आज के डिजिटल दौर में हम एक ओर बच्चों को डिजिटल शिक्षा देने पर जोर दे रहें हैं लेकिन एक ओर हमे यह भी मानना होगा कि आज भी कई गांव के बच्चे पढ़ाई के अच्छे माहौल से वंचित हैं। वे बच्चे बड़े सपने देखने से डरते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि इस माहौल में रहकर उस बड़े सपने को पूरा नहीं किया जा सकता।
आज हम बात करेंगे, गाज़ियाबाद (Ghaziabad) के पास एक छोटे से गांव गनौली का रहने वालें लाल बहार (Lal Bahar) की, जो पेशे से एक इंस्पेक्टर हैं। उन्होंने अपने गांव के बच्चों को पढ़ने का एक अच्छा माहौल देने के लिए कुछ दोस्तों की मदद से गांव में एक लाइब्रेरी खोली और बच्चों का पढ़ने का उत्साह देखते हुए उन्होंने अब तक 250 गांवों में लाइब्रेरी खोलकर गांव के बच्चों को पढ़ाई में मदद की है।
किसान परिवार से रखते हैं ताल्लुक
लाल बहार (Lal Bahar) एक किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं। आर्थिक तंगी होने के कारण उन्हें पढ़ाई के लिए अच्छा माहौल नहीं मिल पाता था, क्योंकि इनके पिता एक किसान थे और इनपर इनके छह भाई-बहनों की जिम्मेदारी थी। लेकिन माहौल अच्छा नहीं मिलने के बाद भी उन्होंने अपनी पढ़ाई को जारी रखा और जूनियर स्कूल, हाई स्कूल और कॉलेज में भी टॉप किया।
उन्होंने (Lal Bahar) बताया कि, “गांव में रहने के कारण गांव के लड़के बड़े सपने नहीं देखते थे, क्योंकि गांव में सुविधाओं की बहुत कमी थी। इसी कारण मैने भी स्कूल टीचर या पुलिस में किसी छोटे पद पर काम करने का सपना देखा था। अगर उस दौरान मैं किसी बड़े अधिकारी से मिला होता तो उनसे प्रेरित होकर आईपीएस या आईएएस अधिकारी बनने का सपना देखता”
कैसे आया लाइब्रेरी बनाने का ख्याल?
लाल बहार (Lal Bahar) का कहना है कि, आज के दौर में डिजिटल दुनिया और डिजिटल शिक्षा होने के बावजूद भी गांव के बच्चे पढ़ाई के उन कई सुविधाओं से वंचित हैं। वर्ष 2020 में कोरोना के कारण देश में लगी लॉकडाउन के दौरान स्कूल, कॉलेज और कोचिंग सेंटर्स बंद होने से सबकी पढ़ाई भी बंद ही गई थी। तभी मेरे दिमाग में लाइब्रेरी बनाने की ख्याल आया और मैंने गांव के सरपंच से बात करके गांव के पुराने पंचायत भवन में लाइब्रेरी बनाने का फैसला किया।
गांव के सरकारी पेशे वालें लोगों ने किया सहयोग
लाल बहार (Lal Bahar) को बच्चों की शिक्षा के लिए लाइब्रेरी बनाने की इस पहल को देखते हुए गांव के जितने भी सरकारी पेशे वालें लोग थे, उन्होंने उनसे मिलकर पैसा इकट्ठा करना शुरू किया।
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दो महीने में जुटाएं पांच लाख रुपये
लाल बहार (Lal Bahar) और उनके गांव के सरकारी पेशे वालें लोगों ने मिलकर दो महीने में हीं पांच लाख रुपये इकट्ठा कर लिया और गांव में हीं एसी व सीसीटीवी जैसी सुविधाओं के साथ, शहर जैसा एक बढ़िया स्टडी सेंटर बनाकर तैयार कर दिया।
अगल-बगल गांव के बच्चे भी आने लगे पढ़ने
उन्होंने बताया कि, गांव की इस लाइब्रेरी में बच्चों में पढ़ने के लिए खूब उत्साह देखने को मिला। इतना तक कि अगल-बगल गांव के बच्चे भी यहां आकर पढ़ने लगे। लेकिन हमने लाइब्रेरी में केवल 60 बच्चों को हीं एक साथ पढ़ने की व्यवस्था की थी, जिस वजह से यहां काफी भीड़ होने लगी। तब हमने अगल-बगल के सभी गांवों में लाइब्रेरी बनाने का फैसला लिया और वहां घूमकर वहां की पंचायत और कुछ नौकरी पेशा लोगों के सामने ऐसी ही और लाइब्रेरी बनाने की बात रखी और वे मान गए।
गांव में लाइब्रेरी बनाने के लिए लोग करने लगे संपर्क
उन्होंने (Lal Bahar) आगे कहा कि, अपने गांव और अपने आस पड़ोस के गांव में लाइब्रेरी बनाने के बाद यह बात सभी जगह फैलने लगी और लोग मुझे संपर्क करें लगे और कहने लगे कि, ‘भैया हमारे गांव में भी ऐसी लाइब्रेरी खुलवा दिजिए’। अब यूपी, दिल्ली, राजस्थान और हरियाणा में पिछले डेढ़ सालों में 250 लाइब्रेरी खुल चुकी हैं।
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यहां से पढ़, कोई बना जेलर तो कोई टीचर
लाल बहार ने बताया कि, उनके गांव के लाइब्रेरी से 25 बच्चों ने पुलिस परीक्षा पास की है, जिसमें एक बच्चा जेलर बना और कई बच्चे सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे हैं। इसके अलावें दिल्ली में एक लाइब्रेरी से 12 बच्चों ने सरकारी टीचर भर्ती परीक्षा पास की है।
उन्होंने यह भी बताया कि, वे अपने लाइब्रेरी में स्थानीय अधिकारीयों को भी बुलाते रहते हैं, ताकि बच्चों को उनसे प्रेरणा मिल सके।
देश के हर एक गांव में एक लाइब्रेरी बनाने की चाह
लाल बहार (Lal Bahar) बताते हैं कि, वह देश के हर एक गांव में एक लाइब्रेरी बनाना चाहते हैं ताकि देश के गांव भी विकास से जुड़ सके।
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