जब इंसान अपने सपनों को पूरा करने के लिए कठिन मेहनत करता है तो वह आश्वस्त होता है कि उसकी मेहनत कभी ना कभी रंग जरूर लाएगी। अपनी मंजिल को पाने के लिए अग्रसित होने के बाद जब पहले कदम पर सफलता मिलती है तो वह पल वाकई बहुत खूबसूरत होता है। हम बात कर रहे हैं झारखंड की रहने वाली उस बेटी की जिसने अपने कठिन मेहनत से हावर्ड यूनिवर्सिटी में नामांकन प्राप्त कर लिया है और अगले 4 वर्ष तक वह पूरी स्कॉलरशिप पर अमेरिका में रहकर अपनी पढ़ाई पूरी करेगी। आइए जानते हैं इस बच्ची के बारे में
सीमा जो रांची के ओरमांझी ब्लॉक के दोहा गांव की रहने वाली है। 17 वर्षीय सीमा के पिता और माता ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं है तथा उनकी आर्थिक स्थिति भी बेहद कमजोर है। शुरूआत में सीमा भी गांव के हीं सरकारी स्कूल में पढ़ने जाया करती थी। बाद में वह युवा नाम के एक एनजीओ के साथ जुड़ गई और उसी के अंतर्गत पढ़ाई करने लगी उस संस्था के अंदर एनआईओएस सिलेबस के तहत बच्चों को पढ़ाया जाता है।
सफलता किसी सपने के सच होने जैसा
सीमा ने स्कॉलरशिप के लिए पिछले साल अप्लाई किया था। सिद्धि के तरफ से सीमा का इंटरव्यू हुआ जिसमें सीमा के अब तक की पढ़ाई, युवा संस्था में उनकी भूमिका, वह आगे क्या करना चाहती हैं सहित उनके फैमिली बैकग्राउंड से संबंधित भी कई सवाल पूछे गए। सीमा हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के साथ-साथ कोलंबिया यूनिवर्सिटी एवं प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में भी अप्लाई किया था। रिजल्ट वाली सूची में अपना नाम देखकर सीमा बेहद खुश हूं और उन्होंने अपने स्कूल की एक मैडम को फोन किया स्कूल की मैडम ने यूनिवर्सिटी में फोन करके सारी बात पता की। इसके बाद सीमा ने यह बात अपनी मां को बताया। सीमा द्वारा सफलता प्राप्त करने के बाद उनके परिवार में कुछ ज्यादा हलचल नहीं है क्योंकि जो सफलता सीमा ने अर्जित की है उसके बारे में ना तो उनके पिता और ना उनकी मां को कुछ पता है। यह सफलता उनके सपनों को साकार करने जैसा है।
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संघर्षों और आभावों से घिरी रही जिंदगी
बीबीसी को दिए साक्षात्कार में सीमा ने बताया एक ऐसे उनकी जिंदगी संघर्षों और अभावों में बीता है। उनके पिता पहले एक धागा फैक्ट्री में काम किया करते थे जो लॉकडाउन में बंद हो गया। इसके बाद वे एक बेकरी में काम करते हैं जहां पर उन्हें ₹7000 हर महीने तनख्वाह मिलती हैं। इसके साथ उनके पिता थोड़ी बहुत खेती और सब्जियां भी उगा लेते हैं जिससे परिवार का भरण पोषण हो रहा है। संघर्ष के दिनों को याद करते हुए सीमा बताती हैं कि 2012 मैं एक दिन मैं अपने चाचा के साथ घास लाने जा रही थी उसी दौरान मैंने रास्ते में कुछ लड़कियों को फुटबॉल खेलते देखा। वे लोग न सिर्फ खेल को इंजॉय कर रहे थे बल्कि जोर-जोर से हंस भी रहे थे। यह देख मेरे अंदर भी वैसा करने की प्रेरणा पैदा हुई। वह घर आकर अपनी मां को सारी बात बताई और खुद भी उससे जुड़ने की बात कही तो मां ने सीमा की बात मान ली। इसके बाद सीमा युवा संस्था से जुड़ गई जहां उन्हें भी कपड़े व बूट दिए गए और उसके बाद वह इसी संस्था से पढ़ाई भी करने लगी।
अमेरिका जाने के लिए बेहद उत्सुक
सीमा अमेरिका जाने के लिए बेहद उत्सुक दिख रही हैं वह कहती हैं कि मुझे वहां ढेर सारे दोस्त बनाने हैं। मैं वहां के कई प्रोफेसरों से मिलना चाहती हूं, उनसे सीखना चाहती हूं। मैं वहां के छात्र संगठनों के साथ जुड़ना चाहती हूं तथा उनके गतिविधियों में भाग लेना चाहती हूं। मैं अच्छी तरह अमेरिका घूमना चाहती हूं। गौरतलब हो कि पढ़ाई के दौरान सीमा को हर वर्ष स्कॉलरशिप के रूप में 83000 अमेरिकी डॉलर मिलेगी जिसे हर साल परफॉर्मेंस के आधार पर बढ़ाया भी जाता है।
उनकी सफलता को देखकर मशहूर अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा और बायोकॉम लिमिटेड की चेयरपर्सन किरण मजूमदार शॉ ने अपने ट्विटर हैंडल से ट्वीट करते हुए सीमा की प्रशंसा में कसीदे गढ़े हैं। इसे पढ़कर सीमा बहुत खुश हुई।
सीमा एक छोटे से गांव की रहने वाली है लेकिन जिस तरीके से उन्होंने एक लक्ष्य निर्धारित किया और उसके लिए सदैव प्रयासरत रहीं और आज वह हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के स्कॉलरशिप परीक्षा में सफलता प्राप्त की है वह अभाव और गरीबी में जी रहे करोड़ों बच्चों के लिए प्रेरणा है। The Logically सीमा को उनके इस सफलता पर ढेर सारी बधाईयां देता है तथा उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता है।