हम सभी जानते हैं ” गाजर” हमारे सेहत के लिए बहुत ही लाभदायक होता है। इसमें विटामिन ‘के’ और विटामिन ‘बी6’ पाया जाता है। अगर आप नियमित रूप से गाजर खाते हैं तो जठर में होने वाला अल्सर और पाचन संबंधी विकार दूर हो जाते हैं। इसका सेवन पीलिया की समस्या को दूर करके इम्यूनिटी सिस्टम को मजबूत करने के साथ-साथ आंखों की रोशनी भी बढ़ाता है।
परंपरागत खेती के अनुसार अमूमन साल में दो ही फसल ले पाते हैं, जिसमें किसानों की आमदनी सीमित होती है। जबकि गाजर की फसल तीन से चार महीने की है और इसमें बचत भी काफी अच्छी होती है। तो आज जानते हैं कि हमारे किसान भाई नवंबर के माह में गाजर की कौन-कौन सी किस्मों का चयन करें ताकि उन्हें भरपूर मुनाफा मिल सके।
हमारे देश में एशियाई और यूरोपीय दोनों तरह की गाजर की फसल होती है। किसान चैंटनी, नैनटिस, पूसा रुधिर, पूसा नयन ज्योति, पूसा जमदग्रि, पूसा मेघाली आदि प्रजातियों की खेती करते हैं। जैसे चैंटनी किस्म बोने के 75 से 90 दिनों बाद फसल तैयार हो जाती है। इसमें प्रति हेक्टेयर (करीब साढ़े सात बीघा) में 150 क्विंटल तक पैदावार होती है। वहीं इतनी ही जमीन में नैनटिस किस्म की 200 क्विंटल गाजर पैदा हो जाती है। इसके अलावा पूसा रुधिर, पूसा नयन ज्योति, पूसा मेघाली की भी 250 से 350 क्विंटल की फसल तैयार हो जाती है। अगर बाजार में एक किलो गाजर का औसत मूल्य 40 रुपए मान लिया जाए तो एक हेक्टेयर खेत में 6-14 लाख रुपए की फसल तैयार हो जाती है।
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एशियाई किस्म की गाजर अगस्त से सितंबर तक और यूरोपियन किस्मों की बुआई अक्टूबर से नवंबर तक कर लेनी चाहिए। गाजर की खेती के लिए 12-21 डिग्री का तापमान अच्छा रहता है। गाजर की बुआई लिए प्रति हेक्टेयर 10-12 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। गाजर की बुआई के लिए अच्छे जल निकास वाली दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है।
बुआई से पहले खेत को भलि-भांति समतल कर लेना चाहिए। इसके लिए खेत की 2-3 गहरी जुताई करनी चाहिए। प्रत्येक जुताई के बाद पाटा लगाएं ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए। इसके बाद खेत में गोबर की खाद को अच्छी तरह मिला दें। उसके बाद बुआई की प्रक्रिया को शुरू करें।
दरअसल, अच्छी पैदावार व जड़ों की गुणवत्ता के लिए बिजाई हल्की डोलियों पर करनी चाहिए। डोलियों के बीच 30-45 सेंटीमीटर की दूरी तथा पौधे से पौधे की दूरी 6-8 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। डोलियों की चोटी पर 2-3 सेंटीमीटर गहरी नाली बनाकर बीज बोना चाहिए।
खेत की तैयारी के समय 20-25 टन गोबर की सड़ी खाद प्रति हैक्टेयर जुताई करते समय डालनी चाहिए। इसके अलावा 20 किलोग्राम शुद्ध नाइट्रोजन, 20 किलोग्राम फास्फोरस व 20 किलोग्राम पोटाश की मात्रा बिजाई के समय प्रति हेक्टेयर खेत में डालनी चाहिए। 20 किलोग्राम नाइट्रोजन लगभग 3-4 सप्ताह बाद खड़ी फसल में लगाकर मिट्टी चढ़ाते समय देनी चाहिए।
गाजर की फसल को 5-6 बार सिंचाई करने की आवश्यकता होती है। अगर खेत में बिजाई करते समय नमी कम हो तो पहली सिंचाई बिजाई के तुरंत बाद करनी चाहिए। ध्यान रहे पानी की डोलियों से ऊपर न जाए बल्कि 3/4 भाग तक ही रहें, बाद की आवश्यकतानुसार हर 15 से 20 दिन के अंदर सिंचाई करनी चाहिए।
इस बात का जरूर ध्यान रखें कि गाजर को देर से खुदाई करने से इसकी पौष्टिक गुणवत्ता कम हो जाती है। गाजर फीकी और कपासिया हो जाती है तथा भार भी कम हो जाता है। इसलिए पककर तैयार होते ही गाजर की खुदाई शुरू कर देनी चाहिए। इस तरह अगर आप सारे बातों को ध्यान में रखकर इसकी खेती करें तो निश्चित तौर पर अच्छा खासा मुनाफा होगा।