पेड़-पौधे, जल इत्यादि प्राकृतिक चीजों का हमारे ज़िंदगी में अहम स्थान है और इनकी सुरक्षा हमारी जिम्मेदारी है। जहां हमें ज्यादा संख्या में पेड़ पौधे लगाने चाहिए वहीं हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इसे काटते जा रहे हैं। जिसका हमारे जिंदगी पर बहुत बुरा असर भी पड़ रहा है। हमारे समाज में कई लोग ऐसे भी हैं जो पर्यावरण संरक्षण का बीरा उठाए हुए हैं। उनमें से एक हैं जमुना टुडू जिन्हें पर्यावरण संरक्षण के लिए पद्मश्री से भी सम्मानित किया जा चुका है।
कैसे हुईं पर्यावरण संरक्षण की शुरुआत ?
जमुना टुडू (Jamuna Tudu) को लोग लेडी टार्जन (Lady Tarzan) के नाम से भी जानते हैं। जमुना ओडिशा (Odisha) के मयूरभंज जिले के जामदा प्रखंड में जन्मी और उनकी शादी चाकुलिया प्रखंड के मुटुरखाम गांव में हुई। जमुना जब शादी करके ससुराल पहुंची तो वहां उन्होंने देखा कि मुटुरखाम गांव के जंगलों में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई चल रही थी। यह दृश्य जमुना अपने घर के दरवाजे से देख रही थी जो उनके लिए असहनीय था। पेड़ों की कटाई को रोकने के लिए जमुना ने बहुत प्रयास किया। यहां तक की इन्होंने जंगल माफिया से टकराने का भी निर्णय ले लिया। उनके घर वालों ने उन पर बहुत पाबंदियां लगाई लेकिन जमुना रुकने वालों में से नहीं थी। वह अपने साथ गांव की कुछ महिलाओं को इकट्ठा कर पेड़ बचाने की मुहिम पर निकल पड़ी। जमुना को इसके लिए बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उन्हें अनेकों तरह से धमकियां भी मिली, लेकिन वह हार नहीं मानी और जंगल बचाने के कार्य में संलग्न रही।
वन सुरक्षा समिति के जरिए की पेड़ों की सुरक्षा
ग्रामीण महिलाओं के सहयोग से जंगल में पेड़ों की सुरक्षा करना शुरू की और साथ ही नए पौधे भी लगाने शुरू किए। जमुना के पेड़ों के प्रति लगाव को देखते हुए आसपास के गांव के और महिलाएं भी उनके मुहिम का हिस्सा बनती गई सभी महिलाओं के साथ मिलकर जमुना “वन सुरक्षा समिति” का गठन किया। धीरे-धीरे और भी लोगों का सहयोग मिलने लगा जिससे आज चाकुलिया प्रखंड में ऐसे 300 से ज्यादा समितियां है और हर समिति में 30 महिलाएं शामिल है, जो अपने-अपने क्षेत्र में वनों की सुरक्षा लाठी-डंडे और तीर-धनुष के साथ करती है। जमुना टुडू भी पेड़ पर चढ़ने के साथ-साथ तीर धनुष चलाने में भी माहिर है।
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वन सुरक्षा समिति को सरकार से है आर्थिक रूप से मदद की मांग
जमुना चाहती है कि सरकार भी इस पहल में शामिल होकर वनों की सुरक्षा के कार्य में मदद करे। साथ ही वन सुरक्षा समिति में कार्यरत महिलाओं को सरकार द्वारा कुछ आर्थिक मदद भी प्रदान की जाए। जमुना के लिए पेड़-पौधे उनके बच्चों के समान है, जिनकी सुरक्षा वह राखी बांधकर करती है। जमुना की खुद की कोई औलाद नहीं है जिसका उन्हें तनिक भी दुख नहीं है। यदि उनसे कोई पूछे कि आपके कितने बच्चे हैं तो जवाब में वह बताती हैं अनगिनत। पेड़-पौधे उनके लिए बच्चों से कम नहीं है।
मिले अनेकों सम्मान
वनों की सुरक्षा के लिए जमुना टुडू को राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर अनेकों पुरस्कार मिल चुके हैं। पहला पुरस्कार उन्हें वन विभाग द्वारा मिला। फिर 2008 में झारखंड सरकार द्वारा सम्मानित की गई। 2013 में दिल्ली में क्लिप ब्रेवरी नेशनल अवॉर्ड प्राप्त की और मुंबई में उन्हें स्त्री शक्ति अवार्ड भी मिला। साथ ही 2019 में जमुना टुडू को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया।
जमुना टुडू का पेड़ों के प्रति समर्पण की कहानी बेहद ही प्रेरणादायक है। उनका कहना है कि आखिरी सांस तक वह पेड़ों के लिए ही जिएंगी। The Logically जमुना टुडू (Jamuna Tudu) के पेड़ों के प्रति समर्पण की भावना को नमन करता है।