प्राप्त करना चाहते है, तो उसके लिए आपको गर्मियों के मौसम में इसके पौधों को 3 से 4 बार पानी देना होता है। सर्दियो के मौसम में इसके पौधों को 2 सिंचाई की ही आवश्यकता होती है, तथा बारिश के मौसम में इसके पौधों को 2 से 3 बार ही पानी देना होता है।

अमरूद के पेड़ पौध रोपाई के दो से तीन वर्ष बाद फलों की तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते है। इसका पूर्ण विकसित पौधा वर्ष में दो से तीन बार फल दे देता है। जब इसके पौधों पर लगे फलो का रंग हल्का पीला दिखाई देने लगे उस दौरान उनकी तुड़ाई कर लेनी चाहिए। इसके एक पौधे से 110 से 150 KG की पैदावार प्राप्त की जा सकती है। एक एकड़ के खेत में तकरीबन 500 पेड़ो को लगाया जा सकता है। अमरूद का बाजारी भाव 20 से 30 रूपए प्रति किलो से भी ज्यादा होता है। जिससे आप एक एकड़ के खेत में अमरुद के पेड़ो से एक वर्ष में 10 से 12 लाख तक की कमाई आसानी से कर सकते है।

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